मोहब्बत की हसीं राहें तुम्हारे प्यार को खुश्बू बसा, इस दिल में लाया हूँ मोहब्बत की हसीं राहों में, यादें छोड़ आया हूँ कभी जब याद करके गाँव की, गलियों से गुजरेगें मैं अपनी खिल-खिलाहट के वो मंजर छोड़ आया हूँ मेरी उल्फत की यादें, जब कभी तुम भूल जाओगे चुभाने के लिये दिल में, मैं काँटे छोड़ आया हूँ जहाँ में खुश्बू-ए-गुल सा महकना, घर को महकाना तुम्हारे बन्द कमरों में, उजाले छोड़ आया हूँ तमन्नाओं को मेरी, तुमने अपना रंग दे डाला दुआयें खुशनसीबी की, तुम्हें मैं छोड़ आया हूँ उन्हें अब दायरों में बाँधना, “बदनाम” करना है महकने और महकाने को, गुलशन छोड़ आया हूँ। (गुरू सहाय भटनागर "बदनाम") |
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मंगलवार, 8 नवंबर 2011
"ग़ज़ल - गुरूसहाय भटनागर बदनाम" (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री "मयंक")
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वो गलियां आभी तक हसीनों-जवां हैं
जवाब देंहटाएंजहां जवानी मैं अपनी छोड़ आया हूँ |
क्षमा .........!
शुभकामनाएँ!
बेहद खूबसूरत अभिव्यक्ति .... आभार
जवाब देंहटाएंकभी जब याद करके गाँव की, गलियों से गुजरेगें
जवाब देंहटाएंमैं अपनी खिल-खिलाहट के वो मंजर छोड़ आया हूँ
सुन्दरतम..
बेहद खूबसूरत .....
जवाब देंहटाएंउन्हें अब दायरों में बाँधना, “बदनाम” करना है
जवाब देंहटाएंमहकने और महकाने को, गुलशन छोड़ आया हूँ।
सुन्दर अभिव्यक्ति
शानदार गजल।
जवाब देंहटाएंहर शेर लाजवाब।
तमन्नाओं को मेरी, तुमने अपना रंग दे डाला
जवाब देंहटाएंदुआयें खुशनसीबी की, तुम्हें मैं छोड़ आया हूँ
खूबसूरत अभिव्यक्ति
खूबशूरत गजल-गुरूसहाय जी की
जवाब देंहटाएंबेहतरीन पोस्ट....
मेरी नयी पोस्ट "वजूद "में स्वागत है,
वाह! बहुत सुन्दर प्रस्तुति...बधाई
जवाब देंहटाएंख़ूबसूरत भाव और अभिव्यक्ति के साथ शानदार प्रस्तुती!
जवाब देंहटाएंbahut hansi ghazal..bahut umdaa.
जवाब देंहटाएंaafareen
जवाब देंहटाएंकभी जब याद करके गाँव ,की गल्यो से गुजरेंगे ....यादे ताउम्र साथ रहती है
जवाब देंहटाएंबहु अच्छा ../
वाह ...बहुत बढि़या ।
जवाब देंहटाएंsundar bhav se saji bahut hi acchi rachana hai..
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