रंग-बिरंगी चिड़िया रानी। सबको लगती बहुत सुहानी।। दाना-दुनका चुग कर आती। फिर डाली पर है सुस्ताती। रोज भोर में यह उठ जाती। चीं-चीं का मृदु-राग सुनाती।। फुदक-फुदक कर कला दिखाती। झटपट नभ में यह उड़ जाती।। तिनका-तिनका जोड़-जोड़कर। नीड़ बनाती है यह सुन्दर।। उसमें अण्डों को देती है। तन-मन से उनको सेती है।। अब यह मन ही मन मुस्काती। चूजे पाकर खुश हो जाती।। चुग्गा इनको नित्य खिलाती। दुनियादारी को सिखलाती।। एक समय ऐसा भी आता। जब इसका मन है अकुलाता।। फुर्र-फुर्र बच्चे उड़ जाते। इसका घर सूना कर जाते।। करने लगते हैं मनमानी। चिड़िया की है यही कहानी।। ♥चित्रांकन-प्रांजल शास्त्री♥ |
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शनिवार, 18 दिसंबर 2010
“चिड़िया की कहानी” (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री “मयंक”)
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अच्छा चित्र और अच्छा काव्य।
जवाब देंहटाएंप्रांजल एक चित्रकार संभाव्य।
प्रेम करो रंगों से बच्चा।
चित्र तुम्हारा सचमुच अच्छा!
वाह वाह ! ये तो बहुत ही सुन्दर चिडिया की कहानी सुना दी……………बहुत सुन्दर बाल गीत्।
जवाब देंहटाएंआजकल के बच्चे भी ऐसे ही हैं। आत्मनिर्भर होते ही फुर्र........
जवाब देंहटाएंbhut hi pyaaari baal kavita.....bhut sundar...
जवाब देंहटाएंशास्त्री जी!
जवाब देंहटाएंप्यारी कविता! और सुन्दर चित्रांकन!!
सुन्दर , सरल बाल कविता ।
जवाब देंहटाएंmohak geet guru ji!
जवाब देंहटाएंबड़ी सुन्दर कहानी है चिड़िया की।
जवाब देंहटाएंbahut pyari bal-kavita.
जवाब देंहटाएंbahut-bahut dhanyvad shastriji.