पूजनीय पाँव हैं, धरा जिन्हें निहारती। सराहनीय शूद्र हैं, पुकारती है भारती।। चरण-कमल वो धन्य हैं, जो जिन्दगी को दें दिशा, वे चाँद-तारे धन्य हैं, हरें जो कालिमा निशा, प्रसून ये महान हैं, प्रकृति है सँवारती। सराहनीय शूद्र हैं, पुकारती है भारती।। जो चल रहें हैं, रात-दिन, वो चेतना के दूत है, समाज जिनसे है टिका, वे राष्ट्र के सपूत है, विकास के ये दीप हैं, मही इन्हें दुलारती। सराहनीय शूद्र हैं, पुकारती है भारती।। जो राम का चरित लिखें, वो राम के अनन्य हैं, जो जानकी को शरण दें, वो वाल्मीकि धन्य हैं, ये वन्दनीय हैं सदा, उतारो इनकी आरती। सराहनीय शूद्र हैं, पुकारती है भारती।। |
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रविवार, 4 जुलाई 2010
“पाँव वन्दना” (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री "मयंक")
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जवाब देंहटाएंवास्तव में ब्राह्मण-शूद्र का भेद ही हिन्दुओं के लिये घोर कष्टदायक बनता जा रहा है. एक समतामूलक समाज की स्थापना आज हिन्दुओं और भारत के लिये सबसे बड़ी आवश्यकता है...
प्रणाम आपको !
जवाब देंहटाएंप्रणाम आपको !
जवाब देंहटाएंnice
जवाब देंहटाएंजो चल रहें हैं, रात-दिन,
जवाब देंहटाएंवो चेतना के दूत है,
समाज जिनसे है टिका,
वे राष्ट्र के सपूत है,
आनंद आ गया !
बहुत सुन्दर.
जवाब देंहटाएंसत्य वचन जी
जवाब देंहटाएंजो चल रहें हैं, रात-दिन,
जवाब देंहटाएंवो चेतना के दूत है,
समाज जिनसे है टिका,
वे राष्ट्र के सपूत है,
आनंद आ गया !
बिलकुल सही कहा । बहुत अच्छी है रचना बधाई
अनुकरणीय प्रस्तुति....सुन्दर रचना..
जवाब देंहटाएंयह तो एक कवि का ही सम्मान हुआ ना ।
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर रचना...... बधाई....
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर रचना...... बधाई.
जवाब देंहटाएंअच्छे विचार
जवाब देंहटाएंजो राम का चरित लिखें,
जवाब देंहटाएंवो राम के अनन्य हैं,
जो जानकी को शरण दें,
वो वाल्मीकि धन्य हैं,
अनुपम रचना ... आशा का संचार करती है ...आपको प्रणाम ...
वाह वाह्……………………।बहुत ही सुन्दर वन्दना।
जवाब देंहटाएंअह्सानों के समर्पित भाव,पांव वन्दन!!
जवाब देंहटाएंसुन्दर कविता ।
जवाब देंहटाएंमंगलवार 06 जुलाई को आपकी रचना ... चर्चा मंच के साप्ताहिक काव्य मंच पर ली गयी है आभार
जवाब देंहटाएंhttp://charchamanch.blogspot.com/
एक सही रचनाकार का कामकुरीतियों के जाल में जकड़े समाज में छटपटाने की भावना और उस जाल को तोड़ने की शक्ति जागृत करना है।
जवाब देंहटाएंयह काम आप ब-ख़ूबी कर रहे हैं।
परमात्मा ने हमें खुशबूदार फूल बनाया है, क्या हम यह खुशबू सब तक फैला रहे हैं।
बहुत अच्छा लिखा है शाश्त्री जी
जवाब देंहटाएंआदरणीय शास्त्री जी को प्रणाम! सराहनीय शूद्र हैं, पुकारती है भारती।। अच्छी कविता। ईश्वर की सच्चे मन से अराधना, वर्ण भेद गौण हो जाता है, 'सुवा पढ़ावत गणिका तारी' और निषाद की भक्ति इसका प्रमाण है।
जवाब देंहटाएंबेहतरीन रचना और सराहनीय भावनाएं ! मैं आपसे सहमत हूँ !
जवाब देंहटाएंnaman...iske siva to shabd kahne hi nahi chahiye is par
जवाब देंहटाएंजो जानकी को शरण दें,
जवाब देंहटाएंवो वाल्मीकि धन्य हैं,
इस अप्रतिम रचना के लिए बधाई स्वीकार करें...
नीरज
शिल्पगतरूप से सुगठित एवं भावसंपन्न गीत के लिए बधाई स्वीकारें।
जवाब देंहटाएंस्वर्गीय मोतीराम शास्त्री ’शूद्र’ शब्द का तत्सम रूप ’शुद्ध’ बताया करते थे। आपकी रचना में ’शूद्र’ महिमा के प्रतिपादन से उनके कथन की पुष्टि हो गई।
सद्भावी -डॉ० डंडा लखनवी
शिल्पगतरूप से सुगठित एवं भावसंपन्न गीत के लिए बधाई स्वीकारें।
जवाब देंहटाएंस्वर्गीय मोतीराम शास्त्री ’शूद्र’ शब्द का तत्सम रूप ’शुद्ध’ बताया करते थे। आपकी रचना में ’शूद्र’ महिमा के प्रतिपादन से उनके कथन की पुष्टि हो गई।
सद्भावी -डॉ० डंडा लखनवी
शिल्पगतरूप से सुगठित एवं भावसंपन्न गीत के लिए बधाई स्वीकारें।
जवाब देंहटाएंस्वर्गीय मोतीराम शास्त्री ’शूद्र’ शब्द का तत्सम रूप ’शुद्ध’ बताया करते थे। आपकी रचना में ’शूद्र’ महिमा के प्रतिपादन से उनके कथन की पुष्टि हो गई।
सद्भावी -डॉ० डंडा लखनवी
शिल्पगतरूप से सुगठित एवं भावसंपन्न गीत के लिए बधाई स्वीकारें।
जवाब देंहटाएंस्वर्गीय मोतीराम शास्त्री ’शूद्र’ शब्द का तत्सम रूप ’शुद्ध’ बताया करते थे। आपकी रचना में ’शूद्र’ महिमा के प्रतिपादन से उनके कथन की पुष्टि हो गई।
सद्भावी -डॉ० डंडा लखनवी
बहुत भाव भीनी रचना |बधाई
जवाब देंहटाएंआशा
प्रेरक गीत.
जवाब देंहटाएंअच्छे विचार....... बहुत खूब!
जवाब देंहटाएंउपयोगी और जरूरी कविता प्रकाशित करने के लिए आभार.
जवाब देंहटाएं