रोज़-रोज़ मैं शब्दों का गठबन्धन करता जाता हूँ। जो दिनभर में देखा, उसको रचना में दुहराता हूँ।। नया साल या प्रेमदिवस हो या हो होली-दीवाली, रक्षाबन्धन जन्मदिवस या हो खेतों की हरियाली, ग्रीष्म-शीत और वर्षा पर तुकबन्दी कर हर्षाता हूँ। जो दिनभर में देखा, उसको रचना में दुहराता हूँ।। महादेव का वन्दन हो या हो माता का आराधन, कोमल बच्चे याद दिला जाते मुझको मेरा बचपन, बालगीत नित नये बनाकर उनको रोज सुनाता हूँ। जो दिनभर में देखा, उसको रचना में दुहराता हूँ।। दीन-दुखी. बूढ़े वरगद का होता है अपमान जहाँ, खूनसनी स्याही से लिखती, अक्षर मेरी कलम वहाँ, अबलाओं की व्यथा देख, खामोश नहीं रह पाता हूँ। जो दिनभर में देखा, उसको रचना में दुहराता हूँ।। जंगली जीवों और वनों का दोहन नही देखा जाता, सरिताओं में बढ़े प्रदूषण से मेरा मन अकुलाता, मानवता को चीख-चीखकर, मैं दिन-रात जगाता हूँ। जो दिनभर में देखा, उसको रचना में दुहराता हूँ।। |
"उच्चारण" 1996 से समाचारपत्र पंजीयक, भारत सरकार नई-दिल्ली द्वारा पंजीकृत है। यहाँ प्रकाशित किसी भी सामग्री को ब्लॉग स्वामी की अनुमति के बिना किसी भी रूप में प्रयोग करना© कॉपीराइट एक्ट का उलंघन माना जायेगा। मित्रों! आपको जानकर हर्ष होगा कि आप सभी काव्यमनीषियों के लिए छन्दविधा को सीखने और सिखाने के लिए हमने सृजन मंच ऑनलाइन का एक छोटा सा प्रयास किया है। कृपया इस मंच में योगदान करने के लिएRoopchandrashastri@gmail.com पर मेल भेज कर कृतार्थ करें। रूप में आमन्त्रित कर दिया जायेगा। सादर...! और हाँ..एक खुशखबरी और है...आप सबके लिए “आपका ब्लॉग” तैयार है। यहाँ आप अपनी किसी भी विधा की कृति (जैसे- अकविता, संस्मरण, मुक्तक, छन्दबद्धरचना, गीत, ग़ज़ल, शालीनचित्र, यात्रासंस्मरण आदि प्रकाशित कर सकते हैं। बस आपको मुझे मेरे ई-मेल roopchandrashastri@gmail.com पर एक मेल करना होगा। मैं आपको “आपका ब्लॉग” पर लेखक के रूप में आमन्त्रित कर दूँगा। आप मेल स्वीकार कीजिए और अपनी अकविता, संस्मरण, मुक्तक, छन्दबद्धरचना, गीत, ग़ज़ल, शालीनचित्र, यात्रासंस्मरण आदि प्रकाशित कीजिए। |
Linkbar
फ़ॉलोअर
रविवार, 6 मार्च 2011
"....तुकबन्दी कर हर्षाता हूँ" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री "मयंक")
लोकप्रिय पोस्ट
-
दोहा और रोला और कुण्डलिया दोहा दोहा , मात्रिक अर्द्धसम छन्द है। दोहे के चार चरण होते हैं। इसके विषम चरणों (प्रथम तथा तृतीय) मे...
-
लगभग 24 वर्ष पूर्व मैंने एक स्वागत गीत लिखा था। इसकी लोक-प्रियता का आभास मुझे तब हुआ, जब खटीमा ही नही इसके समीपवर्ती क्षेत्र के विद्यालयों म...
-
नये साल की नयी सुबह में, कोयल आयी है घर में। कुहू-कुहू गाने वालों के, चीत्कार पसरा सुर में।। निर्लज-हठी, कुटिल-कौओं ने,...
-
समास दो अथवा दो से अधिक शब्दों से मिलकर बने हुए नए सार्थक शब्द को कहा जाता है। दूसरे शब्दों में यह भी कह सकते हैं कि &qu...
-
आज मेरे छोटे से शहर में एक बड़े नेता जी पधार रहे हैं। उनके चमचे जोर-शोर से प्रचार करने में जुटे हैं। रिक्शों व जीपों में लाउडस्पीकरों से उद्घ...
-
इन्साफ की डगर पर , नेता नही चलेंगे। होगा जहाँ मुनाफा , उस ओर जा मिलेंगे।। दिल में घुसा हुआ है , दल-दल दलों का जमघट। ...
-
आसमान में उमड़-घुमड़ कर छाये बादल। श्वेत -श्याम से नजर आ रहे मेघों के दल। कही छाँव है कहीं घूप है, इन्द्रधनुष कितना अनूप है, मनभावन ...
-
"चौपाई लिखिए" बहुत समय से चौपाई के विषय में कुछ लिखने की सोच रहा था! आज प्रस्तुत है मेरा यह छोटा सा आलेख। यहाँ ...
-
मित्रों! आइए प्रत्यय और उपसर्ग के बारे में कुछ जानें। प्रत्यय= प्रति (साथ में पर बाद में)+ अय (चलनेवाला) शब्द का अर्थ है , पीछे चलन...
-
“ हिन्दी में रेफ लगाने की विधि ” अक्सर देखा जाता है कि अधिकांश व्यक्ति आधा "र" का प्रयोग करने में बहुत त्र...
नया साल या प्रेमदिवस हो या हो होली-दीवाली,
जवाब देंहटाएंरक्षाबन्धन जन्मदिवस या हो खेतों की हरियाली,
ग्रीष्म-शीत और वर्षा पर तुकबन्दी कर हर्षाता हूँ।
जो दिनभर में देखा, उसको रचना में दुहराता हूँ।
bahut sunder
"एक सच्चे कवि की है ये पहचान,बोल चाल की बातों से भी गढ़ता है वो गान"......पर शास्त्री जी आपकी कविताएँ तो काव्य गंगा के वो पावण अमृत है,जिनका रसपान कर मुर्दों में भी जान आ जाये..........."तुकबंदी तो हम करते है....और हमेशा सीखते है आपसे....धन्यवाद।
जवाब देंहटाएंbahut hee khoobsurat rachna guru ji!
जवाब देंहटाएंआप की कविता तो हमेशा सुंदर ओर लाजबाव होती हे, हमे तो यह तुकबन्दी भी करनी नही आती:), धन्यवाद
जवाब देंहटाएंआपके हर अवलोकनों में काव्यात्मकता है, बच्चों को यही भाता है, आप न जाने कितने कवि निर्माण कर रहे हैं।
जवाब देंहटाएंबढिया है बहुत बढिया. तुकबन्दियां तो गीत की जान होती हैं.
जवाब देंहटाएंyeh to aapki medha hai...
जवाब देंहटाएंतुकबंदी कहाँ ..छंद में रचनाएँ करते हैं आप तो ..बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति ..
जवाब देंहटाएंtukbadiyeain to kamal ki hai
जवाब देंहटाएंकमाल की तुकबंदी है जी| धन्यवाद|
जवाब देंहटाएंसुन्दर
जवाब देंहटाएंदीन-दुखी. बूढ़े वरगद का होता है अपमान जहाँ,खूनसनी स्याही से लिखती, अक्षर मेरी कलम वहाँ,अबलाओं की व्यथा देख, खामोश नहीं रह पाता हूँ।जो दिनभर में देखा, उसको रचना में दुहराता हूँ।।
जवाब देंहटाएं.
अति सुंदर
' जो दिनभर में देखा, उसको रचना में दुहराता हूँ।'
जवाब देंहटाएंवाह क्या सीधी सपाट बात।
बेहतरीन रचना।
बधाई हो आपको शास्त्री जी।
अब इसको तुकबंदी कहेंगे तो कविता क्याहोगी पंडित जी!!
जवाब देंहटाएंशास्त्री जी, आपकी तुकबंदी ही दिल को हर्षाती हे विभिन्न रंगो में सजी होली के त्यौहार की तरह --बधाई |
जवाब देंहटाएंमानवता को चीख-चीखकर, मैं दिन-रात जगाता हूँ।
जवाब देंहटाएंजो दिनभर में देखा, उसको रचना में दुहराता हूँ।।
bahut achchi lagi.....
आपने रचना लेखन पर रचना लिखी है..... बहुत ही सुंदर .....कमाल का अवलोकन है आपका
जवाब देंहटाएंबेहतरीन तो रच रहे हैं...काहे अवलोकन में लग गये///शुभकामनाएँ.
जवाब देंहटाएंवाह... बहुत बढ़िया!!!
जवाब देंहटाएंक्या कहूँ……………लाजवाब अभिव्यक्ति……………आपकी इस रचना के आगे तो शब्द निशब्द हो गये।
जवाब देंहटाएं