बारिश
का हो गया सफाया।
आसमान
में कुहरा छाया।।
जब
खेतों में गया घूमने।
छटा
देख मन लगा झूमने।।
लदे
हुए बिरुओं पर गहने।
झूमर
से धानों ने पहने।।
कुछ
शाखाओं पर हरियाली।
कुछ
सोने जैसे रंग वाली।।
सोंधी-सोंधी
महक सुहाती।
मन
में खुशियाँ बहुत जगाती।।
तितली
उड़ती पंख हिलाती।
अपना
सुन्दर रूप दिखाती।।
फसलों
के कुछ बैरी टिड्डे।
हरियाली
में छिपकर बैठे।।
देख
रहे थे टुकर-टुकरकर।
पौधे
खाते कुतर-कुतरकर।।
इनके
भी तो कुछ दुश्मन हैं।
जो
इनका खा जाते तन हैं।।
जब
सूरज नभ में छा जाता।
कौओं
का दल इन्हें मिटाता।।
फसल
उगाना जिम्मेदारी।
करो
खेत की पहरेदारी।।
पौध
लगाओ, अन्न
उगाओ।
धरती
को खुशहाल बनाओ।।
|
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शुक्रवार, 21 सितंबर 2012
"धरती को खुशहाल बनाओ" बालकविता (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
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सुन्दर संदेश देती बढ़िया बाल कविता .
जवाब देंहटाएंसुन्दर रंगविरंगा बाल गीत.
जवाब देंहटाएंबेहतरीन बालगीत,,,
जवाब देंहटाएंRECENT P0ST ,,,,, फिर मिलने का
अनुपम शब्दों का संगम इस बालगीत में ... आभार
जवाब देंहटाएंसार्थक पोस्ट
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर बालगीत...
जवाब देंहटाएंसुन्दर
:-)
वाह बहुत खूब ....
जवाब देंहटाएंफसलों के कुछ बैरी टिड्डे।
जवाब देंहटाएंहरियाली में छिपकर बैठे।।
देख रहे थे टुकर-टुकरकर।
पौधे खाते कुतर-कुतरकर।।
बहुत सजीव चित्र खेती ओर खलिहान का ,प्रकृति के विधान का ...
छोटे छोटे, रोचक व गहन अवलोकन..
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर बालगीत....
जवाब देंहटाएंरोचक कृति...बहुत खूब |
जवाब देंहटाएंसादर नमन |
बहुत सुन्दर सचित्र बाल कविता अच्छी सीख देती हुई बहुत बधाई
जवाब देंहटाएंआपकी कविता सुखद हर्ष देती है.
जवाब देंहटाएंहार्दिक आभार,शास्त्री जी.
सुंदर बाल गीत, वाह !!!!!!!!
जवाब देंहटाएंसुंदर बाल कविता |
जवाब देंहटाएंwaakai zarurat hai dhartee ko khush haal banaane kee....sundar geet,
जवाब देंहटाएं