मुखौटे राम के पहने हुए रावण जमाने में। लुटेरे ओढ़ पीताम्बर लगे खाने-कमाने में।। |
दया के द्वार पर, बैठे हुए हैं लोभ के पहरे, मिटी सम्वेदना सारी, मनुज के स्रोत है बहरे, सियासत के भिखारी व्यस्त हैं कुर्सी बचाने में। लुटेरे ओढ़ पीताम्बर लगे खाने-कमाने में।। |
जो सदियों से नही सी पाये अपने चाक दामन को, छुरा ले चल पड़े हैं हाथ वो अब काटने तन को, वो रहते भव्य भवनों में, कभी थे जो विराने में। लुटेरे ओढ़ पीताम्बर लगे खाने-कमाने में।। |
युवक मजबूर होकर खींचते हैं रात-दिन रिक्शा, मगर कुत्ते और बिल्ले कर रहें हैं दूध की रक्षा, श्रमिक का हो रहा शोषण, धनिक के कारखाने में। लुटेरे ओढ़ पीताम्बर लगे खाने-कमाने में।। |
दया के द्वार पर, बैठे हुए हैं लोभ के पहरे,
जवाब देंहटाएंमिटी सम्वेदना सारी, मनुज के स्रोत है बहरे,
सियासत के भिखारी व्यस्त हैं कुर्सी बचाने में।
लुटेरे ओढ़ पीताम्बर लगे खाने-कमाने में।।
बहुत सुन्दर शास्त्रीजी !
अच्छी ख़बर ली है इनकी - नए साल की शुरूआत में!
जवाब देंहटाएंनया वर्ष हो सबको शुभ!
जाओ बीते वर्ष
नए वर्ष की नई सुबह में
महके हृदय तुम्हारा!
बहुत सुंदर लिखा आप ने धन्यवाद इस सुंदर रचना के लिये
जवाब देंहटाएंयुवक मजबूर होकर खींचते हैं रात-दिन रिक्शा,
जवाब देंहटाएंमगर कुत्ते और बिल्ले कर रहें हैं दूध की रक्षा,
श्रमिक का हो रहा शोषण, धनिक के कारखाने में।
लुटेरे ओढ़ पीताम्बर लगे खाने-कमाने में।।
बेहतरीन। लाजवाब। आपको नए साल की मुबारकबाद।
bahut sundar aur sarthak rachna.
जवाब देंहटाएं"आशा है एक नए उमंग की,
जवाब देंहटाएंतरंग और उसके संवेग की॥
घूँघट उठाती दुल्हन २०१०...
और उसके स्पर्श की
मेरी दुल्हन २०१०
आपका स्वागत"
बहुत अच्छी रचना। बधाई।
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर अभिव्यक्ति.
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