मित्रों! आज से कुण्डलिया छन्द की शुरूआत कर रहा हूँ! देखिए मेरे दो दोहों पर रची हुई ये दो कुण्डलियाँ! (1) ज्ञान बाँटने से कोई, होता नहीं विपन्न। विद्या धन का दानकर, बन जाओ सम्पन्न।। बन जाओ सम्पन्न, करो कल्याण सभी का। पावन-पावन कर्म, हमेशा लगता नीका।। अब 'मयंक' चल पड़ा, झाड़-झंकाड़ काटने। निकला हूँ निष्काम, छन्द का ज्ञान बाँटने।। (2) भूसी-चावल सँग रहें, तभी बढ़े परिवार। हुए धान से जब अलग, बाँट खाय संसार।। बाँट खाय संसार, निभाओ साथ हमेशा। करो सरल व्यवहार, दूध-मक्खन के जैसा।। कह 'मयंक' कविराय, बहाओ धारा निर्मल। रहो संग में ऐसे, जैसे भूसी-चावल।। |
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सोमवार, 7 मार्च 2011
" कुण्डलिया छन्द की शुरूआत" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री "मयंक")
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जवाब देंहटाएंबहुत बढिया शास्त्री जी। धन्यवाद।
जवाब देंहटाएंबहुत बढिया जानकारी।
जवाब देंहटाएंआद. शास्त्री जी,
जवाब देंहटाएंदोनों ही कुण्डलियों का जवाब नहीं !
पहली कुण्डली में 'नीका' शब्द का प्रयोग इतना सुन्दर बन पड़ा है कि क्या कहूँ !
ब्लॉग जगत को आपका योगदान स्तुत्य है !
शुभकामनाएँ !
bahut achchhi hain kundaliyan.
जवाब देंहटाएंकुंडलिया छंद में लिखी सुन्दर रचनाएँ
जवाब देंहटाएंनमन आपका, शास्त्रीजी...
जवाब देंहटाएंउत्तम रचनाएँ...
कुण्डलियों की रचना के मूल को समझाएँ तो कृपा होगी...
आदरणीय शास्त्री जी - धन्यवाद्
जवाब देंहटाएंहम तो आपकी काव्य-रचना के कायल हैं शास्त्री जी ।
जवाब देंहटाएंबेहद उम्दा। शानदार।
जवाब देंहटाएंअरे वाह शास्त्री जी ये गज़ब आप ही कर सकते हैं……………बडे जोरदार कुण्डलियाँ छ्न्द हैं………आपकी काव्य रचना की यही सबसे बडी खासियत है।
जवाब देंहटाएंज्ञान बाँटने से कोई, होता नहीं विपन्न।
जवाब देंहटाएंविद्या धन का दानकर, बन जाओ सम्पन्न।।
बन जाओ सम्पन्न, करो कल्याण सभी का।
पावन-पावन कर्म, हमेशा लगता नीका।।
सभी उम्दा और उच्च कोटि के दोहे है शास्त्री जी !
ज्ञान बाँटने से कोई, होता नहीं विपन्न।
जवाब देंहटाएंविद्या धन का दानकर, बन जाओ सम्पन्न ...
दोनों ही कुण्डलियों का जवाब नहीं शास्त्री जी ...
ज्ञान बांटकर कोई होता नहीं निर्धन ...
जवाब देंहटाएंआजकल तो लोग ज्ञान बांटकर ही करोडपति हो रहे हैं , अब निस्वार्थ विद्या दान करने वाले भी गिनतियों में ही हैं ..
कुंडलियों के माध्यम से सार्थक सन्देश !
छंदज्ञान कराती सुन्दर रचना....
जवाब देंहटाएंआप हमारे प्रेरणास्रोत हैं शास्त्रीजी !
bahut sunder rachnaye padhneko mili......
जवाब देंहटाएंkuch nai jankari bhi mili jinko mai nahi janti thi....
ब्लॉग तो हजारों देखे, ना देख्यो उच्चारण सा कोय |
जवाब देंहटाएंकह 'दर्शन' कविराय, मन 'मयंकवाणी' में खोय ||
दोनों ही कुण्डलियां बहुत अच्छी लिखी हैं आपने शास्त्री जी... शुभकामनाएं
जवाब देंहटाएंक्या बात...वाह..!!
जवाब देंहटाएंअब 'मयंक' चल पड़ा, झाड़-झंकाड़ काटने। निकला हूँ निष्काम, छन्द का ज्ञान बाँटने।।
जवाब देंहटाएंक्या बात है गुरु जी. बहुत ही बढ़िया लेखन ओर बहुत ही बढ़िया प्रयास. शुभकामनाएं.
अति उम्दा.
जवाब देंहटाएंरामराम.
चर्चा मंच के साप्ताहिक काव्य मंच पर आपकी प्रस्तुति मंगलवार 08-03 - 2011
जवाब देंहटाएंको ली गयी है ..नीचे दिए लिंक पर कृपया अपनी प्रतिक्रिया दे कर अपने सुझावों से अवगत कराएँ ...शुक्रिया ..
http://charchamanch.uchcharan.com/
बड़ी ही सुन्दर व अनुसरणीय कविता।
जवाब देंहटाएंनिकला हूँ निष्काम, छन्द का ज्ञान बाँटने।।
जवाब देंहटाएंhamari shubhkamna is nek kaam ke liye aapke saath hai.bahut achcha likhe hain.
सार्थक सन्देश देती बहुत सुन्दर कुण्डलियाँ...आभार
जवाब देंहटाएंशास्त्री जी बहुत ही सुंदर कुंडलिया वो भी खास कर पहले से रचे गये दोहों के ऊपर| सादर नमन आदरणीय|
जवाब देंहटाएंbahut sundar rachna ! raho saath men aise boosi-chaval jaise ...badhai evm shubhkamnaen !
जवाब देंहटाएंbahut sunder kundliya...chalo is bahane aur gyan prapt hoga.
जवाब देंहटाएंaabhar.
shaandar
जवाब देंहटाएंज्ञानवर्धक सुंदर कुण्डलियाँ
जवाब देंहटाएं