आज हमने मनाया इकसठवाँ गणतन्त्र फूँक दिया जन-मानस में वरिष्ठता का मन्त्र यह तन्त्र हो गया सेवा निवृत्त बाहर कर दिया परिधि से वृत्त नही कह पा रहे खुलकर शब्द हो रहे मौन हैं क्योंकि आज बुजुर्ग की मानता ही कौन है?? ( चित्र गूगल सर्च से साभार) |
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मंगलवार, 26 जनवरी 2010
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बहुत सुन्दर रचना है शास्त्री जी.
जवाब देंहटाएंगणतंत्र दिवस की शुभकामनायें.
Bilkul theek kaha sir, sab apni dhun me mast hain....
जवाब देंहटाएंJai Hind...
सच कह रहे हैं आप... आजकल बुजुर्गों की बात मानता ही कौन है?
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर कविता....
मैं तो मानने की कोशिश करता हूं. कई दफा कुछ मतभिन्नता भी हो जाती है. लेकिन अस्सी दफा तो मानता ही हूं.
जवाब देंहटाएंशास्त्री जी,
जवाब देंहटाएंज़रूर मानेंगे मगर पहले भारत का नक्शा ठीक कर दीजिये. आपके लगाए हुए इस नक़्शे में उत्तर भारत का काफी हिस्सा गायब है
@Smart Indian - स्मार्ट इंडियन जी!
जवाब देंहटाएंगूगल सर्च से ही तो भारत के नक्शे लगाए हैं!
bahut sundar kavita aapki..
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर.
जवाब देंहटाएंरामराम.
सुन्दर रचना, शास्त्री जी !बस यूँ समझिये की सठिया गया अपना गणतंत्र भी :)
जवाब देंहटाएंआपकी भी गणतंत्र दिवस की शुभकामनायें !
गण्तन्त्र के माध्यम से आज का सच सही मै बुजुर्गों की कौन सुनता है धन्यवाद्
जवाब देंहटाएंwaah........bilkul sahi baat kahi aapne.
जवाब देंहटाएंbahut badhiya shastri ji...
जवाब देंहटाएंshubhkaamnaayein!
वाह, पहले गरिष्ट था, अब वरिष्ठ है। :-)
जवाब देंहटाएंहां इस नक्शे पर बहुत आपत्ति है। आप अपनी पोस्ट लिख रहे हैं गूगल की नहीं!
हटा दिया है जी सिर-कटा नक्शा!
जवाब देंहटाएंसुझाव के लिए आभार!
ठीक कहा आपने शास्त्रीजी आपने लेकिन भारत अब युवाओं का देश है ,देश के संचालन का कुछ प्रभार तो युवाओं को भी प्रदान करना चाहिए! बेहतरीन !
जवाब देंहटाएं