बादलों का साज बजा नील गगन में। थिरक रही दामिनी घनश्याम के तन में।। बह रही पुरवाई आज आन-बान से, जंगलों में नाच रहे मोर शान से, मस्त हो रहे हैं जन्तु आज मिलन में। थिरक रही दामिनी घनश्याम के तन में।। जल की धार गा रहीं मल्हार आज हैं, विरह को जगा रहीं फुहार आज हैं, ज्वार प्यार का चढ़ा है आज बदन में। थिरक रही दामिनी घनश्याम के तन में।। भर गये हैं सारे आज ताल-तलैय्या, बाँसुरी की तान सुनाते हैं कन्हैय्या, सजनी का ध्यान लगा आज सजन में। थिरक रही दामिनी घनश्याम के तन में।। |
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बुधवार, 7 जुलाई 2010
"घनश्याम के तन में!” (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री “मयंक”)
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इस भीगे भीगे मौसम में आपकी इस सुन्दर रचना ने गज़ब ढा दिया, मस्ती को और बढ़ा दिया
जवाब देंहटाएंधन्यवाद !
मौसम के अनुकूल सुन्दर रचना.
जवाब देंहटाएंथिरक रही दामिनी घनश्याम के तन में।।
जवाब देंहटाएंसौन्दर्य की रेखा ।
कुछ तो मौसम ही ऐसा ही कुछ कमाल आपकी रचना का है !
जवाब देंहटाएंबेहद उम्दा रचना !
बढ़िया कविता!
जवाब देंहटाएंभर गये हैं सारे आज ताल-तलैय्या,
जवाब देंहटाएंबाँसुरी की तान सुनाते हैं कन्हैय्या,
सजनी का ध्यान लगा आज सजन में।
थिरक रही दामिनी घनश्याम के तन में।।
सुन्दर समसामयिक रचना बधाई
शास्त्रीजी
जवाब देंहटाएंप्रणाम !
बहुत मनोरम गीत लिखा है , अति सुंदर !
चित्त पर छा जाने वाला !
हृदय में बस जाने वाला !
एक एक बंध को क्या बांधा है , शास्त्रीजी !
मैं तो गा गा ' कर आनन्द द्विगुणित कर रहा हूं ।
थिरक रही दामिनी घनश्याम के तन में…
कोटिशः आभार और नमन !!
- राजेन्द्र स्वर्णकार
शस्वरं
aaj mausam bada be-imaan hai....
जवाब देंहटाएंaafareen!
अच्छी कविता!
जवाब देंहटाएंआनन्दित कर देने वाला..
जवाब देंहटाएंाआज तो सचमुच दामिनी चमक रही है……………………बेहद उम्दा रचना…………बधाई।
जवाब देंहटाएंजल की धार गा रहीं मल्हार आज हैं,
जवाब देंहटाएंविरह को जगा रहीं फुहार आज हैं,
बहुत सुन्दर गीत....
सजनी का ध्यान लगा आज सजन में
जवाब देंहटाएंक्या बात है चाचाजी
आज तो आपने सौंदर्यबोध को जगा दिया
आपकी भाषा पर तो कोई भी मर मिट सकता है.
शास्त्री जी में भी इसे गाकर आनंद ले रहा हूँ - बधाई तथा आभार
जवाब देंहटाएं