कल-कल, छल-छल करती गंगा, मस्त चाल से बहती है। श्वाँसों की सरगम की धारा, यही कहानी कहती है।। हो जाता निष्प्राण कलेवर, जब धड़कन थम जाती हैं। सड़ जाता जलधाम सरोवर, जब लहरें थक जाती हैं। चरैवेति के बीज मन्त्र को, पुस्तक-पोथी कहती है। श्वाँसों की सरगम की धारा, यही कहानी कहती है।। हरे वृक्ष की शाखाएँ ही, झूम-झूम लहरातीं हैं। सूखी हुई डालियों से तो, हवा नहीं आ पाती है। जो हिलती-डुलती रहती है, वही थपेड़े सहती है। श्वाँसों की सरगम की धारा, यही कहानी कहती है।। काम अधिक हैं थोड़ा जीवन, झंझावात बहुत फैले हैं। नहीं हमेशा खिलता गुलशन, रोज नहीं लगते मेले हैं। सुख-दुख की आवाजाही तो, सदा संग में रहती है। श्वाँसों की सरगम की धारा, |
"उच्चारण" 1996 से समाचारपत्र पंजीयक, भारत सरकार नई-दिल्ली द्वारा पंजीकृत है। यहाँ प्रकाशित किसी भी सामग्री को ब्लॉग स्वामी की अनुमति के बिना किसी भी रूप में प्रयोग करना© कॉपीराइट एक्ट का उलंघन माना जायेगा। मित्रों! आपको जानकर हर्ष होगा कि आप सभी काव्यमनीषियों के लिए छन्दविधा को सीखने और सिखाने के लिए हमने सृजन मंच ऑनलाइन का एक छोटा सा प्रयास किया है। कृपया इस मंच में योगदान करने के लिएRoopchandrashastri@gmail.com पर मेल भेज कर कृतार्थ करें। रूप में आमन्त्रित कर दिया जायेगा। सादर...! और हाँ..एक खुशखबरी और है...आप सबके लिए “आपका ब्लॉग” तैयार है। यहाँ आप अपनी किसी भी विधा की कृति (जैसे- अकविता, संस्मरण, मुक्तक, छन्दबद्धरचना, गीत, ग़ज़ल, शालीनचित्र, यात्रासंस्मरण आदि प्रकाशित कर सकते हैं। बस आपको मुझे मेरे ई-मेल roopchandrashastri@gmail.com पर एक मेल करना होगा। मैं आपको “आपका ब्लॉग” पर लेखक के रूप में आमन्त्रित कर दूँगा। आप मेल स्वीकार कीजिए और अपनी अकविता, संस्मरण, मुक्तक, छन्दबद्धरचना, गीत, ग़ज़ल, शालीनचित्र, यात्रासंस्मरण आदि प्रकाशित कीजिए। |
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गुरुवार, 31 मार्च 2011
"श्वाँसों की सरगम" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री "मयंक")
बुधवार, 30 मार्च 2011
"शुभकामनाएँ!" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री "मयंक")
मंगलवार, 29 मार्च 2011
"ताज़ा दोहे" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री "मयंक")
माँ के कोमल हृदय को, सुत देते संताप। एक राह चलते नहीं, भरते हैं अवसाद।१। मेरे सपने में सजा, फिर से दिलकश चाँद। है मेरे दिलदार की, चिकनी-चिकनी चाँद।२। अब कैसे नव सृजन हो, मनवा है हैरान। गहरे सागर पैंठ कर, खोज रहे हैं ज्ञान।३। तन-मन को गद-गद करे, अनुशंसा का भाव। तारीफों के शब्द से, जल्दी भरते घाव।४। स्वार्थ भरे इस जगत में, जीवित है परमार्थ। युगों-युगों के बाद ही, आता जग में पार्थ।५। मुक्त नहीं हो पाओगे, कर लो यत्न अनेक। छोड़ ईर्ष्या-द्वेष को, काम करो कुछ नेक।६। चमत्कार को देख कर, नतमस्तक हैं लोग। खुश रहने के मन्त्र से, करें पलायन रोग।७। बना लिया है फ़ासला, हमने चारों ओर। बिन सूरज के जगत में, कभी न होती भोर।८। |
सोमवार, 28 मार्च 2011
"रबड़ छंद भाया है" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री "मयंक")
नये-नये बिम्ब लिए, साँझ नहीं-भोर नही, पाश्चात्य दीन-हीन, काव्य को दिखाया है। नये-नये बिम्ब लिए, |
रविवार, 27 मार्च 2011
"ग़ज़ल-आशा शैली" (प्रस्तोता-डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री "मयंक")
फिर एक बार मुलाकात अपने साथ करें तुम आसमां के हमें ख्वाब क्यों दिखाते हो ज़मी के लोग हैं हम इस ज़मी की बात करें उजाड़ जंगलों में क्या तलाशने निकले चलो नदी पे नहीं तो नदी की बात करें पिरामिडों में दफ़्न दौलतों को भूलो भी किसी के ग़म की किसी की खुशी की बात करें मुहब्बतों की बात यह जहान भूल गया ये ज़िंदगी है तो ज़िन्दादिली की बात करें कदम-कदम पे नफरतों के अन्धेरे हैं यहाँ वफ़ाशआर किसी रौशनी की बात करें ग़ज़ल का दौर है शैली कोई कलाम पढ़ो इस अंजुमन में क्यों न ताज़गी की बात करें श्रीमती आशा शैली "हिमाचली" |
शनिवार, 26 मार्च 2011
"ठगते हैं ये सारे" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री "मयंक")
पीछे मुड़ कर कभी न देखें, अपना आज सँवारें। औरों के गुण-दोष न देखें, अपना काज सुधारें।। स्वर्ग यहीं और नर्क यहीं है, किसने देखी जन्नत, चारों ओर सजे हैं अपने, सुन्दर-सुखद नज़ारे।। मानव चोला पाकर हम, अपने को मनुज बनाएँ, चंचल मन में प्रीत-रीत के, पीताम्बर को धारें।। क्षमा-सरलता और धैर्य ही, सच्चे आभूषण हैं। सोच-समझकर-नाप-तोलकर, ही हम शब्द उचारें।। पर उपदेश कुशल बहुतेरे, छाये दुनिया भर में। जग को झोंक रहे लहरों में, खुद हैं खड़े किनारे।। ऐसे ढोंगी सन्त-महन्तो से, बच करके रहना। धार धर्म का धवल लबादा, ठगते हैं ये सारे।। |
शुक्रवार, 25 मार्च 2011
"आओ इसकी करें सवारी" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री "मयंक")
मेरी साईकिल दो चक्कों की प्यारी-प्यारी। आओ इसकी करें सवारी।। साईकिल की शान निराली। इसकी चाल बहुत मतवाली।। बस्ते का यह भार उठाती। मुझको विद्यालय पहुँचाती।। पैडल मारो जोर लगाओ। मस्त चाल से इसे चलाओ।। सड़क देख कर खूब मचलती। पगडण्डी पर सरपट चलती। हटो-बचो मत शब्द पुकारो। भीड़ देखकर घण्टी मारो।। अच्छे अंक क्लास में लाओ। छुट्टी में इसको टहलाओ।। यह पैट्रोल नहीं है खाती। बिन ईंधन के चलती जाती।। |
गुरुवार, 24 मार्च 2011
""नजारे भारत और नेपाल के"" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री "मयंक")
इस पार हमारा भारत है उस पार बसा नेपाल देश।
जलधारा नदी शारदा की, मध्यस्थ बन रही है विशेष।।
बुधवार, 23 मार्च 2011
‘‘बहुत अच्छा लगता है।’’ डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’
शिष्ट मधुर व्यवहार, बहुत अच्छा लगता है। सपनों का संसार, बहुत अच्छा लगता है।। फूहड़पन के वस्त्र, बुरे सबको लगते हैं, जंग लगे से शस्त्र, बुरे सबको लगते हैं, स्वाभाविक श्रंगार, बहुत अच्छा लगता है। सपनों का संसार, बहुत अच्छा लगता है।। वचनों से कंगाल, बुरे सबको लगते हैं, जीवन के जंजाल, बुरे सबको लगते हैं, सजा हुआ घर-बार, बहुत अच्छा लगता है। सपनों का संसार, बहुत अच्छा लगता है।। चुगलखोर इन्सान, बुरे सबको लगते हैं, सूदखोर शैतान, बुरे सबको लगते हैं, सज्जन का सत्कार, बहुत अच्छा लगता है। सपनों का संसार, बहुत अच्छा लगता है।। लुटे-पिटे दरबार, बुरे सबको लगते हैं, दुःखों के अम्बार, बुरे सबको लगते हैं, हरा-भरा परिवार, बहुत अच्छा लगता है। सपनों का संसार, बहुत अच्छा लगता है।। मतलब वाले यार, बुरे सबको लगते हैं, चुभने वाले खार, बुरे सबको लगते हैं, निश्छल सच्चा प्यार, बहुत अच्छा लगता है। सपनों का संसार, बहुत अच्छा लगता है।। |
मंगलवार, 22 मार्च 2011
"ग़ज़ल:गुरू सहाय भटनागर बदनाम" (प्रस्तोता:डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री "मयंक")
गम-ए-पिन्हाँ डूब कर तेरे ख्यालों में आके बैठा हूँ कौन सा ग़म है जिसे मैं छुपा के बैठाहूँ बदलते दौर में कोई बफ़ा नहीं करता चाह की फिर में शम्मा जला के बैठा हूँ कुसूर तेरा ही नहीं किस्मत का ही होगा अपनी दाग दामन में खुद ही लगाके बैठा हूँ मैं तेरे ख्याल से खाली कभी नहीं रहता तुम्हारी याद को दिल में बसा के बैठा हूँ करके ‘बदनाम’ हमसे दूर चले जाओगें गमे-पिन्हाँ में मैं हरन्ती मिटा के बैठा हूँ |
सोमवार, 21 मार्च 2011
"कुछ शब्द सरल भर दो" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री "मयंक")
माँ मेरी रचना में, कुछ शब्द सरल भर दो। गीतों के सागर से, सब दूर गरल कर दो।।दिन-रात तपस्या कर, मैंने पूजा तुमको,जीवन भर का मेरा, संधान सफल कर दो।गीतों के सागर से, सब दूर गरल कर दो।।कुछ भी तो नहीं मेरा, माँ सब कुछ है तेरा,इस रीती गागर में, निज स्नेह सबल भर दो।गीतों के सागर से, सब दूर गरल कर दो।। लिखता हूँ जो कुछ मैं, वो धूमिल हो जाता,मसि देकर माता तुम, छवि धवल-प्रबल कर दो।गीतों के सागर से, सब दूर गरल कर दो।।जितना माँगा मैंने, उससे है अधिक दिया,मनके मनकों को तुम, माता उज्जवल कर दो।गीतों के सागर से, सब दूर गरल कर दो।। |
रविवार, 20 मार्च 2011
"बीत गया त्यौहार" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री "मयंक")
होली अब होली हुई, बीत गया त्यौहार। एक बरस के बाद फिर, बरसेगी रसधार।। -- कृपा करो परमात्मा, सुखी रहें नर-नार। हँसी-खुशी के साथ में, मनें सभी त्यौहार।। -- होली में जिस तरह से, उमड़ा प्रेम अपार। हर दिन ऐसा ही रहे, सबके दिल में प्यार।। -- बहुत-बहुत शुभकामनाएँ! |
शनिवार, 19 मार्च 2011
"होली का त्यौहार" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री "मयंक")
श्यामल-गोरे गाल भी, हो गये लालम-लाल।१। महके-चहके अंग हैं, उलझे-उलझे बाल। होली के त्यौहार पर, बहकी-बहकी चाल।२। हुलियारे करतें फिरें, चारों ओर धमाल। होली के इस दिवस पर, हो न कोई बबाल।३। कीचड़-कालिख छोड़कर, खेलो रंग-गुलाल। टेसू से महका हुआ, रंग बसन्ती डाल।४। खुशियों की बौछार हों, घर-आँगन औ द्वार। धान्य और धन लाएगा, होली का त्यौहार।५। |
"देख तमाशा होली का" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री "मयंक")
मित्रों ! आज किसी ने आकर बताया कि कल होली के अवसर पर एक समस्यापूर्ति (तरही-मिसरा) पर आधारित कविगोष्ठी खटीमा में आयोजित की जा रही है। जिसका शीर्षक रखा गया है- "देख तमाशा होली का" अचानक कुछ पंक्तियाँ बन गई हैं आप भी इनका आनन्द लीजिए! मौसम हँसी-ठिठोली का। देख तमाशा होली का।। उड़ रहे पीले-हरे गुलाल, हुआ है धरती-अम्बर लाल, भरे गुझिया-मठरी के थाल, चमकते रंग-बिरंगे गाल, गोप-गोपियाँ खेल रहे हैं, खेला आँख-मिचौली का। देख तमाशा होली का।। मस्त फुहारें लेकर आया, मौसम हँसी-ठिठोली का। देख तमाशा होली का।। पिचकारी बच्चों के कर में, हुल्लड़ मचा हुआ घर-घर में, हुलियारे हैं गली-डगर में, प्यार बसा हर जिगर-नजर में, चारों ओर नजारा पसरा, फागुन की रंगोली का। देख तमाशा होली का।। मस्त फुहारें लेकर आया, मौसम हँसी-ठिठोली का। देख तमाशा होली का।। डाली-डाली है गदराई, बागों में छाई अमराई, गुलशन में कलियाँ मुस्काई, रंग-बिरंगी तितली आई, कानों को अच्छा लगता सुर, कोयलिया की बोली का। देख तमाशा होली का।। मस्त फुहारें लेकर आया, मौसम हँसी-ठिठोली का। देख तमाशा होली का।। गीत प्यार का आओ गाएँ, मीत हमारे सब बन जाएँ, बैर-भाव को दूर भगाएँ, मिल-जुलकर त्यौहार मनाएँ, साथ सुहाना मिले सभी को, होली में हमजोली का। देख तमाशा होली का।। मस्त फुहारें लेकर आया, मौसम हँसी-ठिठोली का। देख तमाशा होली का।। |
गुरुवार, 17 मार्च 2011
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