अंग्रेजी से ओत-प्रोत, अपने भारत का तन्त्र, मनाएँ कैसे हम गणतन्त्र। बिगुल बजा कर आजादी का, मौन हो गई भाषा, देवनागरी के सपनों की, गौण हो गई परिभाषा, सब सुप्त हो गये छंद-शास्त्र, अभिलुप्त हो गये मन्त्र। मनाएँ कैसे हम गणतन्त्र।। |
कहाँ गया गौरव अतीत, अमृत गागर क्यों गई रीत, क्यों सूख गई उरबसी प्रीत, खो गया कहाँ संगीत-गीत, इस शान्त बाटिका में, किसने बोया ऐसा षडयन्त्र। मनाएँ कैसे हम गणतन्त्र।। |
कभी थे जो जग में वाचाल, हुए क्यों गूँगे माँ के लाल, विदेशों में जाकर सरदार, हुए क्यों भाषा से कंगाल, कर रहे माँ का दूध हराम, यही है क्या अपना जनतन्त्र। मनाएँ कैसे हम गणतन्त्र।। |
सही कह रहे हैं……………ऐसे हालात मे कैसा गणतंत्र?
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर रचना सोचने को मजबूर करती है।
जनाब जाकिर अली साहब की पोस्ट "ज्योतिषियों के नीचे से खिसकी जमीन : ढ़ाई हजा़र साल से बेवकूफ बन रही जनता?" पर निम्न टिप्पणी की थी जिसे उन्होने हटा दिया है. हालांकि टिप्पणी रखने ना रखने का अधिकार ब्लाग स्वामी का है. परंतु मेरी टिप्पणी में सिर्फ़ उनके द्वारा फ़ैलाई जा रही भ्रामक और एक तरफ़ा मनघडंत बातों का सीधा जवाब दिया गया था. जिसे वो बर्दाश्त नही कर पाये क्योंकि उनके पास कोई जवाब नही है. अत: मजबूर होकर मुझे उक्त पोस्ट पर की गई टिप्पणी को आप समस्त सुधि और न्यायिक ब्लागर्स के ब्लाग पर अंकित करने को मजबूर किया है. जिससे आप सभी इस बात से वाकिफ़ हों कि जनाब जाकिर साहब जानबूझकर ज्योतिष शाश्त्र को बदनाम करने पर तुले हैं. आपसे विनम्र निवेदन है कि आप लोग इन्हें बताये कि अनर्गल प्रलाप ना करें और अगर उनका पक्ष सही है तो उस पर बहस करें ना कि इस तरह टिप्पणी हटाये.
जवाब देंहटाएं@ज़ाकिर अली ‘रजनीश’ ने कहा "और जहां तक ज्योतिष पढ़ने की बात है, मैं उनकी बातें पढ़ लेता हूँ,"
जनाब, आप निहायत ही बचकानी बात करते हैं. हम आपको विद्वान समझता रहा हूं पर आप कुतर्क का सहारा ले रहे हैं. आप जैसे लोगों ने ही ज्योतिष को बदनाम करके सस्ती लोकप्रियता बटोरने का काम किया है. आप समझते हैं कि सिर्फ़ किसी की लिखी बात पढकर ही आप विद्वान ज्योतिष को समझ जाते हैं?
जनाब, ज्योतिष इतनी सस्ती या गई गुजरी विधा नही है कि आप जैसे लोगों को एक बार पढकर ही समझ आजाये. यह वेद की आत्मा है. मेहरवानी करके सस्ती लोकप्रियता के लिये ऐसी पोस्टे लगा कर जगह जगह लिंक छोडते मत फ़िरा किजिये.
आप जिस दिन ज्योतिष का क ख ग भी समझ जायेंगे ना, तब प्रणाम करते फ़िरेंगे ज्योतिष को.
आप अपने आपको विज्ञानी होने का भरम मत पालिये, विज्ञान भी इतना सस्ता नही है कि आप जैसे दस पांच सिरफ़िरे इकठ्ठे होकर साईंस बिलाग के नाम से बिलाग बनाकर अपने आपको वैज्ञानिक कहलवाने लग जायें?
वैज्ञानिक बनने मे सारा जीवन शोध करने मे निकल जाता है. आप लोग कहीं से अखबारों का लिखा छापकर अपने आपको वैज्ञानिक कहलवाने का भरम पाले हुये हो. जरा कोई बात लिखने से पहले तौल लिया किजिये और अपने अब तक के किये पर शर्म पालिये.
हम समझता हूं कि आप भविष्य में इस बात का ध्यान रखेंगे.
सदभावना पूर्वक
-राधे राधे सटक बिहारी
इस टिप्पणी को एक ब्लॉग व्यवस्थापक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंवर्तमान स्थितियों पर सटीक चोट करती कविता...
जवाब देंहटाएंविडम्बनाओं को उद्घाटित करती कविता।
जवाब देंहटाएंतिरंगा श्रीनगर में फहराए या नहीं पर आपने व्लाग पर तो फहरा दिया , सुंदर रचना , बधाई
जवाब देंहटाएंकहाँ गया गौरव अतीत,
जवाब देंहटाएंअमृत गागर क्यों गई रीत,
क्यों सूख गई उरबसी प्रीत,
खो गया कहाँ संगीत-गीत,
बहुत ही सटीक टिप्पणी आज की व्यवस्था पर..बहुत ओजपूर्ण प्रेरक प्रस्तुति..आभार
चर्चा मंच के साप्ताहिक काव्य मंच पर आपकी प्रस्तुति मंगलवार 25-01-2011
जवाब देंहटाएंको ली गयी है ..नीचे दिए लिंक पर कृपया अपनी प्रतिक्रिया दे कर अपने सुझावों से अवगत कराएँ ...शुक्रिया ..
http://charchamanch.uchcharan.com/
आज के दौर की विडम्बना को रेखांकित करती कविता .....
जवाब देंहटाएंबिल्कुल सही कह रहे है आप। अब तो ये मात्र एक रस्म होकर रह गया है। ये तो सोचने की बात है कि सही मायने में हम आज भी स्वतंत्र है या नही। सुन्दर रचना।
जवाब देंहटाएंek nihayat sunder aur samyeek kavita.
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया.. शानदार...
जवाब देंहटाएंगणतन्त्र शास्त्री जी, पिछले १५,२० सालो से हम तो नही मनाते यह गणतन्त्र दिवस, जब कि यह हमारे लिये हे....लेकिन भाषण की भाषा उन के लिये हे जिन्हे हमारे शहीदो ने मार मार कर भगाया था,
जवाब देंहटाएंbhatia ji ki baat se sehmat hoon, aajkal ke bachcho ko to ye bhi nahi pata hoya ki svatantrata divas kis chidiya ka naam hai....zarurat hai soch ko jagaane ki.!!
जवाब देंहटाएंदेश मे लोगों को याद रहती है दो तारीखें 15 अगस्त और 26 जनवरी……महज औपाचारिक्त ही रह गई है। बहुत सुंदर रचना।
जवाब देंहटाएंतिरंगे में लिपटी सुन्दर रचना...बधाई.
जवाब देंहटाएंअंग्रेजी से ओत-प्रोत,
जवाब देंहटाएंअपने भारत का तन्त्र,
मनाएँ कैसे हम गणतन्त्र।
bahut sahi kaha, sirf bharat hin nahin hamari nason mein angreji pasarti ja rahi aur hum manate apna gantantra, jismein hindi hamari raashtra bhasha...bahut achhi rachna, shubhkaamnaayen.
सामाजिक विडम्बनाओं को रेखांकित करती सुंदर रचना।
जवाब देंहटाएं---------
क्या आपको मालूम है कि हिन्दी के सर्वाधिक चर्चित ब्लॉग कौन से हैं?
बिगुल बजा कर आजादी का,मौन हो गई भाषा,देवनागरी के सपनों की,गौण हो गई परिभाषा,सब सुप्त हो गये छंद-शास्त्र,अभिलुप्त हो गये मन्त्र।मनाएँ कैसे हम गणतन्त्र।।
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर रचना!
अंतर्मन को उद्वेलित करती ..चिंतन के लिए विवश करती ओजश्वी रचना....
जवाब देंहटाएंअंग्रेजी से ओत-प्रोत,अपने भारत का तन्त्र,मनाएँ कैसे हम गणतन्त्र.....
जवाब देंहटाएंविचारणीय..अच्छी कविता के लिये बधाई स्वीकारें।
बहुत ही विचारोत्तेजक प्रस्तुती ..अपनी संस्कृति के गौरव शाली तत्वों पर आस्था की कमी ओर पश्चिम की नक़ल ऐसे हालात मे कैसा गणतंत्र?...
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर रचना....
सादर अभिनन्दन !!!