जब से उम्र हुई है पचपन। फिर से आया मेरा बचपन।। पोती-पोतों की फुलवारी, महक रही है क्यारी-क्यारी, भरा हुआ कितना अपनापन। फिर से आया मेरा बचपन।। इन्हें मनाना अच्छा लगता, कथा सुनाना अच्छा लगता, भोला-भाला है इनका मन। फिर से आया मेरा बचपन।। मुन्नी तुतले बोल सुनाती, मिश्री कानों में घुल जाती, चहक रहा जीवन का उपवन। फिर से आया मेरा बचपन।। बादल जब जल को बरसाता, गलियों में पानी भर जाता, गीला सा हो जाता आँगन। फिर से आया मेरा बचपन।। कागज की नौका बन जाती, कभी डूबती और उतराती, ढलता जाता यों ही जीवन। फिर से आया मेरा बचपन।। |
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गुरुवार, 26 अगस्त 2010
“मेरा बचपन” (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री “मयंक”)
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सुन्दर तस्वीरों के साथ उम्दा रचना प्रस्तुत किया है आपने! शानदार लगा!
जवाब देंहटाएंपोती-पोतों की फुलवारी,
जवाब देंहटाएंमहक रही है क्यारी-क्यारी,
भरा हुआ कितना अपनापन।
फिर से आया मेरा बचपन।। ....शानदार
सही कहा शास्त्री जी , बुढापे में अपने अतीत में झाँकने का मौक़ा पोते-पोतियों संग मिल जाता है !
जवाब देंहटाएंवाह .. बहुत खूब !!
जवाब देंहटाएंशानदार!
जवाब देंहटाएंबहुत लाजवाब.
जवाब देंहटाएंरामराम.
बेहद उम्दा रचना .........यह फुलवारी यूँ ही महकती रहे ! बधाइयाँ और शुभकामनाएं !
जवाब देंहटाएंkhoobsurat shastri ji
जवाब देंहटाएंशास्त्री जी
जवाब देंहटाएंआज टिप्पणी में सिर्फ इतना ही
ईश्वर आपको हमेशा स्वस्थ व प्रसन्न रखें
सच ही कहा है जैसे जैसे उम्र बढती है और नन्हे बच्चों का साथ होता है तो बचपन तो अपने आप ही आ जाता है ...सुन्दर चित्रों से सजी सुन्दर रचना ...
जवाब देंहटाएंबिल्कुल सही कहा आपने..ऐसे ही लौटता है बचपन..नाती पोतों के साथ.
जवाब देंहटाएंबच्चों के साथ अपना बचपन भी लौट आता है ...
जवाब देंहटाएंअच्छी कविता ..!
mera bachpan ...behad pyaari kavita.kuch yese hi bhav apne bhi hain.
जवाब देंहटाएं