कालजयी साहित्य दे, चलते बने फकीर। नहीं डॉक्टर बन सके, तुलसी, सूर कबीर।१। आगे जिसके नाम के, लगा डॉक्टर होय। साहित्य के नाम पर, समझो उसे गिलोय।२। छन्दशास्त्र का है नहीं, जिनको कुछ भी ज्ञान। वो कविता के क्षेत्र में, पा जाते सम्मान।३। लिखकर के आलेख को, टुकड़ों में दो काट। बिना किसी प्रयास के, कविता बने विराट।४। भूल गये अपनी विधा, चमक-दमक में आज। जापानी के मोह में, पड़ा प्रबुद्ध समाज।५। |
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शनिवार, 8 सितंबर 2012
"दोहे-चलते बने फकीर" (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
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बहुत सटीक और सुन्दर प्रस्तुति...
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर
जवाब देंहटाएंक्या कहने
मोहर हो जापान की, बिके अधिक सामान |
जवाब देंहटाएंतांका चोका हाइगा, समझें ना नादान |
समझें ना नादान, दान नाना करवाए |
ना ना करते नात, बात अपनी मनवाए |
रविकर जाता भूल, गीतिका दोहा सोहर |
जाता है जापान, लगा के आता मोहर ||
वाह शास्त्री जी,,,,आपने तो दोहे के माध्यम से मन की बात कह दी,,,,आभार
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया सर जी..
जवाब देंहटाएं:-)
सारगर्भित दोहे इस शती के विडम्बना विद्रूप छिपाए हुएँ हैं .किस्सा याद आया ,हिंदी विभाग महर्षि दयानंद विश्वविद्यालय ,रोहतक में एक विस्तार भाषण देने नामवर सिंह जी को बुलाया गया था .इत्तेफाक से हमारे मित्रवर वागीश मेहता जी भी उन दिनों वहीँ थे शोध कार्य के सिलसिले में .हम दोनों ने भी इस कार्यक्रम में शिरकत की .हजारीप्रसाद द्विवेदी जी के शिष्य नामवर जी ने अपने भाषण में ज़िक्र किया -हजारीप्रसाद जी को पंजाब विश्वविद्यालय ,चंडीगढ़ में हिंदी विभाग में प्रोफ़ेसर बनाया गया .सवाल उठा आप पी .एचडी तो क्या विधिवत शिक्षित भी नहीं हैं .......इन नामवरों का बस चले तो कबीर और भक्ति धारा के तमाम संत कवियों को उठाके साहित्यिक कूड़े दान में फैंक दें .मेरा विभाग तो भौतिकी रहा है लेकिन साहित्य के प्रति अनुराग मुझे इन जगहों पे ले जाता रहा है .दिल्ली का हिंदी भवन हो या राजेन्द्र भवन ,इंडिया हेबितात सेंटर हो या इंडिया इंटरनेशनल सेंटर मैं पहुंचता रहा हूँ .नामवर जी और प्रभाष जोशीजी को एक ही मंच से सुना देखा है .जो आंच और नयापन जोशी जी में देखा हिंदी के इन नामचीन लोगों में कभी दिखलाई नहीं दिया .बीसम बीस ट्वेंटी ट्वेंटी मेच के लिए जोशी जी ही इस्तेमाल कर सकते थे ,बर्फ बारी भी (हिमपात की जगह )शब्दों का संधान करते थे जोशी जी और ये लोग ....जाने भी दो ...कोई गुस्ताखी न कर बैठें .
जवाब देंहटाएंवाह ..बहुत अच्छा व्यंग ..!
जवाब देंहटाएंछन्दशास्त्र का है नहीं, जिनको कुछ भी ज्ञान।
जवाब देंहटाएंवो कविता के क्षेत्र में, पा जाते सम्मान।३।
लिखकर के आलेख को, टुकड़ों में दो काट।
बिना किसी प्रयास के, कविता बने विराट।४।
गज़ब कर दिया शास्त्री जी दोहों के माध्यम से सीधा कटाक्ष किया है।
बहुत ही उपयोगी सीख..अपना घर पहले देखें..
जवाब देंहटाएंकविताये तो दिल से निकले भावों का क्रमबद्ध अनुरूप होता है!.........फिर भी सोचने पर विवश हो रहा हूँ, की क्या सच में साहित्य का मजाक उड़ा रहे है!......मै अपना आत्म-निरिक्षण अवश्य करूंगा इस तथ्य पर!!!!!!!!!!!!!!!!!!!
जवाब देंहटाएंछन्दशास्त्र का है नहीं, जिनको कुछ भी ज्ञान।
जवाब देंहटाएंवो कविता के क्षेत्र में, पा जाते सम्मान।
वाकई आज कि साहित्यिक दुनिया का सच है ये...सुन्दर कटाक्ष और सच का दर्पण..अच्छे और प्रभावशाली दोहें ...बधाई शास्त्री जी..प्रणाम
सार्थक दोहे, गुड़गाँव प्रवास में रहने के कारण विलम्ब से इस रचना तक पहुँचा हूँ......
जवाब देंहटाएंसुंदर रचना के लिये बधाई........