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इनमें से तो सभी सब्जियाँ,
जवाब देंहटाएंहमने जी-भर खाईं!
इतनी सुंदर कविता पर भी,
यह कैसी मँहगाई?
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ओंठों पर मधु-मुस्कान खिलाती, कोहरे में भोर हुई!
नए वर्ष की नई सुबह में, महके हृदय तुम्हारा!
संयुक्ताक्षर "श्रृ" सही है या "शृ", मिलत, खिलत, लजियात ... ... .
संपादक : सरस पायस
वाह जितनी सुंदर सब्जियां दीख रही हैं उतना ही प्यारा बाल गीत.
जवाब देंहटाएंसब्जीमय गीत!! बढ़िया बाल गीत!!
जवाब देंहटाएंद्रिश्य आन्खो के आगे साकार हो गये.
जवाब देंहटाएंbahut badhiya gungunaane wale geet aur sath hi sath ek samayik baat mahngaai ke bare me..sundar bhav..badhai. shastri ji
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर लगा यह बाल गीत
जवाब देंहटाएंशास्त्री जी, अत्यंत मनोरम बाल गीत है...मजा आ गया पढ़कर
जवाब देंहटाएंnice
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छा.
जवाब देंहटाएंवाह अति सुंदर गीत.
जवाब देंहटाएंरामराम.
बेहतर रचना ,
जवाब देंहटाएंbadhiya baal geet.
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुन्दर प्रस्तुति है शास्त्रीजी..!
जवाब देंहटाएंpaani aa gaya muh mein...
जवाब देंहटाएंbahut he sundar prastuti shastri ji...
सब्जी ही नहीं हर चीज पर मँहगाई भारी पड़ रही है
जवाब देंहटाएंसुन्दर रचना
कल 13/अगस्त/2014 को आपकी पोस्ट का लिंक होगा http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर
जवाब देंहटाएंधन्यवाद !
बहुत बढ़िया
जवाब देंहटाएं