एक झोंपड़ी यहाँ पड़ी है। नौका जिसके पास खड़ी है।। यह जल के ऊपर उतराती। बड़े मजे से सैर कराती।। नदिया जल से भरी हुई है। ना जाने कितनी गहरी है।। दूर-पास से जो भी आता। नाविक को आवाज लगाता।। नाविक कहता आओ यार। मैं ले जाऊँगा उस पार।। श्रीराम का मैं अनुचर हूँ। जनता का सेवक-चाकर हूँ।। जो मेरे दर पर आ जाता। मैं उसको हूँ पार लगाता।। नहीं माँगता कोई भिक्षा। "मदद करो" की देता शिक्षा।। ♥चित्रांकन-प्रांजल शास्त्री♥ |
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गुरुवार, 16 दिसंबर 2010
“नाविक की सीख” (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री “मयंक”)
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बहुत ही सुन्दर बाल गीत, किन्तु अत्यंत गहरे दार्शनिक भाव!!
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर बालगीत, अगर यह बाल गीत है तो। वरना संदेश तो इतने गूढ, गम्भीर हैं कि बड़े-बूढे भी अपना लें तो देश-समाज का कल्याण होगा। आज की इस भौतिकतावादी संस्कृति में कोई किसी दूसरे की मदद को आगे आने से कतराता है, उल्टे दूसरे के कंधे पर पैर रखकर आगे बढने की होड़ लगी है।
जवाब देंहटाएंसुन्दर बाल गीत,संदेश गूढ
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर बाल कविता है।
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुंदर बाल कविता जी,
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर ..
जवाब देंहटाएंगहरे भाव लिए अच्छा बालगीत |बधाई
जवाब देंहटाएंआशा
प्रांजल प्रतिभावान हैं, आपका मार्गदर्शन मिलता रहे।
जवाब देंहटाएंजो मेरे दर आ जाता , मैं उसको पार लगाता ।
जवाब देंहटाएंसुन्दर बाल-गीत। पाठ्यक्रम में शामिल होने के लायक ।
गज़ब के भाव समेटे हैं बाल गीत मे………॥वाह!
जवाब देंहटाएंदादा जी की कविता के लिए
जवाब देंहटाएंप्रांजल ने बहुत बढ़िया चित्र बनाया है!
परस्पर निर्भरता सृष्टि-चक्र है।
जवाब देंहटाएंआपकी पोस्ट की चर्चा कल (18-12-2010 ) शनिवार के चर्चा मंच पर भी है ...अपनी प्रतिक्रिया और सुझाव दे कर मार्गदर्शन करें ...आभार .
जवाब देंहटाएंhttp://charchamanch.uchcharan.com/
bahut sundar chirankan -ek jhodi ,nadi ,naav .sath me sundar kavita -bahut achchha sandesh deti hui .
जवाब देंहटाएंअच्छॆ चित्र से प्रेरित अच्छी कविता!
जवाब देंहटाएंवाह!
जवाब देंहटाएंसुन्दर चित्र और सुन्दर गीत!
bhut hi sundar baal geet hai.........par bhaw to kisi bhut bade fakir si hai......jeevan ka darshan hai aapke is kavita me......dhanyawaad.
जवाब देंहटाएंआदरणीय शास्त्री जी सबसे पहले आपका अभिनंदन - १६ मात्रा वाले छंद संबंधित उपकरण 'चौपाई' का बड़ी ही खूबसूरती से प्रयोग करने के लिए|
जवाब देंहटाएंमित्रो मुझे विश्वास है हम में से कई सारे इसे लिख चुके हैं, या लिख रहे हैं| आज हम में से कई यह जानकार विस्मय करेंगे कि वो तो कब से इसे जानते थे| रामचरित मानस और हनुमान चालीसा का अभिन्न अंग है ये छंद|
दूसरी बात इस तरह की कई कविताएँ हम लोगों ने बाल्यकाल में अपनी पाठ्य पुस्तकों में पढ़ी हैं, है न मज़े की बात| इसे पढ़ो:-
उठो लाल अब आँखें खोलो|
पानी लाई हूँ, मुँह धो लो|
बीती रात कमल दल फूले||
उन के ऊपर भौरें झूले||
जय हनुमान ज्ञान गुण सागर|
जय कपीस तिहुँ लोक उजागर||
राम दूत अतुलित बल्धामा|
अंजनि पुत्र, पवन सुत नामा||
याद आया मित्रो............ ये है १६ मात्रा वाला चौपाई छंद| १६ मात्राओं वाले चार चरणों से मिल कर बनता है एक 'चौपाई' छंद| शास्त्री जी, यदि मुझसे कहीं कोई त्रुटि हो रही हो तो कृपया साधिकार सुधारने की कृपा करें|
तो आप सभी के साथ एक बार फिर से शास्त्री जी को सादर अभिवादन| और साथ ही हमारे सब के प्यारे प्रांजल शास्त्री को भी ढेर सारा प्यार, इतनी मनमोहक छवि दर्शाने के लिए|
achi rachna
जवाब देंहटाएंनाविक कहता आओ यार।
जवाब देंहटाएंमैं ले जाऊँगा उस पार।।
मनमोहक बाल गीत और फिर प्रांजल जी की चित्रकारी क्या कहने
बहुत सुन्दर बालगीत ....बहुत ही सुन्दर चित्र
जवाब देंहटाएंसुदूर खूबसूरत लालिमा ने आकाशगंगा को ढक लिया है,
जवाब देंहटाएंयह हमारी आकाशगंगा है,
सारे सितारे हैरत से पूछ रहे हैं,
कहां से आ रही है आखिर यह खूबसूरत रोशनी,
आकाशगंगा में हर कोई पूछ रहा है,
किसने बिखरी ये रोशनी, कौन है वह,
मेरे मित्रो, मैं जानता हूं उसे,
आकाशगंगा के मेरे मित्रो, मैं सूर्य हूं,
मेरी परिधि में आठ ग्रह लगा रहे हैं चक्कर,
उनमें से एक है पृथ्वी,
जिसमें रहते हैं छह अरब मनुष्य सैकड़ों देशों में,
इन्हीं में एक है महान सभ्यता,
भारत 2020 की ओर बढ़ते हुए,
मना रहा है एक महान राष्ट्र के उदय का उत्सव,
भारत से आकाशगंगा तक पहुंच रहा है रोशनी का उत्सव,
एक ऐसा राष्ट्र, जिसमें नहीं होगा प्रदूषण,
नहीं होगी गरीबी, होगा समृद्धि का विस्तार,
शांति होगी, नहीं होगा युद्ध का कोई भय,
यही वह जगह है, जहां बरसेंगी खुशियां...
-डॉ एपीजे अब्दुल कलाम
नववर्ष आपको बहुत बहुत शुभ हो...
जय हिंद...