आज अचानक बन गया एक संयोग घर में आ गये कुछ परिचित लोग विदेश-यात्रा का बन गया कार्यक्रम कार में बैठ गये उनके साथ हम कुछ रुपये जेब में लिए डाल आनन-फानन में पहुँच गये नेपाल सामने दिखाई दिया एक शहर नाम था उसका महेन्द्रनगर वहाँ बहुत थे आलीशान मकान एक खोके में थी चाय की दुकान दुकान में अजीब नजारा था रंगीन बोतलों का शरारा था गर्म चाय थी लिबासों में ठण्डी चाय थी गिलासों में हर दूकान पर थी एक बाला उडेल रही थी रूप की हाला यह देखकर मन में हुआ मलाल और अपने देश का आया ख्याल पश्चिम की होड़ में सभ्यता की दौड़ में हम भले ही पिछड़े हैं लेकिन चरित्र में हम आज भी अगड़े हैं। |
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jai ho !
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया साहब
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर जी
जवाब देंहटाएंकुछ ऐसा ही है आज कल ..बहुत बढ़िया रचना..धन्यवाद!!
जवाब देंहटाएंनए रूप में विदेशयात्रा-संस्मरण!
जवाब देंहटाएंवाह, क्या बात है!
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ओंठों पर मधु-मुस्कान खिलाती, कोहरे में भोर हुई!
नए वर्ष की नई सुबह में, महके हृदय तुम्हारा!
संयुक्ताक्षर "श्रृ" सही है या "शृ", मिलत, खिलत, लजियात ... ... .
संपादक : सरस पायस
वाह्! यात्रा संस्मरण का ये अन्दाज भी खूब रहा....
जवाब देंहटाएंडाक्टसा,
जवाब देंहटाएंआनंद ला दिया आपकी इस विदेश यात्रा ने। हम जब खटीमा आएंगे तब ज़रूर महेन्द्र नगर जाना चाहेंगे।
कितना दूर है महेन्द्र नगर आपके यहाँ से?
जवाब देंहटाएंशास्त्री जी,
जवाब देंहटाएंविदेश की ये शार्ट यात्रा बढ़िया रही...सुना है प्रचंड ने सीमावर्ती इलाकों में भारत के ख़िलाफ़ प्रचंड विषगमन अभियान छेड़ रखा है...
जय हिंद...
सुंदर!
जवाब देंहटाएंभाई समीर लाल जी!
जवाब देंहटाएं25 किमी दूर है हमारे घर खटीमा से नेपाल का यह शहर
महेन्द्रनगर!
सुंदर वर्णन रहा.
जवाब देंहटाएंरामराम.
chalo hum bhi videsh yatra ko ho aayein!
जवाब देंहटाएंsahi baat kahi aapne..hamara desh charitr ke mamle mein nihsandeh aage hain...
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर शास्त्री जी, वैसे एक बात कहूँ , विदेश में आप शायद रास्ता भटक गए थे :)
जवाब देंहटाएंnepaal kaa haal!!!jaakar apne desh ka khyaal !! sundar mishaal!!
जवाब देंहटाएंभौतिकता की अंधी दौड़ ने क्या कर दिया!
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर.... हमारे गोरखपुर से भी नेपाल बहुत पास है.... पहले हम लोग मोटर साईकिल से ही चले जाते थे..... उस वक़्त भी बालाएं चाय परोसतीं थीं..... बहुत अच्छी लगी आपकी यह पोस्ट....
जवाब देंहटाएंबढिया, भारत में जो कुछ है चरित्र ही तो है, जिसे लोग अब समाप्त कर देना चाहते हैं। अच्छा चिन्तन बधाई।
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