(1) जाति-पाँति के जाल में, जकड़ा अपना देश। आरक्षण की आड़ में, बिगड़ रहा परिवेश।। (2) जूता केवल पाँव में, पाता है सम्मान। जूता जब सिर पर चढ़े, कर देता अपमान।। (3) दूल्हा-दुल्हिन में रहे, सौ वर्षों तक प्यार। सप्तपदी हो सार्थक, जीवन का आधार।। (4) भगदड़ दुनिया में मची, मारा-मारी होय। क्रूर-काल के चक्र से, नही अछूता कोय।। (5) दस्तक देती मौत को, रोक सका नही कोय। ऐसी धरती है कहाँ, मृत्यु जहाँ नही होय।। (6) रिमझिम सावन बरसता, पुरवाई का जोर। मक्का की सोंधी महक, फैली है चहुँ ओर।। (7) ब्रह्मा जी ने रच दिए, अलग-अलग आकार। किन्तु एक ही रूप के, रचता पात्र कुम्हार।। (8) वर्तमान जो आज है, कल हो जाए अतीत। कालचक्र के चक्र में, जीवन हुआ व्यतीत।। (9) धवल चन्द्रमा में लगे, कुछ काले से दाग। क्रोधित सूरज हो रहा, उगल रहा है आग।। (10) पढ़-लिखकर ज्ञानी बने, सीखा जीवन मर्म। जगत नियन्ता जानता, क्या है धर्म-अधर्म।। |
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बुधवार, 4 अगस्त 2010
“मेरे कुछ दोहे” (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री “मयंक”)
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बहुत ही सार्थक दोहे रचे है भाईसाहब अपने....!!
जवाब देंहटाएंबहुत ही लाजवाब दोहे. शुभकामनाएं.
जवाब देंहटाएंरामराम
एक से बढ़कर एक दोहे।
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर ...हर दोहा एक सीख देता हुआ ..
जवाब देंहटाएंशास्त्री जी,
जवाब देंहटाएंबेहद सुंदर सीख देते दोहे।
आभार
एक से बढकर एक!
जवाब देंहटाएंसीख हैं नेक!
saare dohe bahut hi achche hain.padh kar maja aa gaya.all the best.
जवाब देंहटाएंसार्थक दोहे !
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुन्दर, सठिक, सार्थक और लाजवाब दोहे लिखे हैं आपने! बहुत खूब!
जवाब देंहटाएंkhoobsoorati ki misaal.
जवाब देंहटाएं
जवाब देंहटाएंशास्त्री जी, दोहों के मामलें में सचमुच आपका जवाब नहीं।
…………..
अंधेरे का राही...
किस तरह अश्लील है कविता...
'धवल चन्द्रमा में लगे, कुछ काले से दाग।
जवाब देंहटाएंक्रोधित सूरज हो रहा, उगल रहा है आग।।'
- सुन्दर.
। हर दोहा एक सुन्दर संदेश दे रहा है………………बहुत ही सुन्दर और सार्थक दोहे।
जवाब देंहटाएंआदरणीय शास्त्री साहब,
जवाब देंहटाएंसरल शब्दों ने दोहों को सार्थक बना दिया, पूरा जीवन दर्शन सिमटा हुआ है।
आदर सहित साधुवाद,
मुकेश कुमार तिवारी
बहुत सार्थक और सुन्दर दोहे.
जवाब देंहटाएंबहुत ही लाजवाब दोहे,शास्त्री जी !
जवाब देंहटाएं