मन है मन्दिर ईश का, रहते हैं भगवान। कण-कण में जो रम रहा, वो ही तो है राम।। मन की और मस्तिष्क की,गाथा बहुत विचित्र। मस्तक करता है मनन, मन का भिन्न चरित्र।। जिनको फूलों ने दिये, जख्म हजारों बार। काँटों पर उनको भला, कैसे हो एतबार।। अपने भारत देश में, भाँति-भाँति के लोग। कुछ अपनाते योग को, कुछ अपनाते भोग।। झूठे आँसू आँख से, बहा रहे घड़ियाल। नेता माला-माल हैं, जनता है कंगाल।। सीधे-सादे जीव का, चारा ही था घास। नेता इनको चरे गये, गदहे भये उदास।। जिनके बँगलों में रहें, सुन्दर-सुन्दर श्वान। उनको कैसे भायेंगे, निर्धन,श्रमिक,किसान।। |
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बुधवार, 18 अगस्त 2010
"मेरे दोहे" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री "मयंक")
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अपने भारत देश में, भाँति-भाँति के लोग।
जवाब देंहटाएंकुछ अपनाते योग को, कुछ अपनाते भोग।
बिल्कुल सही कहा है आपने! बहुत सुन्दर और शानदार दोहे प्रस्तुत किया है आपने!
शास्त्री जी, अति सुंदर,धन्यवाद|
जवाब देंहटाएंबड़े सुन्दर और सारगर्भित दोहे।
जवाब देंहटाएंसार्थक दोहे.
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर रचना.
जवाब देंहटाएंरामराम.
mere dohe....ek se badhker ek.prashansa ke liye shabd kum hain.
जवाब देंहटाएंनमस्कार,
जवाब देंहटाएंहिन्दी ब्लॉगिंग के पास आज सब कुछ है, केवल एक कमी है, Erotica (काम साहित्य) का कोई ब्लॉग नहीं है, अपनी सीमित योग्यता से इस कमी को दूर करने का क्षुद्र प्रयास किया है मैंने, अपने ब्लॉग बस काम ही काम... Erotica in Hindi. के माध्यम से।
समय मिले और मूड करे तो अवश्य देखियेगा:-
टिल्लू की मम्मी
टिल्लू की मम्मी -२
वाह शास्त्री जी आप ने दोहे के रुप मै आज के भारत काचित्र ही खींच दिया. धन्यवाद
जवाब देंहटाएंजिनको फूलों ने दिये, जख्म हजारों बार।
जवाब देंहटाएंकाँटों पर उनको भला, कैसे हो एतबार।।
बहुत सुन्दर.
बहुत अच्छा लगा।
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुन्दर दोहे………………सभी रंग संजोये हुये।
जवाब देंहटाएंअंतिम दोहा बहुत अच्छा लगा ..सारे दोहे सटीक हैं ..
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Fatwa MUI