जो बहती गंगा मे अपने हाथ नही धो पाया, जीवनरूपी भवसागर को कैसे पार करेगा? जो मानव-चोला धर कर इन्सान नही हो पाया, वो कुदरत की संरचना को कैसे प्यार करेगा? |
जो लेने का अभिलाषी है, देने में पामर है, जननी-जन्मभूमि का. वो कैसे आभार करेगा? वो कुदरत की संरचना को कैसे प्यार करेगा? |
जो स्वदेश का खाता और परदेशों की गाता है, वो संकटमोचन बनकर, कैसे उद्धार करेगा? वो कुदरत की संरचना को कैसे प्यार करेगा? |
जो खेतों और खलिहानों में, चिंगारी दिखलाता. प्रेम-प्रीत के घर का वो, कैसे आधार धरेगा? वो कुदरत की संरचना को कैसे प्यार करेगा? |
सही है, जिसे प्रकृति से प्यार नहीं, वह पशु है इंसान नहीं॥
जवाब देंहटाएंसुंदर रचना .. सही है !!
जवाब देंहटाएं"बहती गंगा में हाथ धोना" -
जवाब देंहटाएंइस मुहावरे का बिल्कुल अभिनव प्रयोग
किया गया है, इस गीत में!
ओंठों पर मधु-मुस्कान खिलाती शुभकामनाएँ!
नए वर्ष की नई सुबह में, महके हृदय तुम्हारा!
संयुक्ताक्षर "श्रृ" सही है या "शृ", FONT लिखने के 24 ढंग!
संपादक : "सरस पायस"
शास्त्री जी एक सशक्त रचना..सुंदर भावों की प्रवाह करती एक बेहतरीन कविता..धन्यवाद!!
जवाब देंहटाएंशास्त्री जी बहुत सुंदर रचना.
जवाब देंहटाएंधन्यवाद
जो स्वदेश का खाता और परदेशों की गाता है,
जवाब देंहटाएंवो संकटमोचन बनकर, कैसे उद्धार करेगा?
बहुत सुन्दर.
सुंदर भाव के साथ ....सुंदर रचना.....
जवाब देंहटाएंबिलकुल सही कहा आपने
जवाब देंहटाएंजो स्वदेश का खाता और परदेशों की गाता है,
वो संकटमोचन बनकर, कैसे उद्धार करेगा?
वो कुदरत की संरचना को कैसे प्यार करेगा?
बहुत उम्दा रचना!!
जवाब देंहटाएं’सकारात्मक सोच के साथ हिन्दी एवं हिन्दी चिट्ठाकारी के प्रचार एवं प्रसार में योगदान दें.’
-त्रुटियों की तरफ ध्यान दिलाना जरुरी है किन्तु प्रोत्साहन उससे भी अधिक जरुरी है.
नोबल पुरुस्कार विजेता एन्टोने फ्रान्स का कहना था कि '९०% सीख प्रोत्साहान देता है.'
कृपया सह-चिट्ठाकारों को प्रोत्साहित करने में न हिचकिचायें.
-सादर,
समीर लाल ’समीर’
शास्त्री जी बहुत सुंदर रचना.
जवाब देंहटाएंधन्यवाद
जो स्वदेश का खाता और परदेशों की गाता है,
जवाब देंहटाएंवो संकटमोचन बनकर, कैसे उद्धार करेगा?
वो कुदरत की संरचना को कैसे प्यार करेगा
Bahut khoob, aajkal inhee kee chal rahee hai !
waah waah shastri ji ..............bahut hi sudar likha hai............prakriti se pyar karne wala hi mahaan hai.
जवाब देंहटाएंसही बात है.
जवाब देंहटाएंजो मानव-चोला धर कर इन्सान नही हो पाया,
जवाब देंहटाएंवो कुदरत की संरचना को कैसे प्यार करेगा?
बहुत सही कहा शास्त्री जी।
जो स्वदेश का खाता और परदेशों की गाता है,
जवाब देंहटाएंवो संकटमोचन बनकर, कैसे उद्धार करेगा?..
सत्य वचन शास्त्री जी ......... उत्तम बात कही है आपने ...........