चौमासे में आसमान में, घिर-घिर बादल आये रे! श्याम-घटाएँ विरहनिया के, मन में आग लगाए रे!! उनके लिए सुखद चौमासा, पास बसे जिनके प्रियतम, कुण्ठित हैं उनकी अभिलाषा, दूर बसे जिनके साजन , वैरिन बदली खारे जल को, नयनों से बरसाए रे! श्याम-घटाएँ विरहनिया के, मन में आग लगाए रे!! पुरवा की जब पड़ीं फुहारें, ताप धरा का बहुत बढ़ा, मस्त हवाओं के आने से , मन का पारा बहुत चढ़ा, नील-गगन के इन्द्रधनुष भी, मन को नहीं सुहाए रे! श्याम-घटाएँ विरहनिया के, मन में आग लगाए रे!! जिनके घर पक्के-पक्के हैं, बारिश उनका ताप हरे, जिनके घर कच्चे-कच्चे हैं, उनके आँगन पंक भरे, कंगाली में आटा गीला, हर-पल भूख सताए रे! श्याम-घटाएँ विरहनिया के, मन में आग लगाए रे!! |
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शुक्रवार, 30 जुलाई 2010
“आग लगाए रे!” (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री “मयंक”)
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वाह!
जवाब देंहटाएंआज तो सच मे आग लगाती कविता लिख दी है………………बडी ही मस्त है।
जवाब देंहटाएंयह गीत दिल को छू गया सुंदर अभिव्यक्ति ,बधाई
जवाब देंहटाएंबहुत लाजवाब गीत.
जवाब देंहटाएंरामराम.
Sir ..Hamesha ki trah ye kavita bhi bahut achhi lagi.
जवाब देंहटाएंAchhi kavita men sachhi baat.
भवतां सर्वाणि काव्यानि भावपूरितानि प्रेरकाणि च भवन्ति ।
जवाब देंहटाएंधन्यवादा:
शोभनम् काव्यम्
ब्लाग जगत पर संस्कृत प्रशिक्षण की कक्ष्या में आपका स्वागत है ।
http://sanskrit-jeevan.blogspot.com/ पर क्लिक करके कक्ष्या में भाग ग्रहण करें ।
वाह जी बहुत सुंदर लगी आप की यह कविता. धन्यवाद
जवाब देंहटाएंawesome :)
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया गीत!
जवाब देंहटाएंमन मुदित हो गया!
--
मेरा मन सरस झोंका!
सरस चर्चा में गुनगुन करती आई गुनगुन
यह कविता पढ़कर आग लग गयी।
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुन्दर...!
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुन्दर...!
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर भावपूर्ण गीत
जवाब देंहटाएंइतनी आत्मीयता से लिखी गई रचना है कि लगता है इसकी आत्मीयता हमारे आस-पास फैली हुई है। आप अपनी बातों से पाठक को अपना बना लेते है। फुहारों से ताप का बढना हमें अंदर तक भिंगो देता है। सहज ही अंदाजा लगा सकता हूँ कि विरहनी की क्या मानसिक हालत हो सकती है। आपका लेखन एक प्रेरणास्रोत हैं।
जवाब देंहटाएंइन्द्रधनुष की तरह रचना भी बेहद ख़ूबसूरत लिखा है आपने! लाजवाब!
जवाब देंहटाएंशानदार है सावन में विरह का वर्णन ।
जवाब देंहटाएंkhoobsurat rachnaa
जवाब देंहटाएं
जवाब देंहटाएंश्याम घटाओं के बहाने बहुत कुछ कह दिया।
…………..
प्रेतों के बीच घिरी अकेली लड़की।
साइंस ब्लॉगिंग पर 5 दिवसीय कार्यशाला।
सुंदर गीत |
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर रचना। बधाई।
जवाब देंहटाएंकंगाली में आटा गीला,
जवाब देंहटाएंहर-पल भूख सताए रे!
क्या बात है शास्त्री जी यह पंक्तियाँ तो जान हैं इस कविता की ।
बहुत अच्छी प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएं