कहीं-कहीं छितराये बादल, कहीं-कहीं गहराये बादल। काले बादल, गोरे बादल, अम्बर में मँडराये बादल। उमड़-घुमड़कर, शोर मचाकर, कहीं-कहीं बौराये बादल। भरी दोपहरी में दिनकर को, चादर से ढक आये बादल। खूब खेलते आँख-मिचौली, ठुमक-ठुमककर आये बादल। दादुर, मोर, पपीहा को तो, मेघ-मल्हार सुनाये बादल। जिनके साजन हैं विदेश में, उनको बहुत सताये बादल। |
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सोमवार, 9 अगस्त 2010
“बादल” (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री “मयंक”)
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बादल के विभिन्न रूपों को समेटती कविता पसंद आई।
जवाब देंहटाएंbahut sundar kavita
जवाब देंहटाएंanek rango ka ek baadal
http://sanjaykuamr.blogspot.com/
वाह वाह बहुत ही सुन्दर रिमझिम सी कविता है।
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर रचना.
जवाब देंहटाएंरामराम.
बादलों का रूप सजती खूबसूरत कविता.
जवाब देंहटाएंसुंदर गीत।
जवाब देंहटाएंaapne to baadlo par shodh kar dala....bahut sundar kavita
जवाब देंहटाएंमन को कितने भाये बादल।
जवाब देंहटाएंबादल के विभिन्न रूपों को समेटती कविता पसंद आई।
जवाब देंहटाएंयह बादल गान कुछ जाना पहचाना सा लगता है.
जवाब देंहटाएंवाह जी मजा आ गया, इस सुंदर कविता को पढ कर, धन्यवाद
जवाब देंहटाएंबादल के विभिन्न रूपों को समेटती कविता पसंद आई.............
जवाब देंहटाएंबस दुआ करें यह बदल फटे नहीं !!
जवाब देंहटाएंबदल = बादल
जवाब देंहटाएंजिनके साजन हैं विदेश में,
जवाब देंहटाएंउनको बहुत सताये बादल।
khub kaha sir
एक बेहद उम्दा पोस्ट के लिए आपको बहुत बहुत बधाइयाँ और शुभकामनाएं !
जवाब देंहटाएंआपकी पोस्ट की चर्चा ब्लाग4वार्ता पर है यहां भी आएं !
एक बेहद उम्दा पोस्ट के लिए आपको बहुत बहुत बधाइयाँ और शुभकामनाएं !
जवाब देंहटाएंआपकी पोस्ट की चर्चा ब्लाग4वार्ता पर है यहां भी आएं !
khoob kaha sir ji!
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर अभिव्यक्ति |अच्छी रचना |
जवाब देंहटाएंआशा