आदमी को, आदमी की हबस ही खाने लगी।। हबस के कारण, यहाँ गणतन्त्रता भी सो रही। दासता सी आज, आजादी निबल को हो रही।। पालिकाओं और सदन में, हबस का ही शोर है। हबस के कारण, बशर लगने लगा अब चोर है।। उच्च-शिक्षा में अशिक्षा, हबस बन कर पल रही। न्याय में अन्याय की ही, होड़ जैसी चल रही।। हबस के साये में ही, शासन-प्रशासन चल रहा। हबस के साये में ही नर, नारियों को छल रहा।। डॉक्टरों, कारीगरों को, हबस ने छोड़ा नही। मास्टरों ने भी हबस से, अपना मुँह मोड़ा नही।। बस हबस के जोर पर ही, चल रही है नौकरी। कामचोरों की धरोहर, बन गयी अब चाकरी।। हबस के बल पर हलाहल, राजनीतिक घोलते। हबस की धुन में सुखनवर, पोल इनकी खोलते।। चल पड़े उद्योग -धन्धे, अब हबस की दौड़ में। पा गये अल्लाह के बन्दे, कद हबस की होड़ में।। राजनीति अब, कलह और घात जैसी हो गयी। अब हबस शैतानियत की, आँत जैसी हो गयी।। |
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मंगलवार, 25 जनवरी 2011
"हबस" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री "मयंक")
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राजनीति अब, कलह और घात जैसी हो गयी।
जवाब देंहटाएंअब हबस शैतानियत की, आँत जैसी हो गयी।
सच ही है सटीक रचना.
एकतरफा दृष्टिकोण है, इतना भी बुरा नहीं जमाना.
जवाब देंहटाएंराजनीति अब, कलह और घात जैसी हो गयी।
जवाब देंहटाएंअब हबस शैतानियत की, आँत जैसी हो गयी।
अगर ये हवस खत्म हो जाये तो दुनिया जन्नत न बन जाये…………बहुत सुन्दर रचना।
बस हबस के जोर पर ही, चल रही है नौकरी।
जवाब देंहटाएंकामचोरों की धरोहर, बन गयी अब चाकरी।।
सटीक रचना......
राजनीति अब, कलह और घात जैसी हो गयी।
जवाब देंहटाएंअब हबस शैतानियत की, आँत जैसी हो गयी।।
यही आलम है हर तरफ ...क्या किया जाए !
पालिकाओं और सदन में, हबस का ही शोर है।
जवाब देंहटाएंहबस के कारण, बशर लगने लगा अब चोर है।।
उच्च-शिक्षा में अशिक्षा, हबस बन कर पल रही।
न्याय में अन्याय की ही, होड़ जैसी चल रही।।
Mere man kee baat kah dee, bahut sundar !
'अब हवस शैतानियत की आँत जैसी हो गयी '
जवाब देंहटाएंआदरणीय शास्त्री जी ,
देश और समाज की वर्तमान स्थिति की बहुत ही बेबाक और सटीक प्रस्तुति है आपकी रचना !
बहुत दमदार कविता।
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर जी
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर रचना।
जवाब देंहटाएंगणतंत्र दिवस की हार्दिक बधाइयाँ !!
Happy Republic Day.........Jai HIND
well said guru ji...
जवाब देंहटाएंrepublic day ke mauke pe achi rachna!
समसामयिक रचना ...
जवाब देंहटाएंek katu satya.
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