माँ मेरी रचना में, कुछ शब्द सरल भर दो। गीतों के सागर से, सब दूर गरल कर दो।।दिन-रात तपस्या कर, मैंने पूजा तुमको,जीवन भर का मेरा, संधान सफल कर दो।गीतों के सागर से, सब दूर गरल कर दो।।कुछ भी तो नहीं मेरा, माँ सब कुछ है तेरा,इस रीती गागर में, निज स्नेह सबल भर दो।गीतों के सागर से, सब दूर गरल कर दो।। लिखता हूँ जो कुछ मैं, वो धूमिल हो जाता,मसि देकर माता तुम, छवि धवल-प्रबल कर दो।गीतों के सागर से, सब दूर गरल कर दो।।जितना माँगा मैंने, उससे है अधिक दिया,मनके मनकों को तुम, माता उज्जवल कर दो।गीतों के सागर से, सब दूर गरल कर दो।। |
"उच्चारण" 1996 से समाचारपत्र पंजीयक, भारत सरकार नई-दिल्ली द्वारा पंजीकृत है। यहाँ प्रकाशित किसी भी सामग्री को ब्लॉग स्वामी की अनुमति के बिना किसी भी रूप में प्रयोग करना© कॉपीराइट एक्ट का उलंघन माना जायेगा। मित्रों! आपको जानकर हर्ष होगा कि आप सभी काव्यमनीषियों के लिए छन्दविधा को सीखने और सिखाने के लिए हमने सृजन मंच ऑनलाइन का एक छोटा सा प्रयास किया है। कृपया इस मंच में योगदान करने के लिएRoopchandrashastri@gmail.com पर मेल भेज कर कृतार्थ करें। रूप में आमन्त्रित कर दिया जायेगा। सादर...! और हाँ..एक खुशखबरी और है...आप सबके लिए “आपका ब्लॉग” तैयार है। यहाँ आप अपनी किसी भी विधा की कृति (जैसे- अकविता, संस्मरण, मुक्तक, छन्दबद्धरचना, गीत, ग़ज़ल, शालीनचित्र, यात्रासंस्मरण आदि प्रकाशित कर सकते हैं। बस आपको मुझे मेरे ई-मेल roopchandrashastri@gmail.com पर एक मेल करना होगा। मैं आपको “आपका ब्लॉग” पर लेखक के रूप में आमन्त्रित कर दूँगा। आप मेल स्वीकार कीजिए और अपनी अकविता, संस्मरण, मुक्तक, छन्दबद्धरचना, गीत, ग़ज़ल, शालीनचित्र, यात्रासंस्मरण आदि प्रकाशित कीजिए। |
Linkbar
फ़ॉलोअर
सोमवार, 21 मार्च 2011
"कुछ शब्द सरल भर दो" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री "मयंक")
लोकप्रिय पोस्ट
-
दोहा और रोला और कुण्डलिया दोहा दोहा , मात्रिक अर्द्धसम छन्द है। दोहे के चार चरण होते हैं। इसके विषम चरणों (प्रथम तथा तृतीय) मे...
-
लगभग 24 वर्ष पूर्व मैंने एक स्वागत गीत लिखा था। इसकी लोक-प्रियता का आभास मुझे तब हुआ, जब खटीमा ही नही इसके समीपवर्ती क्षेत्र के विद्यालयों म...
-
नये साल की नयी सुबह में, कोयल आयी है घर में। कुहू-कुहू गाने वालों के, चीत्कार पसरा सुर में।। निर्लज-हठी, कुटिल-कौओं ने,...
-
समास दो अथवा दो से अधिक शब्दों से मिलकर बने हुए नए सार्थक शब्द को कहा जाता है। दूसरे शब्दों में यह भी कह सकते हैं कि ...
-
आज मेरे छोटे से शहर में एक बड़े नेता जी पधार रहे हैं। उनके चमचे जोर-शोर से प्रचार करने में जुटे हैं। रिक्शों व जीपों में लाउडस्पीकरों से उद्घ...
-
इन्साफ की डगर पर , नेता नही चलेंगे। होगा जहाँ मुनाफा , उस ओर जा मिलेंगे।। दिल में घुसा हुआ है , दल-दल दलों का जमघट। ...
-
आसमान में उमड़-घुमड़ कर छाये बादल। श्वेत -श्याम से नजर आ रहे मेघों के दल। कही छाँव है कहीं घूप है, इन्द्रधनुष कितना अनूप है, मनभावन ...
-
"चौपाई लिखिए" बहुत समय से चौपाई के विषय में कुछ लिखने की सोच रहा था! आज प्रस्तुत है मेरा यह छोटा सा आलेख। यहाँ ...
-
मित्रों! आइए प्रत्यय और उपसर्ग के बारे में कुछ जानें। प्रत्यय= प्रति (साथ में पर बाद में)+ अय (चलनेवाला) शब्द का अर्थ है , पीछे चलन...
-
“ हिन्दी में रेफ लगाने की विधि ” अक्सर देखा जाता है कि अधिकांश व्यक्ति आधा "र" का प्रयोग करने में बहुत त्र...
maan srsvti shighr hi aapki vndna svikar kre . akhtar khan akela kota rajsthan
जवाब देंहटाएंकुछ भी तो नहीं मेरा, माँ सब कुछ है तेरा,
जवाब देंहटाएंइस रीती गागर में, निज स्नेह सबल भर दो ...
नमस्कार शास्त्री जी .... बहुत सुंदर ... मधुर प्रार्थना की तरह है ये गीत ...
सुन्दर मधुर भावमयी वंदना.
जवाब देंहटाएंशास्त्री जी
जवाब देंहटाएंमाँ की इस भावमयी सरल शब्दो मे की गयी वन्दना से मन अभिभूत हो गया………बहुत अच्छी लगी आज की ये रचना जैसे हम सबके मन की बात आपने कह दी हो।
बहुत सुन्दर भावमयी सरस्वती वंदना..आभार
जवाब देंहटाएंविनम्रता और समर्पण के भावों की अनुगूँज से ही ऐसी प्रार्थना उपजती है !
जवाब देंहटाएंआभार,शास्त्री जी !
बहुत सुखद प्रार्थना ..
जवाब देंहटाएंमां सरस्वती की वंदना बहुत अच्छी लगी धन्यवाद
जवाब देंहटाएंसाधना की पराकाष्ठा अभिव्यक्ति की सरलता लाती है।
जवाब देंहटाएंचर्चा मंच के साप्ताहिक काव्य मंच पर आपकी प्रस्तुति मंगलवार 22 -03 - 2011
जवाब देंहटाएंको ली गयी है ..नीचे दिए लिंक पर कृपया अपनी प्रतिक्रिया दे कर अपने सुझावों से अवगत कराएँ ...शुक्रिया ..
http://charchamanch.blogspot.com/
गीतों के सागर से, सब दूर गरल कर दो।।
जवाब देंहटाएंbahut sundar prarthna.
बहुत खुबसूरत सुरों में सजी प्यारी सी वंदना |
जवाब देंहटाएंbahut sundar saraswati-vandna likhi hai aapne.
जवाब देंहटाएंबहुत ख़ूबसूरत, मधुर और भावपूर्ण रचना लिखा है आपने !
जवाब देंहटाएंइस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंहोठों से छू लो तुम............
जवाब देंहटाएंइस धुन पर क्या सुंदर और स-रस प्रस्तुति दी है शास्त्री जी| नमन आदरणीय|
"गीतों के सागर से ,सब दूर गरल करदो "
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी प्रार्थना की है |बधाई
आशा
बहुत सुन्दर.....
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुंदर रचना,
जवाब देंहटाएंरामराम
बहुत सुंदर भाव मानो शब्दों की सरिता बह रही हैं
जवाब देंहटाएंआज 19/मार्च/2015 को आपकी पोस्ट का लिंक है http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर
जवाब देंहटाएंधन्यवाद!
बहुत सुंदर !
जवाब देंहटाएं