मेरी झोली में जो कुछ है, वही प्यार से बाँट रहा हूँ।। खोटे सिक्के जमा किये थे, मीत अजनबी बना लिए थे, सम्बन्धों की खाई को मैं, खुर्पी लेकर पाट रहा हूँ। मेरी झोली में जो कुछ है, वही प्यार से बाँट रहा हूँ।। सुख का सूरज नजर न आता, दुख का बादल हाड़ कँपाता, नभ पर जमे हुए कुहरे को, दीप जलाकर छाँट रहा हूँ। मेरी झोली में जो कुछ है, वही प्यार से बाँट रहा हूँ।। आशाएँ हो गयी क्षीण हैं, सरिताएँ जल से विहीन हैं, प्यास बुझाने को मैं अपनी, तुहिन कणों को चाट रहा हूँ । मेरी झोली में जो कुछ है, वही प्यार से बाँट रहा हूँ।। |
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गुरुवार, 2 दिसंबर 2010
"मोटा-झोटा कात रहा हूँ" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री "मयंक")
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sambandhon ki khai ko khurpi lekar paat raha hun .......bhav-vibhor karti rachna .
जवाब देंहटाएंरुई पुरानी मुझे मिली है, मोटा-झोटा कात रहा हूँ।
जवाब देंहटाएंमेरी झोली में जो कुछ है, वही प्यार से बाँट रहा हूँ।।
सफल आदमी वही है जो विपरीत परिस्थितियों में भी अपने आप को समय के अनुसार ढाल ले और उनसे संघर्ष करते हुए भी चहरे पर शिकन न आने दे. बहुत ही प्रेरक अभिव्यक्ति. आभार
बहुत ही सुंदर रचना....आपकी कविताये पढ़ कर आनंद आता है.
जवाब देंहटाएंबहुत प्रेरक रचना.
जवाब देंहटाएंरामराम.
बहुत बढ़िया. शास्त्री जी, आप यूं ही हमें नित नई बढ़िया शब्द पढ़ाते रहें..
जवाब देंहटाएंआपकी कविताये तो पढता ही हूं लेकिन टिप्पणी नही कर पाता हूं क्योकि मेरा इतना स्तर नही .
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर आदि लिखने से मै सम्झता हूं कविता को आत्मसात करना अच्छा रहेगा .
मेरी झोली में जो कुछ है, वही प्यार से बाँट रहा हूँ।
अगर प्यार ऎसा बाटा जाये तो नफ़रत तो कही पनपे ही नही
aise geeton ka srijan aur prakashan bahut zaroori hai dada !
जवाब देंहटाएंab kalamkaron se hi ummid hai ki ve janta ko is kadar jagrit kare ki vah apne desh kal aur samaaj ko bachane ki koshish kare....
sambandh, anubandh aur prabandh sab gaddmadd ho gaye hain aapas me....
aise kaale kaal me aapka srijan jugnu ki bhanti timtima raha hai
ye dekh kar mujhe aanand aa raha hai
aapki lekhni stutya hai !
बहुत ही सुन्दर रचना , आभार।
जवाब देंहटाएंएक और सुन्दर रचना पढने को मिली
जवाब देंहटाएंकुछ बोया था खेतों में, उसको ही मैं काट रहा हूँ।
मेरी झोली में जो कुछ है, वही प्यार से बाँट रहा हूँ।
आभार
- विजय तिवारी "किसलय" जबलपुर
#comments
शास्त्री जी, बहुत ही शानदार कविता। कई बार गा चुका!
जवाब देंहटाएंयह प्यार भरी पंक्तियाँ सुन हृदय द्रवित हो जाता है।
जवाब देंहटाएंविचारों का बढ़िया बहाव है, एकदम लय में.....
जवाब देंहटाएंजारी रखिये ...
नभ पर जमे हुए कुहरे को, दीप जलाकर छाँट रहा हूँ
जवाब देंहटाएंअसंभव काम करने की कोशिश ...
यह रचना बहुत कुछ कह गयी ....कुछ व्यथा सी दिखी ...गीत बहुत सुन्दर है
शास्त्रीजी, आज बहुत ही श्रेष्ठ कविता आपने पोस्ट की है। आपको बधाई, बस ऐसा ही लिखा हमें पढाते रहें।
जवाब देंहटाएंसुख का सूरज नजर न आता,
जवाब देंहटाएंदुख का बादल हाड़ कँपाता,
नभ पर जमे हुए कुहरे को, दीप जलाकर छाँट रहा हूँ।
मेरी झोली में जो कुछ है, वही प्यार से बाँट रहा हूँ।।
हर बार एक नया अन्दाज़ लेकर आ रहे हैं…………कितने गहरे भावों को संजोया है…………बेहद उम्दा रचना दिल को छू गयी।
प्रेरक अभिव्यक्ति ...
जवाब देंहटाएंआभार !
खोटे सिक्के जमा किये थे,
जवाब देंहटाएंमीत अजनबी बना लिए थे,
सम्बन्धों की खाई को मैं, खुर्पी लेकर पाट रहा हूँ।
मेरी झोली में जो कुछ है, वही प्यार से बाँट रहा हूँ।।
बेहतरीन रचना शास्त्री जी !
sundar
जवाब देंहटाएंबहुत ही सहज गीत के माध्यम से जीवन सार कह दिया - सादर
जवाब देंहटाएं.
जवाब देंहटाएंप्यास बुझाने को मैं अपनी, तुहिन कणों को चाट रहा हूँ ।
मेरी झोली में जो कुछ है, वही प्यार से बाँट रहा हूँ।।
बेहतरीन भावुक प्रस्तुति !
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