सबसे अच्छा विश्व में, अपना भारत देश।
नैसर्गिक अनुभाव के, सजे यहाँ परिवेश।१।
कामुकता-अश्लीलता, बढ़ती जग में आज।
इसके ही कारण हुआ, दूषित देश समाज।२।
ढोंग-दिखावा दिवस हैं, पश्चिम के सब वार।
रोज बदलते है जहाँ, सबके ही दिलदार।३।
एक दिवस की प्रतिज्ञा, एक दिवस का प्यार।
एक दिवस का चूमना, पश्चिम के
किरदार।४।
प्रतिदिन करते क्यों नहीं, प्रेम-प्रीत-व्यवहार।
एक दिवस के लिए क्यों, चुम्बन
का व्यापार।५।
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मंगलवार, 12 फ़रवरी 2013
"दोहे-बदल रहे परिवेश" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
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कामुकता-अश्लीलता, बढ़ती जग में आज।
जवाब देंहटाएंइसके ही कारण हुआ, दूषित देश समाज ...
सामयिक ... सार्थक दोहे ... आज को प्रतिबिंबित करते ...
जवाब देंहटाएंप्रतिदिन करते क्यों नहीं, प्रेम-प्रीत-व्यवहार।
एक दिवस के लिए क्यों, चुम्बन का व्यापार।५।
सार्थक दोहे
मान्यवर आपने बहुत अच्छी बातें कही है !!
जवाब देंहटाएंबढ़िया सामायिक दोहे,,,,
जवाब देंहटाएंRECENT POST... नवगीत,
बहुत सुंदर रचना
जवाब देंहटाएंबढ़िया दोहे -
जवाब देंहटाएंआभार गुरु जी ||
ढोंग-दिखावा दिवस हैं, पश्चिम के सब वार।
जवाब देंहटाएंरोज बदलते है जहाँ, सबके ही दिलदार।३।
बहुत सटीक बातें कही :)
वर्तमान मानसिकता पर सटीक टिप्पणी!
जवाब देंहटाएंअपने यहाँ भी अश्लीलता बढती ही जा रही है,बहुत ज्ञानवर्धक संदेश।
जवाब देंहटाएंजब मानसिकता ही दूषित हो जाय तो यही होता है!
जवाब देंहटाएंगुरु जी छा गये आप तो बिल्कुल सही कहा
जवाब देंहटाएंगुज़ारिश : ''..प्यार को प्यार ही रहने दो ..''
सुन्दर प्रभाब शाली अभिब्यक्ति .आभार .
जवाब देंहटाएंआगमन नए दौर का आप जिसको कह रहे
बो सेक्स की रंगीनियों की पैर में जंजीर है
आज के हालत में किस किस से हम बचकर चले
प्रशं लगता है सरल पर ये बहुत गंभीर है
जवाब देंहटाएंप्रेम दिवस मुबारक .मान्यवर बहुत सुन्दर दोहावली है .बस एक ही गुजारिश पहले पूरब के गिरेबान में झांकें फिर कोसें पश्चिम को .रोज़ यहाँ किरदार बदलते ,पूरब पश्चिम ,पश्चिम पूरब .
बहुत ही सटीक व् सार्थक रचना
जवाब देंहटाएंशास्त्री जी आभार ..........