वो सबके साथ रहता था हमारी सुनता था अपनी कहता था किन्तु जब से हुआ है मशहूर हो गया है सबसे दूर अब न रहा वो सीधा-सादा बन्दा है क्योंकि वो जनता का नुमाइन्दा है पहले था मानव फिर हुआ अतिमानव किन्तु अब है महामानव तन से देशी मन से सरकारी यही तो है उसकी लाचारी तीन टाँग की कुर्सी चढ़ा देती है अर्श पर लुढ़क जाये तो पटक देती है फर्श पर रूप राजशाही नाम लोकशाही जनता के द्वारा जनता का कानून भ्रष्टाचार लोकतन्त्र का जुनून दुर्गति ही दुर्गति यही तो है हमारी नियति! |
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सोमवार, 10 सितंबर 2012
"हमारी नियति" (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
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नीति-नियत पर दृष्टि है, रहा नियंता देख |
जवाब देंहटाएंचन्द्रगुप्त की लेखनी, प्रभु जांचे आलेख |
प्रभु जांचे आलेख, जँचे न इनकी करनी |
उड़े हवा में ढेर, समय पर सकल बिखरनी |
अपनों को यदि भूल, छलेगा अपना रविकर |
पायेगा वह दंड, भरोसा नीति नियत पर ||
ekdam samyik kavita hai.....
जवाब देंहटाएंमयंक जी सुन्दर अभिव्यक्ति ....................... तीन टाँग की कुर्सी
जवाब देंहटाएंचढ़ा देती है
अर्श पर
लुढ़क जाये तो
पटक देती है
फर्श पर
रूप राजशाही
नाम लोकशाही
जनता के द्वारा
जनता का कानून
भ्रष्टाचार
बहुत शानदार रचना है ,,,,,,,
जवाब देंहटाएंबहुत सटीक और बढ़िया..आभार..
जवाब देंहटाएंभ्रष्टाचार
जवाब देंहटाएंलोकतन्त्र का जुनून
दुर्गति ही दुर्गति
यही तो है
हमारी नियति,,,,,शानदार अभिव्यक्ति
RECENT POST - मेरे सपनो का भारत
मोहक रचना
जवाब देंहटाएं----
नया 3D Facebook Like Box 6 स्टाइल्स् में
Google IME को ब्लॉगर पर Comment Form के पास लगायें
जी यही सच्चाई है
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर रचना
"दुर्गति ही दुर्गति
जवाब देंहटाएंयही तो है
हमारी नियति!"
एक कड़वा सच...|सार्थक रचना |
वाह ... बेहतरीन
जवाब देंहटाएंwaah great creation !
जवाब देंहटाएंसबको समय का राग सुनना है, अपने हिस्से का।
जवाब देंहटाएंक्या खूब है इस नियति का खेल भी ...कब करवट बदल दे ...कोई नहीं जनता ...
जवाब देंहटाएंआपकी इस उत्कृष्ट रचना की चर्चा कल मंगलवार ११/९/१२ को राजेश कुमारी द्वारा चर्चा मंच पर की जायेगी आपका स्वागत है
जवाब देंहटाएंजहां जनता के द्वारा ,जनता के लिए ,जनता की ऐसी की तैसी होती है,डेमोक्रेसी ऐसी होती है .
जवाब देंहटाएंरूप राजशाही
नाम लोकशाही
जनता के द्वारा
जनता का कानून
भ्रष्टाचार
लोकतन्त्र का जुनून
दुर्गति ही दुर्गति
यही तो है
हमारी नियति!
ram ram bhai
सोमवार, 10 सितम्बर 2012
आलमी हो गई है रहीमा शेख की तपेदिक व्यथा -कथा (आखिरी से पहली किस्त )
shandar prastuti !
जवाब देंहटाएंयही लोकतंत्र और जनप्रतिनिधियों का सत्य है. इसको बदलने के बारे में सोचा जाय तो कुछ हो सकता है लेकिन इसके लिए अपने अपने इलाके में एक नहीं कई अन्ना खड़े करने होंगे. सत्ता से दूर लेकिन लोक को बांध कर अनाचार के खिलाफ खड़ा करने के लिए एक सन्मति देने के लिए जरूरी है और तभी इस रवैये में परिवर्तन भी जरूरी है.
जवाब देंहटाएंबिल्कुल सही चित्रण किया है।
जवाब देंहटाएंsahi baat
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