गम-ए-पिन्हाँ डूब कर तेरे ख्यालों में आके बैठा हूँ कौन सा ग़म है जिसे मैं छुपा के बैठाहूँ बदलते दौर में कोई बफ़ा नहीं करता चाह की फिर में शम्मा जला के बैठा हूँ कुसूर तेरा ही नहीं किस्मत का ही होगा अपनी दाग दामन में खुद ही लगाके बैठा हूँ मैं तेरे ख्याल से खाली कभी नहीं रहता तुम्हारी याद को दिल में बसा के बैठा हूँ करके ‘बदनाम’ हमसे दूर चले जाओगें गमे-पिन्हाँ में मैं हरन्ती मिटा के बैठा हूँ |
"उच्चारण" 1996 से समाचारपत्र पंजीयक, भारत सरकार नई-दिल्ली द्वारा पंजीकृत है। यहाँ प्रकाशित किसी भी सामग्री को ब्लॉग स्वामी की अनुमति के बिना किसी भी रूप में प्रयोग करना© कॉपीराइट एक्ट का उलंघन माना जायेगा। मित्रों! आपको जानकर हर्ष होगा कि आप सभी काव्यमनीषियों के लिए छन्दविधा को सीखने और सिखाने के लिए हमने सृजन मंच ऑनलाइन का एक छोटा सा प्रयास किया है। कृपया इस मंच में योगदान करने के लिएRoopchandrashastri@gmail.com पर मेल भेज कर कृतार्थ करें। रूप में आमन्त्रित कर दिया जायेगा। सादर...! और हाँ..एक खुशखबरी और है...आप सबके लिए “आपका ब्लॉग” तैयार है। यहाँ आप अपनी किसी भी विधा की कृति (जैसे- अकविता, संस्मरण, मुक्तक, छन्दबद्धरचना, गीत, ग़ज़ल, शालीनचित्र, यात्रासंस्मरण आदि प्रकाशित कर सकते हैं। बस आपको मुझे मेरे ई-मेल roopchandrashastri@gmail.com पर एक मेल करना होगा। मैं आपको “आपका ब्लॉग” पर लेखक के रूप में आमन्त्रित कर दूँगा। आप मेल स्वीकार कीजिए और अपनी अकविता, संस्मरण, मुक्तक, छन्दबद्धरचना, गीत, ग़ज़ल, शालीनचित्र, यात्रासंस्मरण आदि प्रकाशित कीजिए। |
Linkbar
फ़ॉलोअर
मंगलवार, 22 मार्च 2011
"ग़ज़ल:गुरू सहाय भटनागर बदनाम" (प्रस्तोता:डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री "मयंक")
लोकप्रिय पोस्ट
-
दोहा और रोला और कुण्डलिया दोहा दोहा , मात्रिक अर्द्धसम छन्द है। दोहे के चार चरण होते हैं। इसके विषम चरणों (प्रथम तथा तृतीय) मे...
-
लगभग 24 वर्ष पूर्व मैंने एक स्वागत गीत लिखा था। इसकी लोक-प्रियता का आभास मुझे तब हुआ, जब खटीमा ही नही इसके समीपवर्ती क्षेत्र के विद्यालयों म...
-
नये साल की नयी सुबह में, कोयल आयी है घर में। कुहू-कुहू गाने वालों के, चीत्कार पसरा सुर में।। निर्लज-हठी, कुटिल-कौओं ने,...
-
समास दो अथवा दो से अधिक शब्दों से मिलकर बने हुए नए सार्थक शब्द को कहा जाता है। दूसरे शब्दों में यह भी कह सकते हैं कि &qu...
-
आज मेरे छोटे से शहर में एक बड़े नेता जी पधार रहे हैं। उनके चमचे जोर-शोर से प्रचार करने में जुटे हैं। रिक्शों व जीपों में लाउडस्पीकरों से उद्घ...
-
इन्साफ की डगर पर , नेता नही चलेंगे। होगा जहाँ मुनाफा , उस ओर जा मिलेंगे।। दिल में घुसा हुआ है , दल-दल दलों का जमघट। ...
-
आसमान में उमड़-घुमड़ कर छाये बादल। श्वेत -श्याम से नजर आ रहे मेघों के दल। कही छाँव है कहीं घूप है, इन्द्रधनुष कितना अनूप है, मनभावन ...
-
"चौपाई लिखिए" बहुत समय से चौपाई के विषय में कुछ लिखने की सोच रहा था! आज प्रस्तुत है मेरा यह छोटा सा आलेख। यहाँ ...
-
मित्रों! आइए प्रत्यय और उपसर्ग के बारे में कुछ जानें। प्रत्यय= प्रति (साथ में पर बाद में)+ अय (चलनेवाला) शब्द का अर्थ है , पीछे चलन...
-
“ हिन्दी में रेफ लगाने की विधि ” अक्सर देखा जाता है कि अधिकांश व्यक्ति आधा "र" का प्रयोग करने में बहुत त्र...
शास्त्री जी सारे शेर डायरी में नोट कर लिए है --सारे एक से बढकर एक है
जवाब देंहटाएंबेहतरीन शेर कहे हैं, पढवाने का आभार।
जवाब देंहटाएंमैं तेरे ख्याल से खाली कभी नहीं रहता
जवाब देंहटाएंतुम्हारी याद को दिल में बसा के बैठा हूँ
दिल की ये बातें अच्छी लगीं।
ग़ज़ल बहुत ही शानदार है।
लाजवाब रचना.
जवाब देंहटाएंरामराम
ek ravaanagi hai gazal me ..badhiya
जवाब देंहटाएंअभी-अभी तो होली खेली है डाक्टर साहब। कहां ये गम का फसाना लेकर बैठ गए।
जवाब देंहटाएंखूबसूरत गज़ल पढवाने के लिए आभार
जवाब देंहटाएंशास्त्री जी बदनाम साहब से परिचय करवाने के लिये आप का धन्यवाद
जवाब देंहटाएंपरिचय का आभार...पढ़कर आनन्द आ गया.
जवाब देंहटाएंहमेशा की तरह शानदार रचना।
जवाब देंहटाएंहोली के पर्व की अशेष मंगल कामनाएं।
धर्म की क्रान्तिकारी व्या ख्याa।
समाज के विकास के लिए स्त्रियों में जागरूकता जरूरी।
gazal kafi achchi lagi.mai bhi apne blog per ek apni diary se bhooli bisri gazal publish kar rahi hoon jaroor padhiyega.good day.
जवाब देंहटाएं"बदलते दौर में कोई बफ़ा नहीं करता" - यूं ही कोई बेवफ़ा नहीं होता, कुछ तो मजबूरी रही होगी।
जवाब देंहटाएं