डायरी के पुराने पन्नों से कितना समय व्यतीत हो गया, समझ नही पाया मैं उनको। निभा नही पाये वो मुझको, मैंने बहुत निभाया उनको।। चमकीले खोटे सिक्के को मैंने उपयोगी जाना था, बिन जाने और पहचाने ही, अपना सहयोगी माना था, मेहनत से जो कुछ उपजाया, मैंने वही खिलाया उनको। निभा नही पाये वो मुझको, मैंने बहुत निभाया उनको।। शर्तों की राहों पर चलकर, मैंने माना अनुबन्धों को, मक्कारी से पंखा झलकर, उसने तोड़ा सम्बन्धों को, जब-जब भी दुत्कारा मुझको, मैंने था अपनाया उनको। निभा नही पाये वो मुझको, मैंने बहुत निभाया उनको।। जब भी डगमग पग होते थे, मैं देता था उन्हें सहारा, मैं दुखमोचन बन जाता था, जब भी उसने मुझे पुकारा, पथ पर संभल-संभलकर चलना, मैंने ही सिखलाया उनको। निभा नही पाये वो मुझको, मैंने बहुत निभाया उनको।। |
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सोमवार, 23 अगस्त 2010
“मैंने बहुत निभाया उनको” (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री “मयंक”)
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बहुत सुन्दर रचना...
जवाब देंहटाएंरक्षाबंधन पर पर हार्दिक बधाई और शुभकामनाये.....
मैंने बहुत निभाया उनको। वाह।
जवाब देंहटाएंअति विशिष्ट गहन रचना, शुभकामनाएं.
जवाब देंहटाएंरामराम.
कितने मीठे लगे हैं न पुराणी डायरी के कुछ पन्ने.
जवाब देंहटाएंअच्छा कविता बन पढ़ है
एक बेहद उम्दा रचना...
जवाब देंहटाएंरक्षाबंधन पर हार्दिक बधाई और शुभकामनाये!
चमकीले खोटे सिक्के को
जवाब देंहटाएंमैंने उपयोगी जाना था,
बिन जाने और पहचाने ही,
अपना सहयोगी माना था,
कविता का पूरा स्वर आशामूलक है।
डायरी के पुराने पन्नों को पलटते रहें...
निभा नही पाये वो मुझको,
जवाब देंहटाएंमैंने बहुत निभाया उनको.nice
बहुत ख़ूब !! बहुत ही बढ़िया !!!
जवाब देंहटाएंअच्छी प्रस्तुति। आभार
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर रचना...
जवाब देंहटाएंरक्षाबंधन पर पर हार्दिक बधाई और शुभकामनाये.....
हृदय से निकली अभिव्यक्ति, धन्यवाद शास्त्री जी.
जवाब देंहटाएंशुभकामनांए.
बहुत सुन्दर रचना लिखा है आपने!
जवाब देंहटाएंरक्षाबंधन पर हार्दिक बधाइयाँ एवं शुभकामनायें!
बेहद शानदार कविता………………रक्षा बंधन की हार्दिक शुभकामनाएँ.
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर रचना...
जवाब देंहटाएंरक्षाबंधन पर पर हार्दिक बधाई और शुभकामनाये.....
मन के भावों को विनम्रता से प्रस्तुत किया है ..बहुत अच्छी प्रस्तुति ...रक्षाबंधन की शुभकामनायें
जवाब देंहटाएंकहीं किसी अपने से गहरी चोट खाई है ..ऐसा लगता है. वेदना उभर आई है रचना में.
जवाब देंहटाएं---------------------------
रक्षा बंधन की हार्दिक शुभकामनाएँ.
गहन हताशा और दुःख बोध पर तिरती रचना !
जवाब देंहटाएंरक्षा बंधन पर हार्दिक शुभकामनाएँ.
जवाब देंहटाएंकितना समय व्यतीत हो गया,
जवाब देंहटाएंसमझ नही पाया मैं उनको।
निभा नही पाये वो मुझको,
मैंने बहुत निभाया उनको।।
kya kuch nahi kahati aapki kavita.aapki yeh rachna...kya kahoon shabd nahi hain itne taarif ke liye...really gr8..gr8...gr8...
कितना समय व्यतीत हो गया,
जवाब देंहटाएंसमझ नही पाया मैं उनको।
निभा नही पाये वो मुझको,
मैंने बहुत निभाया उनको ...
वह .. बहुत गहरे ज़ज्बात पिरोय है इस रचना में ....
नमस्कार शास्त्री जी .....