अपनों की रखवाली करते-करते उम्र तमाम हुई। पहरेदारी करते-करते सुबह हुई और शाम हई।। सुख आये थे संग में रहने. डाँट-डपट कर भगा दिया, जाने अनजाने में हमने, घर में ताला लगा लिया, पवन-बसन्ती दरवाजों में, आने में नाकाम हुई। पहरेदारी करते-करते सुबह हुई और शाम हई।। मन के सुमन चहकने में है, अभी बहुत है देर पड़ी, गुलशन महकाने को कलियाँ, कोसों-मीलों दूर खड़ीं, हठधर्मी के कारण सारी आशाएँ हलकान हुई। पहरेदारी करते-करते सुबह हुई और शाम हई।। चाल-ढाल है वही पुरानी, हम तो उसी हाल में हैं, जैसे गये साल में थे, वैसे ही नये साल में हैं, गुमनामी के अंधियारों में, खुशहाली परवान हुई। पहरेदारी करते-करते सुबह हुई और शाम हई।। |
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रविवार, 12 दिसंबर 2010
"...उम्र तमाम हुई" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री "मयंक")
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निर्मल मन अपना आत्मलोचन खुद करता है। जिन विडंबनाओं के बीच हमारा जीवन बीतता है,उसका पछतावा जब होता है,तब तक काफी वक्त बीत चुका होता है। जब सत्य की अनुभूति हो,उसी वक्त स्वयं नई शुरूआत हो जाती है।
जवाब देंहटाएंचाल-ढाल है वही पुरानी,
जवाब देंहटाएंहम तो उसी हाल में हैं,
जैसे गये साल में थे,
वैसे ही नये साल में हैं,
क्या बात कही है
बहुत बढ़िया.
चाल-ढाल है वही पुरानी,
जवाब देंहटाएंहम तो उसी हाल में हैं,
जैसे गये साल में थे,
वैसे ही नये साल में हैं,
बड़ा प्यारा गीत है और नए साल के आने के मौक़े पर सामयिक भी.
हमें तो आपका सा्थ यूं ही चाहिये..
जवाब देंहटाएंक्यों निराशाओं की बात हुई ?
जवाब देंहटाएंक्यों जिंदगी हलकान हुई
उठो जागो भया सवेरा
अभी क्यों थकने की बात हुई ?
चाल-ढाल है वही पुरानी,
जवाब देंहटाएंहम तो उसी हाल में हैं,
जैसे गये साल में थे,
वैसे ही नये साल में हैं,
बेहद प्रभावी..... सुंदर
पंडित जी! बड़ा ही प्यारा लगा आपका आत्मकथ्य! एक नज़र गुज़रे सालों पर डालने और आत्ममंथन करने पर ऐसे ही गीत की सर्जना होती है.
जवाब देंहटाएंवैसे हमारी कामना होगी कि नया साल वैसा न हो कि आपको अगले साल भी ऐसी रचना प्रस्तुत करनी पड़े!!सादर!
हम सोच रहे हैं
जवाब देंहटाएंनये साल का ताला
कहीं और खोलें
नव वर्ष किसी और प्रदेश में बोलें
दिसम्बर के आखिरी महीने में जहां गर्मी रहती है वहां सपरिवार घूमने आना चाहता हूं
बहुत अच्छा विश्लेषण किया है | बधाई
जवाब देंहटाएंआशा
जवाब देंहटाएंबेहतरीन पोस्ट लेखन के बधाई !
आशा है कि अपने सार्थक लेखन से,आप इसी तरह, ब्लाग जगत को समृद्ध करेंगे।
आपकी पोस्ट की चर्चा ब्लाग4वार्ता पर है - पधारें - सांसद हमले की ९ वी बरसी पर संसद हमले के अमर शहीदों को विनम्र श्रद्धांजलि - ब्लॉग 4 वार्ता - शिवम् मिश्रा
कर्तव्यों की राह भागी जा रही है यह उम्र।
जवाब देंहटाएंगुमनामी के अंधियारों में , खुशहाली परवान हुई।
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर छंद बद्ध अभिव्यक्ति।
बहुत ही भावपूर्ण अभिव्यक्ति..... आभार पंडित जी
जवाब देंहटाएंबहुत ही भावपूर्ण रचना ... आत्म चिंतन की पराकाष्ठा ...
जवाब देंहटाएंjeevan ka chitr prastut karta
जवाब देंहटाएंsunder geet.
shastriji dhanyvad!
आत्मावलोकन कराती एक बेहद उम्दा रचना।
जवाब देंहटाएंबेहद ही मर्मस्पर्शी रचना। आपका धन्यवाद।
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