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आजकल सर्दी सब पर भारी है। बीच - बीच में घना कोहरा भी घिर आता है। आज तो पूरे दिन कोहरा बूँद - बूँद कर बरसता रहा। फिर भी सब कुछ अपनी चाल चल रहा है।
जवाब देंहटाएंउफ़ सर्दी में बुरा हाल है ...आपकी कविता ने थोड़ी रहत पहुंचाई...खुबसूरत अभिव्यक्ति सर !
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर रचना....
जवाब देंहटाएंपंखों में हवा भरे बैठे पखेरू सब,
जवाब देंहटाएंबादल के स्वेटर पर टँका हुआ दिन!
शास्त्री जी,
जवाब देंहटाएंसमय, काल और दशा का सुन्दर शब्द-चित्र ! सचमुच, ठहरा हुआ, ठिठका हुआ जीवन...
साभिवादन--आ.
सभी दिशाओं में बराबर फोकस किया आपने इस कोहरे और जाड़े के बहाने को लेकर..वैसे कविता बहुत बढ़िया लगी..यही सच भी है..धन्यवाद शास्त्री जी
जवाब देंहटाएंसर्दी के जीवन का यथार्थ दर्शाती रचना..सुन्दर!!
जवाब देंहटाएंइस रचना ने मन मोह लिया।
जवाब देंहटाएंइस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंthandi ke sathjeevan ki sabhi aavshktao ko bhut sundar dhang se prstut kiya hai aapne .
जवाब देंहटाएंबहुत सर्दी है जी, लेकिनआप की इस रचना ने थोडी गर्मी दे दी बहुत सुंदर
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर रचना
जवाब देंहटाएंठण्डक से दिनचर्या
जवाब देंहटाएंहुई मटियामेट है
good!
बहुत ही सुन्दर अभिव्यक्ति ।
जवाब देंहटाएंसमय व परिस्थितियों के बहुत ही अनुरूप कविता है।
जवाब देंहटाएंघुघूती बासूती
खूबसूरत चित्रांकन करते शब्द और अंत में महंगाई के सन्दर्भ ने नया आयाम जोड़ दिया है . उत्तम रचना !
जवाब देंहटाएंwaah waah............bahut hi sundar kavita likhi hai......sach yahi haal hai aajkal.
जवाब देंहटाएंवाकई में ठहर गया है.
जवाब देंहटाएंkya baat hai ji kya baat hai...
जवाब देंहटाएंसर्दी और कोहरे के कारण घर ही सुरक्षित लगता है और घर में बैठकर बस कीजिए ब्लोगिंग और साथ में चाय और पकौडों का आनन्द लीजिए।
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर रचना.
जवाब देंहटाएंरामराम.
मँह्गाई की आग में बदन तो क्या पूरा जिस्म पूरा दिल फुँक गया है.
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर रचना