छन्द-शास्त्र गायब हुए, मुक्त हुआ साहित्य। गीत और संगीत से, मिटा आज लालित्य।। (2) निकल गई है आत्मा, काव्य हुआ निष्प्राण। नवयुग में गुम हो गये, सतसय्या के बाण।। (3) कविता में मिलता नही, भक्ति सा आनन्द। फिल्मी गानों ने किये, भजन-कीर्तन बन्द।। (4) तुलसी, सूर-कबीर की, मीठी-मीठी तान। निर्गुण-सगुण उपासना, भूल गया इन्सान।। (5) प्रेमदिवस के नाम पर, पोषित भ्रष्टाचार। शिक्षित यौवन कर रहा, खुलकर पापाचार।। |
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गुरुवार, 27 जनवरी 2011
"आज कुछ दोहे" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री "मयंक")
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bahut ache aur saral lage aapke dohe.
जवाब देंहटाएंबहुत ही अच्छे दोहे.......मैने इन्हे नाम दिया रुप वाणी जो सिर्फ हमारे पूज्य श्री शास्त्री जी की लेखनी से ही निकल सकती है....बहुत ही सुंदर।
जवाब देंहटाएंतुलसी, सूर-कबीर की, मीठी-मीठी तान।
जवाब देंहटाएंनिर्गुण-सगुण उपासना, भूल गया इन्सान।।
बहुत सुंदर !
बहुत सुन्दर और सार्थक..आभार
जवाब देंहटाएंशायद बदलाव के साथ यह सब देखना बदा ही होता है
जवाब देंहटाएंमयंक साहब..
जवाब देंहटाएंहम अभिभूत हुए..!!!
अद्भुद दोहे.. आज के कबीर की तरह ...
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छे सरल सटीक दोहे.
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर सरल और प्रासंगिक विचार लिए दोहे....आभार
जवाब देंहटाएंआदरणीय शास्त्रीजी
जवाब देंहटाएंप्रणाम !
बहुत अच्छे और पूर्णता लिये हुए दोहे हैं , बधाई !
आप-हम हैं न ! :)
… और हम जैसे और भी , चिंता की बात नहीं … :)
शुभकामनाएं ! मंगलकामनाएं !
- राजेन्द्र स्वर्णकार
बहुत सुन्दर दोहे हैं,शास्त्री जी
जवाब देंहटाएंbahut sundar
जवाब देंहटाएंवाह जी वाह …………गज़ब के दोहे हैं सभी सार्थक और सुन्दर संदेश देते हुये।
जवाब देंहटाएंवाकई... अभीभूत कर देने वाले दोहे.
जवाब देंहटाएंछन्द-शास्त्र गायब हुए, मुक्त हुआ साहित्य।
जवाब देंहटाएंगीत और संगीत से, मिटा आज लालित्य।।
लेकिन आपकी कलम का लालित्य अभी भी बरकरार है। सभी दोहे लाजवाब हैं बधाई।
निकल गई है आत्मा, काव्य हुआ निष्प्राण।
जवाब देंहटाएंनवयुग में गुम हो गये, सतसय्या के बाण।...............
आप जैसे मनीषियों के रहते काव्य निष्प्राण कैसे हो सकता है
'छंद शास्त्र गायब हुए ,मुक्त हुआ साहित्य |
जवाब देंहटाएंगीत और संगीत से , मिटा आज लालित्य |
बहुत सुन्दर दोहे ...आभार शास्त्री जी |
विडम्बनाओं से भरा आज का आचार।
जवाब देंहटाएंहै तो चिंता का विषय फिर भी अंधेरी रात के बाद सुबह जरूर आएगी।
जवाब देंहटाएंसटीक और सार्थक दोहे ...
जवाब देंहटाएंआज के ज़माने में दोहे पढ़ने को मिले
जवाब देंहटाएंयही बहुत बड़ी बात है
आप का काव्य तो निष्प्राण नहीं हो पाया ,जो सच्चा साहित्यकार है उस के शब्द ,भाव ,अभिव्यक्ति आत्मा तक पहुंचती है
और आप के दोहे मन को छूते हैं