पढ़े-लिखों पर खादी भारी! कैसी है यह लाचारी? छिपी हुई खाकी वर्दी में, दुनियाभर की मक्कारी! बदल गये हैं मानक सारे, बदल गईं हैं परिभाषा, गांधी को मुँह चिढ़ा रही है, खुद उनकी ही अभिलाषा, गोरे चले गए भारत से, कालों की दहशत जारी! पढ़े-लिखों पर खादी भारी! कैसी है यह लाचारी? छिपी हुई खाकी वर्दी में, दुनियाभर की मक्कारी! मेजबान जिनको होना था, वो सारे मेहमान हो गये, सत्ता की भागीदारी में, शामिल सब शैतान हो गये, सहमें-सहमें से हैं साधू, चोरों की नम्बरदारी! पढ़े-लिखों पर खादी भारी! कैसी है यह लाचारी? छिपी हुई खाकी वर्दी में, दुनियाभर की मक्कारी! सोन-चिड़ैय्या भागी घर से, स्विटजर में यह छिपी पड़ी है, चील और कौओं के डर से, इसीलिए तो निर्धनता की, फैल रही है बीमारी! पढ़े-लिखों पर खादी भारी! कैसी है यह लाचारी? छिपी हुई खाकी वर्दी में, दुनियाभर की मक्कारी! |
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सोमवार, 2 अगस्त 2010
“कैसी है यह लाचारी?” (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री “मयंक”)
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पढ़े-लिखों पर खादी भारी!
जवाब देंहटाएंकैसी है यह लाचारी
"कहाँ कहाँ नहीं है लाचारी.......बेहद प्रभावशाली अभिव्यक्ति.."
regards
पढ़े-लिखों पर खादी भारी!
जवाब देंहटाएंकैसी है यह लाचारी?
छिपी हुई खाकी वर्दी में,
दुनियाभर की मक्कारी!
बहुत ही सुन्दरता से आपने सच्चाई को प्रस्तुत किया है! बेहद प्रभावशाली रचना!
मित्रता दिवस की हार्दिक बधाइयाँ एवं शुभकामनायें!
छिपी हुई खाकी वर्दी में,
जवाब देंहटाएंदुनियाभर की मक्कारी!
बहुत सुंदर शास्त्री जी एक एक शव्द आज का सच बोल रहा है, आप की कलम को नमन. धन्यवाद
बदल गये हैं मानक सारे,
जवाब देंहटाएंबदल गईं हैं परिभाषा,
गांधी को मुँह चिढ़ा रही है,
खुद उनकी ही अभिलाषा
...bade dukh aur afsos kee baat hai ki ab to hamare pujya Rashpita Gandhi ji ka prachalan sabse adhik ho raha hai lekin kahan? yah baat lagbhag sabi jaanne aur pahchanane lage hai ..
Sarthak prasuti ke liya abhar
गोरे चले गए भारत से,
जवाब देंहटाएंकालों की दहशत जारी!
बहुत सुंदर शास्त्री जी !
पढ़े-लिखों पर खादी भारी!
जवाब देंहटाएंकैसी है यह लाचारी
prabhavshali abhivyakti.
परिष्कृत भाषा में लिखी गई सोचने पर बाध्य करती कविता |बहुत बहुत बधाई |मित्रता दिवस के लिए आपको भी शुभ कामनायें|
जवाब देंहटाएंआशा
ek anoothi abhivyakti :)
जवाब देंहटाएंबदल गये हैं मानक सारे,
जवाब देंहटाएंबदल गईं हैं परिभाषा,
गांधी को मुँह चिढ़ा रही है,
खुद उनकी ही अभिलाषा,
गोरे चले गए भारत से,
कालों की दहशत जारी!
बिल्कुल सही बयान कर दिया हालात का और लाचारी का…………………आपकी लेखनी को नमन्।
लाचारी की बहुत बढ़िया व्याख्या की है ...प्रभावशाली
जवाब देंहटाएंमंगलवार 3 अगस्त को आपकी रचना ... चर्चा मंच के साप्ताहिक काव्य मंच पर ली गयी है .कृपया वहाँ आ कर अपने सुझावों से अवगत कराएँ .... आभार
जवाब देंहटाएंhttp://charchamanch.blogspot.com/
व्यवस्था पर खुला व्यंग।
जवाब देंहटाएंजबरदस्त रचना.
जवाब देंहटाएंरामराम.
बहुत जबरदस्त लेखन और कटाक्ष.
जवाब देंहटाएंबाऊ जी,
जवाब देंहटाएंनमस्ते!
खरी! खरी!
Shastri ji first time i am reading your kavita.very very impressive....bahut sunder rachna.samaj ko aayana dikhati hui.I am following your blog.
जवाब देंहटाएंपढ़े-लिखों पर खादी भारी!
जवाब देंहटाएंकैसी है यह लाचारी
waah..!
kya likha hai aapne ..sahi aaiina dikha gayi aapki kavita
bahut khoob..!
sahi laachaari hai...
जवाब देंहटाएं