(1) गौतम, गांधी, बोस की, हैं सच्ची तस्वीर। नन्हे सुमन जगायेंगे, भारत की तकदीर।। (2) बेरंग होने में सदा, आता है आनन्द। झंझावातो में भला, किसे सुहाते रंग।। (3) हँसने से कट जायंगे, सारे दिल के रोग। तन-मन को भोजन मिले, काया रहे निरोग।। (4) धन के स्वामी हो गये, अपने धन के दास। लोग पुरातन सभ्यता, का कर रहे विनाश।। (5) कैसे तुम्हें भुलाउँगा,ओ मेरे मनमीत। प्रतिदिन तेरी याद में, मैं लिखता हूँ गीत।। (6) भोले पक्षी छिप गये, खुले घूमते बाज़। पढ़े-लिखे नौकर हुए, आया जंगल राज।। (7) गुलशन माली का रहा, युगों-युगों से संग। बिन माली के वाटिका, हो जाती बेरंग।। |
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बुधवार, 11 अगस्त 2010
“दोहावली” (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री “मयंक”)
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हँसने से कट जायंगे, सारे दिल के रोग।
जवाब देंहटाएंतन-मन को भोजन मिले, काया रहे निरोग।।
बिल्कुल सही कहा है आपने! सभी दोहें एक से बढ़कर एक है! शानदार पोस्ट!
शास्त्रीजी, सारे ही दोहे श्रेष्ठ बन पड़े हैं बधाई।
जवाब देंहटाएंsabhi achey hain lekin mujhe ye sab se acha laga..
जवाब देंहटाएंभोले पक्षी छिप गये, खुले घूमते बाज़।
पढ़े-लिखे नौकर हुए, आया जंगल राज।।
कैसे तुम्हें भुलाउँगा,ओ मेरे मनमीत।
जवाब देंहटाएंप्रतिदिन तेरी याद में, मैं लिखता हूँ गीत।।
...tabhi itni mithaas hai... :)
sabhi dohe kamal ke hai!
aapke har dohe kabiletaarif hain..jitani prashashaa ki jaaye kam hogi.
जवाब देंहटाएंसारे ही दोहे लाजवाब्…………………एक से बढकर एक हैं………………और ये काबिलियत सिर्फ़ आपमे ही है।
जवाब देंहटाएंभोले पक्षी छिप गये, खुले घूमते बाज़।
जवाब देंहटाएंपढ़े-लिखे नौकर हुए, आया जंगल राज।।
वाह, बहुत खूब शास्त्री जी !
श्रेष्ठतम, शुभकामनाएं.
जवाब देंहटाएंरामराम.
धन के स्वामी हो गये, अपने धन के दास।
जवाब देंहटाएंलोग पुरातन सभ्यता, का कर रहे विनाश।।
भोले पक्षी छिप गये, खुले घूमते बाज़।
पढ़े-लिखे नौकर हुए, आया जंगल राज।।
वाह लाजवाब दोहे हैं बधाई।
बहुत सुंदर दोहे लगे जी, धन्यवाद
जवाब देंहटाएंक़ाबिले-तारीफ़ है।
जवाब देंहटाएंहँसने से कट जायंगे, सारे दिल के रोग।
जवाब देंहटाएंतन-मन को भोजन मिले, काया रहे निरोग।।
Sahi siksha...sundar dohe
Aabhar
बहुत अच्छी प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंबड़ी सुन्दर सुन्दर लड़ियाँ पिरो लायें हैं आप।
जवाब देंहटाएंbahut umda dohe hai ..!!
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