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सोमवार, 25 फ़रवरी 2013
"मेरा एक पुराना संस्मरण" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
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जवाब देंहटाएंधन कमाने के लिए-
प्रोफ़ेसर का चरित्र हरण-
हम्म -
आज भी ऐसे बहुत मिल जायेगे शास्त्री जी,सादर नमन.
जवाब देंहटाएंसही बात है, जब मन में ही चोर रहेगा तो शब्दों में क्या निकलेगा।
जवाब देंहटाएं"अच्छा साहित्यकार बनने से पहले अच्छा व्यक्ति बनना बहुत जरूरी है।"
जवाब देंहटाएंआपकी इस बात से हम १००% सहमत है
पर आज कल ऐसे लोग मिलते कहाँ हैं ...बहुत से धोखा देने में भी परहेज नहीं करते
बहुत सुन्दर संस्मरण हुज़ूर | बधाई
जवाब देंहटाएंTamasha-E-Zindagi
Tamashaezindagi FB Page
प्रिय मित्र!
जवाब देंहटाएंबिटिया की शादी के कामों में अति व्यस्तता, फिर कई दिनों की बीमारी से कल ही तो निबटा हूँ और आप सब की सेवा में क्षमा याचना सहित उपस्थित हूँ-
मुझे अच्छी तरह याद है है कि श्रीमती वाचस्पति ने बड़े प्रे३म से कहा था एक टूटी चप्पल की और इंगित कर के, "एह चप्पल देख रहे हैं आप, टूटी है" इस बात में एक नारी का पति स्वाभिमान छुपा था !
बहुत प्यारा संस्मरण है !
बहुत सुंदर, बढिया रचना
जवाब देंहटाएंअच्छी सीख,,,कि अच्छा साहित्यकार बनने से पहले अच्छा व्यक्ति बनना बहुत जरूरी है।,,
जवाब देंहटाएंRecent Post: कुछ तरस खाइये
अच्छा साहित्यकार बनने से पहले अच्छा व्यक्ति बनना बहुत जरूरी है
जवाब देंहटाएंएक सीख
मानवीयता का पाठ हर क्षेत्र में ज़रूरी है.....
जवाब देंहटाएंअच्छा मनुष्य बनना तो हर क्षेत्र में अच्छा रहेगा.
जवाब देंहटाएंbahut hee sundar sansmaran aur aapki picture bhee!
जवाब देंहटाएं