मैं हिमगिरि हूँ सच्चा प्रहरी,
रक्षा करने वाला हूँ।
शीश-मुकुट हिमवान अचल हूँ,
सीमा का रखवाला हूँ।।
मैं अभेद्य दुर्ग का उन्नत
बलशाली
परकोटा हूँ।
मैं हूँ वज्र समान हिमालय,
कोई न छोटा-मोटा हूँ।।
माँ की आन-बान की खातिर,
सजग हमेशा खड़ा हुआ हूँ,
दुश्मन को ललकार रहा हूँ,
मुस्तैदी से अड़ा हुआ हूँ,
प्राणों से प्यारी माता के लिए,
वीर बलिदान हो गये।
संगीनों पर माथा रखके,
सरहद पर कुर्बान हो गये।।
मैं सागर हूँ देव-भूमि को,
दिन और रात सवाँर रहा हूँ।
मैं गंगा के पावन जल से,
माँ के चरण पखार रहा हूँ।।
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गुरुवार, 20 सितंबर 2012
"सीमा का रखवाला हूँ" बालकविता (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री मयंक')
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बहुत अच्छी ज्ञान से भरी बाल कविता बहुत बधाई इस कविता के लिए
जवाब देंहटाएंbahut achchi kavita hai.....
जवाब देंहटाएंउत्कृष्ट प्रस्तुति शुक्रवार के चर्चा मंच पर ।।
जवाब देंहटाएंप्रेरक बाल कविता..
जवाब देंहटाएंबेहतरीन बल मनोभावों की सरल सशक्त अभिव्यक्ति ,सादर ,
जवाब देंहटाएंबाल कविता कम पढ़ने को मिलती हैं ...साधारण शब्दों से सजी बढिया कविता
जवाब देंहटाएंप्यारी कविता .....
जवाब देंहटाएंअच्छी बाल कविता.
जवाब देंहटाएंमैं अभेद्य दुर्ग का उन्नत
जवाब देंहटाएंबलशाली परकोटा हूँ।
मैं हूँ वज्र समान हिमालय,
कोई न छोटा-मोटा हूँ।।
जल प्लावन से डरके रहना ,मुझसे थोड़ा हटके रहना
मुझसे ही हिमनद सब निकरे ,
मैं भारत की शान हूँ .
आलय हिम का महान हूँ .
बढ़िया प्रस्तुति .तदानुभूति कराती देश प्रेम की .
प्रेरक ओर देशभक्ति पूर्ण अत्यंत सुन्दर बाल कविता ....!!!
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