लाल और काले रंग वाली,
मेरी पतंग बड़ी मतवाली।
मैं जब विद्यालय से आता,
खाना खा झट छत पर जाता।
पतंग उड़ाना मुझको भाता,
बड़े चाव से पेंच लड़ाता।
पापा-मम्मी मुझे रोकते,
बात-बात पर मुझे टोकते।
लेकिन मैं था नही मानता,
इसका नही परिणाम जानता।
वही हुआ था, जिसका डर था,
अब मैं काँप रहा थर-थर था।
लेकिन मैं था ऐसा हीरो,
सब विषयों लाया जीरो।
अब नही खेलूँगा यह खेल,
कभी नही हूँगा मैं फेल।
आसमान में उड़ने वाली,
जो करती थी सैर निराली।
मैंने उसे फाड़ डाला है,
छत पर लगा दिया ताला है।
मित्रों! मेरी बात मान लो,
अपने मन में आज ठान लो।
पुस्तक लेकर ज्ञान बढ़ाओ।
थोड़ा-थोड़ा पतंग उड़ाओ।।
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शनिवार, 22 सितंबर 2012
"थोड़ा-थोड़ा पतंग उड़ाओ" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
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पुस्तक लेकर ज्ञान बढ़ाओ।
जवाब देंहटाएंथोड़ा-थोड़ा पतंग उड़ाओ।।
बहुत सुन्दर ज्ञानवर्धक बाल रचना।
जमीन नहीं तो आसमान साधो।
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया पतंगबाजी |
जवाब देंहटाएंआभार गुरु जी ||
पुस्तक लेकर ज्ञान बढ़ाओ।
जवाब देंहटाएंथोड़ा-थोड़ा पतंग उड़ाओ।।
sarthak kavita ...!!
बहुत सुन्दर ज्ञानवर्धक बाल रचना।
जवाब देंहटाएंखूबसूरत बाल कविता ज्ञान देती हुई प्रस्तुति :)))
जवाब देंहटाएंसुंदर /:-)
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर और शिक्षाप्रद बालगीत...
जवाब देंहटाएंसुंदर ज्ञान देती सुंदर रचना.....
जवाब देंहटाएंज्ञानवर्धक खूबसूरत रचना .....
जवाब देंहटाएंकविता में प्रयुक्त वर्णन तो अच्छा लगा, पर शास्त्री जी अपने रंग में नहीं दिखे।
जवाब देंहटाएंhawa mein uddtee sundar patang guru jee...maine socha thaa ki aap prachi aur pranjal ki photo lagayenge....
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