मित्रों!
आज पेश कर रहा हूँ
अपनी शायरी के शुरूआती दिनों की
एक बहुत पुरानी ग़ज़ल!
हमने सूरत ही ऐसी पायी है।
उनको ऐसी अदा ही भाई है।।
दिल किसी काम में नही लगता,
याद जब से तुम्हारी आयी है।
घाव रिसने लगें हैं सीने के,
पीर चेहरे पे उभर आयी है।
साँस आती है,
धडकनें
गुम है,
क्यों मेरी जान पे बन आयी है।
गीत-संगीत बेसुरा सा है,
मन में बंशी की धुन समायी है।
मेरी सज-धज हैं,
बेनतीजा
सब,
प्रीत पोशाक नयी लायी है।
होठ हैं बन्द,
लब्ज
गायब हैं,
राज की बात है,
छिपायी
है।
चाहे कितनी बचा नजर मुझसे,
इश्क की गन्ध छुप न पायी है।
“रूप” से पेट तो नहीं भरता,
ऐसी हमने ख़ुराक खायी है।
|
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शुक्रवार, 28 सितंबर 2012
"प्रीत पोशाक नयी लायी है" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
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बहुत खूब सुंदर गजल,,,,
जवाब देंहटाएंRECENT POST : गीत,
wah . Kya baat kya baat kya baat
जवाब देंहटाएंबहुत - बहुत सुन्दर
जवाब देंहटाएंबेहतरीन रचना.....
:-)
बहुत बढ़िया ग़ज़ल दाद कबूल करें
जवाब देंहटाएंबहुत खूब..
जवाब देंहटाएंबहुत खूब..
जवाब देंहटाएंबहुत खूब।
जवाब देंहटाएं"होठ हैं बन्द, लब्ज गायब हैं,
जवाब देंहटाएंराज की बात है, छिपायी है।" बहुत ही उम्दा और दिलकश गज़ल |
सादर |
सुंदर रचना ...
जवाब देंहटाएं
जवाब देंहटाएंचाहे कितनी बचा नजर मुझसे,
इश्क की गन्ध छुप न पायी है।
बढ़िया अश आर है क्या मतला क्या मक्ता .
दास्तानें इश्क का अब क्या कहिये ,
ये आग बहुत हरजाई है .
किसी के बुझाए कब बूझ पाई है .
जवाब देंहटाएंचाहे कितनी बचा नजर मुझसे,
इश्क की गन्ध छुप न पायी है।
बढ़िया अश आर है क्या मतला क्या मक्ता .
दास्तानें इश्क का अब क्या कहिये ,
ये आग बहुत हरजाई है .
किसी के बुझाए कब बुझ पाई है .
अल्लाह दुहाई है दुहाई है .
बहुत सुन्दर बेहतरीन रचना.....
जवाब देंहटाएंबढ़िया गजल |
जवाब देंहटाएंआभार गुरु जी ||
एक अच्छी ग़ज़ल है पढ़वाई,
जवाब देंहटाएंशुक्रिया आभार औ' बधाई है।