आता है जब नया साल, जगती नवआशाएँ मन में। दे गया सीख जो गया साल, विस्मृत कर देते जीवन में। |
सुख का सूरज, दुख का कुहरा, कुछ भी तो याद नहीं रहता। नववर्ष मुबारक हो सबको, जन गण मन का मानस कहता। |
मज़हव की दीवार गिरायें, आओ नये साल में हम। दुनिया से आतंक मिटायें, आओ नये साल में हम।। |
जो कुछ अच्छा हुआ, हमेशा उनको ही बस याद करें हम। नमक छिड़कने में घावों पर, क्यो पल-छिन बरबाद करें हम?? |
वर्ष पुरातन विदा करें हम, हँसी खुशी से और जोश से। नये वर्ष का अभिनन्दन कर, काम करें हम सदा होश से।। |
जननी-जन्मभूमि को अपनी, जीवन भर ही नमन करें हम साल पुराना हो या नूतन, उग्रवाद का दमन करें हम।। |
नयेपन की ऊर्जा सबको मिले।
जवाब देंहटाएंनवीन संभावनाएं जन्मे!
जवाब देंहटाएंसुन्दर गीत!
सुन्दर रचना। आपको भी नव वर्ष की शुभकामनाएॅं।
जवाब देंहटाएंअति सुंदर रचना शास्त्री जी, धन्यवाद
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर सन्देश देती देशप्रेम के साथ एक नयी सुबह का आगाज़ करती तिरंगे मे लिपटी कविता बहुत ही पसन्द आयी।
जवाब देंहटाएंआपकी कविता में छुपी सद्भावनायें पूरी हों यही प्रार्थना है..
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी बात कही आपने ....सार्थक सन्देश !
जवाब देंहटाएंtirange par deshbhakti geet bahut hee sundar likha hai aapne!
जवाब देंहटाएंसुख का सूरज, दुख का कुहरा,
जवाब देंहटाएंकुछ भी तो याद नहीं रहता।
नववर्ष मुबारक हो सबको,
जन गण मन का मानस कहता।
Happy new year to you in Advance.
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जो कुछ अच्छा हुआ,
जवाब देंहटाएंहमेशा उनको ही बस याद करें हम।
नमक छिड़कने में घावों पर,
क्यो पल-छिन बरबाद करें हम??
और आखिरी पँक्तियाँ बहुत सुन्दर प्रेरक हैं। अच्छा सदेश दिया आपने। बधाई।
बहुत सुन्दर भावपूर्ण रचना ... आभार
जवाब देंहटाएंसुंदर काव्य प्रस्तुति शास्त्री जी
जवाब देंहटाएंbahot sunder.
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर.
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