घटते वन, बढ़ता प्रदूषण, गाँव से पलायन शहरों का आकर्षण। जंगली जन्तु कहाँ जायें? कंकरीटों के जंगल में क्या खायें? मजबूरी में वे भी बस्तियों में घुस आये! -- क्या हाथी, क्या शेर? क्या चीतल, क्या वानर? त्रस्त हैं, सभी जानवर। खोज रहे हैं सब अपना आहार, हो रहे हैं नर अपनी भूलों का शिकार। -- अभी भी समय है, लगाओ पेड़, उगाओ वन, हो सके तो बचा लो, पर्यावरण! ○ डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' खटीमा (उत्तराखण्ड) |
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शुक्रवार, 25 नवंबर 2011
‘‘बचा लो पर्यावरण’’ (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’)
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सुन्दर आह्वान!
जवाब देंहटाएंबड़ा सच कहा है, आने वाली पीढियों के काम यही आयेगा।
जवाब देंहटाएंजानवर मनुष्यों की बस्ती में नहीं घुसा है अपितु मनुष्य जानवरों के जंगल में जा घुसा है और उसे काटकर बस्ती बसा ली है।
जवाब देंहटाएंअभी भी समय है,
जवाब देंहटाएंलगाओ पेड़,
उगाओ वन,
हो सके तो
बचा लो,
पर्यावरण!
प्रेरणात्मक अभिव्यक्ति ।
Sach kaha hai a apne ... Par admi ki bhookh badhti ja rahi hai ...
जवाब देंहटाएंBeautiful creation in bringing awareness among the ignorant lot.
जवाब देंहटाएंउगाओ वन,
जवाब देंहटाएंहो सके तो
बचा लो,
पर्यावरण!
bahut sarthak baat kahi ...
बहुत अच्छा सन्देश देती रचना!
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया लगा! सुन्दर सन्देश देती हुई बेहतरीन रचना!
जवाब देंहटाएंprerak !
जवाब देंहटाएंकल 26/11/2011को आपकी यह पोस्टकी हलचल नयी पुरानी हलचल पर हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
जवाब देंहटाएंधन्यवाद!
जितनी देर होगी,भरपाई उतनी मुश्किल।
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर बात कही आपने
जवाब देंहटाएंउगाओ वन,
हो सके तो बचा
लो पर्यावरण बधाई ...
नई पोस्ट में आपका स्वागत है
पर्यावरण को बचाना ही होगा.
जवाब देंहटाएंacchi sandesh deti rachana hai....
जवाब देंहटाएंhame koi bhi kaam paryavaran ko dhyan me rakh kar karana chahiye..
sach mei......stay likha hai apne..
जवाब देंहटाएंबहुमूल्य आवाहन... सार्थक रचना...
जवाब देंहटाएंसादर...
अति उत्तम रचना …………पर्यावरण को बचाने के लिये अब मानव को ये कदम उठाने ही पडेंगे आपने मानवीय भूलों को बहुत ही सुन्दरता से उभारा है…………शानदार रचना।
जवाब देंहटाएंचेतो आखिर कब चेतोगे!!
जवाब देंहटाएंपर्यावरण के प्रति बेहद संवेदनशील रचना।
जवाब देंहटाएंdr.saheb aapaki samyik rachana,zaroori v mahati zaroorat hai.yadi humne ped na bachaye to khud khatm ho jayege.
जवाब देंहटाएंbehad prabhavi rachna
जवाब देंहटाएंअच्छा सन्देश दिया है आपने आपका आभार यदि हर व्यक्ति सिर्फ एक पेड लगाये तो भी धरा हरी भरी हो सकती एक अंकुर मैं भी बड़ी क्षमता
जवाब देंहटाएंहोती है
वो है नन्हा सा बीज मगर
एक नए सृजन का दम भरता
बस दो पत्तों को संग लेकर
वो जीवन की रचना करता
आकार भले हो लघु उसका
पर लघुता मैं भी है प्रभुता