“कोरा हास्य”
मुझसे बतियाने को कोई, चेली बन जाया करती है! तब मुझको बातों-बातों में, हँसी बहुत आया करती है! जान और पहचान नही है, देश-वेश का ज्ञान नही है, टूटी-फूटी रोमन-हिन्दी, हमें चिढ़ाया सा करती है! तब मुझको बातों-बातों में, हँसी बहुत आया करती है! कोई बिटिया बन जाती है, कोई भगिनी बन जाती है, कोई-कोई तो बुड्ढे की, साली कहलाया करती है! तब मुझको बातों-बातों में, हँसी बहुत आया करती है! आँख लगी तो सपना आया, आँख खुली तो मैंने पाया, बिन सिर पैरों की लिखने से, सैंडिल पड़ जाया करती हैं! तब मुझको बातों-बातों में, हँसी बहुत आया करती है! जाल-जगत की महिमा न्यारी, वाह-वाही लगती है प्यारी, अपनी करो प्रशंसा जमकर, श्लाघा मन-भाया करती है! तब मुझको बातों-बातों में, हँसी बहुत आया करती है! |
आँख लगी तो सपना आया,
जवाब देंहटाएंआँख खुली तो मैंने पाया,
बिन सिर पैरों की लिखने से,
सैंडिल पड़ जाया करती हैं!
हा हा हा………………लगता है मौसम का असर हो गया है आप पर भी…………………बच के रहियेगा कहीं सपना सच ना हो जाये।
nice
जवाब देंहटाएंहा हा!! हँसने वाली तो बात भी हैं सारी. :)
जवाब देंहटाएंअजी शास्त्री जी आप तो ऎसे न थे :)
जवाब देंहटाएंहा हा हा.. हास्य से भरपूर बहुत बढिया रचना...
ये तो कमाल का चिंतन है।
जवाब देंहटाएंआजकल जो हो रहा है उसे ही समेट लिया है आपने।
हम तो इसे गंभीरता से ले रहे हैं।
जान और पहचान नही है,
देश-वेश का ज्ञान नही है,
टूटी-फूटी रोमन-हिन्दी,
हमें चिढ़ाया सा करती है!
तब मुझको बातों-बातों में,
हँसी बहुत आया करती है!
चैट तो करेंगे नहीं और करेंगे भी तो बस देवनागरी में। और दुरुस्त हिन्दी में।
हा हा हा वाह भाई साहिब क्या खूब रचना है। बधाई
जवाब देंहटाएंnamskar ji parhkar bahut maja aaya
जवाब देंहटाएंarganikbhagyoday.blogspot.com
:-)
जवाब देंहटाएंmazaa aa gaya padh ke..
जवाब देंहटाएंतब मुझको बातों-बातों में,
जवाब देंहटाएंहँसी बहुत आया करती है!
वाह !! वाह !!
:)बहुत सही.
जवाब देंहटाएंjai ho aapki...............
जवाब देंहटाएंkhoob hansaaya....
sathe pe patha badhai ho aisi hee kavitayne likhte rahen santosh ke liye, jvani ke din jo dhal chuke hain
जवाब देंहटाएंसाहब ! और किसी से कोई संबंध हो या न हो किन्तु जो जैसा देखना चाहे अपनी प्रतिच्छाया देखनो स्वतंत्र है!
जवाब देंहटाएंबाकी बढ़्या हास्य !
निर्मल हास्य!!!
तजुर्बे की बात है
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर
अपनी करो प्रशंसा जमकर,
जवाब देंहटाएंश्लाघा मन-भाया करती है!
येल्लो !! इतनी अच्छी कविता और पाठक वाह, वाह! ना कहें ऐसा नहीं हो सकता शास्त्री जी.
यह कविता सभी से संबंधित है.
धन्यवाद. :)
अरे आप तो अच्छा हास्य भी लिखते हैं
जवाब देंहटाएंपढ़कर मुस्कान तैर गई है
बधाई.
बिन सिर पैरों की लिखने से,
जवाब देंहटाएंसैंडिल पड़ जाया करती हैं!
:):)
वाह, सुन्दर, स्वस्थ हास्य ।
जवाब देंहटाएंगुरुदेव बहुत सुन्दर रचना..वाह
जवाब देंहटाएंa useless composition of words which all our saying poem my god what a misuse of blog
जवाब देंहटाएंअंदाज बहुत भाया
जवाब देंहटाएंबहुत ख़ूब शास्त्री जी
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आज तो बिलकुल नया रंग है इस कविता में...मज़ा आ गया.....
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