निर्दोष से प्रसून भी डरे हुए हैं आज। चिड़ियों के कारागार में पड़े हुए हैं बाज। अश्लीलता के गान नौजवान गा रहा, चोली में छिपे अंग की गाथा सुना रहा, भौंडे सुरों के शोर में, सब दब गये हैं साज। चिड़ियों के कारागार में पड़े हुए हैं बाज।। श्वान और विडाल जैसा मेल हो रहा, नग्नता, निलज्जता का खेल हो रहा, कृष्ण स्वयं द्रोपदी की लूट रहे लाज। चिड़ियों के कारागार में पड़े हुए हैं बाज।। भटकी हुई जवानी है भारत के लाल की, ऐसी है दुर्दशा मेरे भारत - विशाल की, आजाद और सुभाष के सपनों पे गिरी गाज। चिड़ियों के कारागार में पड़े हुए हैं बाज।। लिखने को बहुत कुछ है अगर लिखने को आयें, लिख -कर कठोर सत्य किसे आज सुनायें, दुनिया में सिर्फ मूर्ख के, सिर पे धरा है ताज। चिड़ियों के कारागार में पड़े हुये हैं बाज।। रोती पवित्र भूमि, आसमान रो रहा, लगता है, घोड़े बेच के भगवान सो रहा, अब तक तो मात्र कोढ़ था, अब हो गयी है खाज। चिड़ियों के कारागार में पड़े हुए हैं बाज।। |
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मंगलवार, 27 जुलाई 2010
“घोड़े बेच के भगवान सो रहा” (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री “मयंक”)
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करीब एक महीने के बाद वापस आकर आपकी सुन्दर कविता पढ़कर मन प्रफुल्लित हो उठा! हमेशा की तरह लाजवाब प्रस्तुती!
जवाब देंहटाएंअश्लीलता के गान नौजवान गा रहा,
जवाब देंहटाएंचोली में छिपे अंग की गाथा सुना रहा,
भौंडे सुरों के शोर में, सब दब गये हैं साज।
चिड़ियों के कारागार में पड़े हुए हैं बाज।।
....लाजवाब प्रस्तुती!
हमेशा की तरह लाजवाब प्रस्तुती!
जवाब देंहटाएंआपकी कविता की पीड़ा सारे देश की है। सुन्दर प्रस्तुतीकरण।
जवाब देंहटाएंउद्देलित कर देती अभिव्यक्ति!!
जवाब देंहटाएंअन्तर्मन तक झक्झोर जाती है।
आभार
sir ..hamesha accha hi padhne ko likhte hai aap :)
जवाब देंहटाएंkiller performance guru ji....
जवाब देंहटाएंteer si teekhi rachna.!
'अब तक तो मात्र कोढ़ था, अब हो गयी है खाज।'
जवाब देंहटाएं- वास्तविकता उजागर कर दी है.
देश और समाज की पीडा का दर्द उभर कर आ गया है…………बेहद संवेदनशील रचना।
जवाब देंहटाएंनमन आपको और आपकी लेखनी को !
जवाब देंहटाएंpahli baar aya, lekin rachna pad aana sarthak ho gya.
जवाब देंहटाएंसुन्दर शब्द रचना, आभार ।
जवाब देंहटाएंसामाजिक पीड़ा दर्शाती हुई लाजबाब प्रस्तुति.
जवाब देंहटाएंबच्चों की पढ़ाई के कारण नगर में बसे परंतु खेती के कारण बारम्बार गांव की ओर भागना पड़ता है। यह देखकर मन प्रसन्न है कि जो काम मैं करना चाहता था वह चल रहा है। भंडाफोड़ कार्यक्रम मूलतः स्वामी दयानंद जी का ही अभियान है। इसमें मेरी ओर से सदैव सहयोग रहेगा। कामदर्शी की पोल मैंने अपने ब्लॉग पर खोल ही दी है। अनवर को मैं आरंभ से ही छकाता थकाता आ रहा हूं।
जवाब देंहटाएंपीड़ा को बहुत खूब उकेरा है इस रचना में.
जवाब देंहटाएंपंडित जी आपकी व्यथा लाज़िमी है !
जवाब देंहटाएंहमें यह सोचना पड़ेगा कि क्या वर्तमान में जो तहजीब हम अपना रहे है या अपना चुके हैं वह वास्तव में इन घनेरे अंधेरों को चीर सकने में सहायक हैं अथवा नहीं!!! अगर नहीं तो हमें ऐसी तहजीब को अपनाना होगा जो वास्तव में ऐसा कर सके...
सलीम ख़ान
Sir ji...Bilkul satya baat kahi hai aapne. Lajavaab rachna .......
जवाब देंहटाएंचिड़ियों के कारागार में पड़े हुए हैं बाज।
जवाब देंहटाएंयही नहीं ये बाज चिड़ियों के हक को जी भर के पचा रहे हैं
बहुत सुन्दर
शास्त्री जी, मैने पूरी कविता कई बार पढ़ डाली एक बेहतरीन भाव और शब्दों का बेहतरीन ताल-मेल..हर पंक्ति में लाज़वाब भाव मानवीय संवेदनाओं को झकझोरती कविता..
जवाब देंहटाएंबढ़िया कविता के लिए धन्यवाद शास्त्री जी
आज के नौजवानों को सन्देश देती अच्छी रचना
जवाब देंहटाएंaaj ke daur ki visangtiyon aur vidruptaon ko darshati prabhavshali rachna..
जवाब देंहटाएंghode bech ke bhagvaan so raha.sachchai se paripurn rachna. aapki her rachna ek inspiration deti hai .
जवाब देंहटाएंनन्हे बिटवा भाई
जवाब देंहटाएंआशिर्वाद
बहुत ही कड़वा समाज का
लिखने को बहुत कुछ है अगर लिखने को आयें,
लिख कर कठोर सत्य किसे आज सुनाएं
कोई नहीं आचरण करता .यह देश भगत सिंह जी और सुभाष जी का नहीं रहा