जब दुनिया ने किया किनारा। तब मैने माँ तुम्हें पुकारा।। सच्चाई का दमन हुआ जब, गन्धहीन सा सुमन हुआ जब, भावहीन सा चमन हुआ जब, जब गुंजन कर भँवरा हारा। तब मैने माँ तुम्हें पुकारा।। कितना डरा हुआ मंगल है, आपाधापी का दंगल है, लुटा-पिटा सारा जंगल है, मलिन हुई जब पावन धारा। तब मैने माँ तुम्हें पुकारा।। घोटालों से भरा घड़ा है, बलशाली अन्याय खड़ा है, बन्दीघर में न्याय पड़ा है. ताल ठोकता जब हत्यारा। तब मैने माँ तुम्हें पुकारा।। कण्ठी-माला इच्छा बिकती, पूजा बिकती, भिक्षा बिकती, ठेके पर जब शिक्षा बिकती, ज्ञान भटकता दर-दर मारा। तब मैने माँ तुम्हें पुकारा।। |
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बुधवार, 12 सितंबर 2012
"तब मैने माँ तुम्हें पुकारा" (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
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बहुत बढ़िया गुरु जी ।
जवाब देंहटाएंमाँ तभी याद आती है ।।
बहत सुंदर और सार्थक रचना शास्त्री जी | प्रणाम |
जवाब देंहटाएं
जवाब देंहटाएंघोटालों से भरा घड़ा है,
बलशाली अन्याय खड़ा है,
बन्दीघर में न्याय पड़ा है.
ताल ठोकता जब हत्यारा।
तब मैने माँ तुम्हें पुकारा।।
कण्ठी-माला इच्छा बिकती,
पूजा बिकती, भिक्षा बिकती,
ठेके पर जब शिक्षा बिकती,
ज्ञान भटकता दर-दर मारा।
तब मैने माँ तुम्हें पुकारा।।
मंडी में संसद जब बिकती ,
भेड़ बकरियां निशदिन बिकतीं ,
तब मैंने माँ तुम्हें पुकारा .
बढ़िया व्यंग्य व्यंजना है हमारे समकालीन परिवेश की ,जीवन और लिबास की ,कर्म कांडी दुशालों की ...
ram ram bhai
बुधवार, 12 सितम्बर 2012
देश की तो अवधारणा ही खत्म कर दी है इस सरकार ने .
बहुत सुन्दर रचना
जवाब देंहटाएं:-)
दिली जज़्बात .
जवाब देंहटाएंहर जगह तुझे निकट पाया है।
जवाब देंहटाएंmain baalak tu mata sheraan waaliye....hai atoot ye naata sheraan waaaliye.....
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर रचना !
जवाब देंहटाएंपर जो दिख रहा है
माँ किस को पुकारे?
बहुत सुन्दर रचना ...
जवाब देंहटाएं्बहुत ही सुन्दर भाव संजो्ये हैं।
जवाब देंहटाएं