सर्दी ने रंग जमाया है। ओढ़ चदरिया कुहरे की, सूरज नभ में शर्माया है।। जलते कहीं अलाव, सेंकता बदन कहीं है कालू, कोई भूनता शकरकन्द को, कोई भूनता आलू, दादा जी ने अपने तन पर, मोटा कम्बल लिपटाया है। ओढ़ चदरिया कुहरे की, सूरज नभ में शर्माया है।। |
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सोमवार, 17 जनवरी 2011
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जवाब देंहटाएंसर्दियाँ पुनः आ गयी लगता है।
जवाब देंहटाएंsahi samay par sahi rachna . badhai
जवाब देंहटाएंसर्दी का यह रंग अपने देश की स्मृतियाँ ताज़ी कर गया .
जवाब देंहटाएंइतना वास्तविक और सहज वर्णन जैसे चित्र आँखों के सामने अंकित हो गए हों !
आपकी लेखनी को नमन!
*
माननीय महोदय,
कृपया निम्न लिखित सूचना से अवगत हों -
अब मैंने अपने स्वयं को दो ब्लागों में सीमित कर लिया है ,नये पोस्ट अब इन्ही पर प्रस्तुत होंगे .
.
1.शिप्रा की लहरें (कविता) .
(http://yatra-1.blogspot.com/ )
*********
2.लालित्यम् ( गद्य).
(http://lambikavitayen5.blogspot.com/).( मैंने पुस्तक-संरचना के अनुरूप जो आठ ब्लाग बना लिये थे उनसे सबको असुविधा हो रही थी).
अब इन्हीं दो ब्लागज़ पर आप अपनी रुचि के अनुसार आमंत्रित हैं.
मैं निवेदन करती हूँ कि जिनने इन के अतिरिक्त ,(जो ब्लाग अब बंद हैं उन) पर सदस्य बन कर मेरा उत्साह-वर्धन किया था उनसे तथा अन्य सभी से निवेदन है कि
अब इन दोनों पर पुनः आगमन कर मुझे अनुग्रहीत करें .
असुविधा हेतु क्षमा - याचना सहित,
सादर,
प्रतिभा सक्सेना
आदरणीय शास्त्रीजी ,
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर जाड़ा-गीत /बालगीत !
आखिरी बंद ने तो गीत को बड़ी ऊंचाई दे दी |
यति-गति-लय और प्रवाह ने आनंदित कर दिया |
सर्दी का सही आकलन किया है आपने |बधाई |
जवाब देंहटाएंआशा
कविता के माध्यम से सच मे सर्दी का रंग जमा दिया है……………बहुत सुन्दर प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंमयंक जी सही समय पर सही एवं वास्तविकता से परिपूर्ण रचना पढवाने के लिए शुक्रिया
जवाब देंहटाएंवाह! बहुत सुन्दर!
जवाब देंहटाएंसर्दी में सुन्दर रचना..
जवाब देंहटाएंमौसम के अनुकूल सुन्दर बाल कविता...
जवाब देंहटाएंवैसे देखा जाए तो मूंगफली का स्वाद काजू से कई गुणा ज्यादा बढ़िया होता है लेकिन वो कहते हैं ना कि घर की मुर्गी दाल बराबर...इसलिए हमारे यहाँ इसे निम्न स्तरीय माना जाता है जबकि कई देशों में(जहाँ इनकी पैदावार नहीं होती है)मूंगफली और काजू दोनों के दाम एक बराबर होते हैं
सुहाना लगा जाड़ा गीत, बधाई.
जवाब देंहटाएंबार-बार पलट कर आता "जाड़ा' ठण्ड से कांपते हुए एक साधन विहीन निर्धन से एक 'फ़िल्मी गीत' यूं गँवा रहा है:
'जा...................ड़े'..........
अब तो चले जा प्यारे,
'पहाड़ो' के देस जारे,
यहाँ क्या है तेरा..........रे....
जाड़े......
-mansoor ali hashmi
http://aatm-manthan.com