धर्मनिरपेक्ष राज-काज है। जनता का जनता पे राज है। हमको अपने भारत पे नाज़ है।। नीलकण्ठ गंगा सवाँरता, चरणों को सागर पखारता, सिर पर हिमालय का ताज है। हमको अपने भारत पे नाज़ है।। मस्जिद में गूँजती अजान हैं, मन्दिरों में राम और श्याम हैं, एकता परोसता समाज है। हमको अपने भारत पे नाज़ है।। पूजनीय लाल, बाल, पाल हैं, वन्दनीय माता के लाल हैं, जिन्होंने बचाई माँ की लाज है। हमको अपने भारत पे नाज़ है।। |
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रविवार, 8 अगस्त 2010
“हमको आपने भारत पे नाज़ है” (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री “मयंक”)
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बहुत भावपूर्ण रचना ....आपकी रचना में लाल , बाल , पाल को एक साथ याद किया गया ....बहुत अच्छा लगा ...
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी रचना !!
जवाब देंहटाएंबेहद भावपूर्ण और प्रेरक रचना।
जवाब देंहटाएंअपनी पोस्ट के प्रति मेरे भावों का समन्वय
कल (9/8/2010) के चर्चा मंच पर देखियेगा
और अपने विचारों से चर्चामंच पर आकर
अवगत कराइयेगा।
http://charchamanch.blogspot.com
बहुत सुन्दर शास्त्री जी , क्षमा करे, वैसे आप जैसे साहित्य पुरुष को कोई साहित्यिक सजेशन देने की मेरी क्या औकात फिर भी अगर आपको ठीक लगे तो " मंदिरों में राम और श्याम की जगह भगवान् कर दे तो छंद और निखरेगा ऐसा मेरा मानना है !
जवाब देंहटाएंहमें भी बहुत नाज़ है देश पर। बहुत सुन्दर रचना।
जवाब देंहटाएंअति सुंदर रचना.
जवाब देंहटाएंरामराम.
उत्तम रचना.
जवाब देंहटाएं“हमको आपने भारत पे नाज़ है|”
जवाब देंहटाएंएक बेहद उम्दा और सार्थक रचना पर बहुत बहुत बधाइयाँ और शुभकामनाएं !
हमें नाज़ तो करना चाहिए भारत पर ...
जवाब देंहटाएंअच्छी कविता ..!
हमको अपने भारत पे नाज़ है।।
जवाब देंहटाएंभारत पे नाज है...सन्देश भी, कविता भी..बधाई.
जवाब देंहटाएंहमे भी अपने भारत पर नाज़ है। बहुत अच्छी लगी रचना। बधाई।
जवाब देंहटाएं