फागुन की फागुनिया लेकर, आया मधुमास!
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रविवार, 31 जनवरी 2010
“आया मधुमास!” (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री “मयंक”)
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कल का भजन भी बहुत अच्छा था और आज मधुमास की तारीफ के साथ पीले फूलों ने चार चांद लगा दिये.
जवाब देंहटाएंछम-छम कानों में बजती हैं गोरी की पायलियाँ,
जवाब देंहटाएंचहक उठी हैं, महक उठी हैं, सारी सूनी गलियाँ,
अद्भुत! शब्दचित्र ने मन मोह लिया!
शास्त्रीजी,
जवाब देंहटाएंपन्त जी की कविता पंक्ति की याद दिला दी आपने :
'उड़ती भीनी तैलाक्त गंध, फूली सरसों पीली-पीली !
लो, हरित धरा से झांक रही, नीलम की कलि तीसी नीली !!'
सच है, मधुमास में मन का मोर नाच उठता है.
सादर--आ.
होली की रागनियाँ लेकर आया है मधुमास!
जवाब देंहटाएंपेड़ों पर कोपलियाँ लेकर आया है मधुमास!!
-सुन्दर गीत, बधाई.
अच्छा गीत।
जवाब देंहटाएंहोली की रागनियाँ लेकर आया है मधुमास!
जवाब देंहटाएंपेड़ों पर कोपलियाँ लेकर आया है मधुमास!! .nice
छम-छम कानों में बजती हैं गोरी की पायलियाँ,
जवाब देंहटाएंचहक उठी हैं, महक उठी हैं, सारी सूनी गलियाँ,
होली की रागनियाँ लेकर आया है मधुमास!
पेड़ों पर कोपलियाँ लेकर आया है मधुमास!!
अति सुन्दर , बहुत खूब !
बहुत ही सुंदर गीत.
जवाब देंहटाएंरामराम.
बहुत ख़ूबसूरत गीत! आनंद आ गया!
जवाब देंहटाएंbahut hi sundar bilkul madhumas sa geet likha hai..........badhayi.
जवाब देंहटाएंवाह!शास्त्री जी इस गीत मे तो साक्षात मधुमास उतर आया है, ॠतुराज के साथ। आभार
जवाब देंहटाएंयह गीत अनुपम सौंदर्य
जवाब देंहटाएंऔर
मधुर स्वरों की
वर्षा कर रहा है!
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नवसुर में कोयल गाता है -"मीठा-मीठा-मीठा! "
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संपादक : सरस पायस
बसंत का सुन्दर वर्णन ..
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