दाँव-पेंच हो जाता है।
स्याही नहीं लेखनी में अब,
खून उतरकर आता है।।
पहले से अनुमान लगाकर,
नहीं नियोजन करता हूँ,
लक्ष्यहीन लेखन से प्रतिदिन,
पन्नों को ही भरता हूँ,
जैसे एक नशेड़ी पथ
पर,
अपने कदम बढ़ाता है।
स्याही नहीं लेखनी में अब,
खून उतरकर आता है।।
कोयल ने जब कुहुक भरी तो,
मन ही मन मुस्काता हूँ,
जब काँटे चुभते पाँवों में,
थोड़ा सा सुस्ताता हूँ,
सुख-दुख के ताने-बाने का,
अनुभव मुझे सताता है।
स्याही नहीं लेखनी में अब,
खून उतरकर आता है।।
कैसे तन और मन हो निर्मल,
मैली गंगा की धारा,
कंकरीट की देख फसल को,
कृषक बन गया बे-चारा,
धरा-धाम और जल-जीवन से,
मेरा भी तो नाता है।
स्याही नहीं लेखनी में अब,
खून उतरकर आता है।।
लज्जा लुटती देख
नारि की,
कैसे चुप हो जाऊँ मैं,
देख शासकों की चुप्पी को,
गुमसुम क्यों हो जाऊँ मैं,
मातृमूमि से गद्दारी को,
सहन न मन कर पाता है।
स्याही नहीं लेखनी में अब,
खून उतरकर आता है।।
|
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मंगलवार, 22 जनवरी 2013
"1600वीं पोस्ट" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
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लज्जा लुटती देख नारि की,
जवाब देंहटाएंकैसे चुप हो जाऊँ मैं,
देख शासकों की चुप्पी को,
गुमसुम क्यों हो जाऊँ मैं,
मातृमूमि से गद्दारी को,
सहन न मन कर पाता है।
स्याही के बदले कूची में,
खून उतरकर आता है।।
बहुत ही बेहतरीन प्रस्तुति है बेहतरीन भाव हार्दिक बधाई 1600 वीं पोस्ट हेतु
१६०० वीं पोस्ट की बहुत बहुत बधाई
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर विचार , अच्छा प्रवाह ,उम्दा प्रस्तुति ,
जवाब देंहटाएंहार्दिक बधाई !
New post कुछ पता नहीं !!! ( तृतीय और अंतिम भाग )
New post : शहीद की मज़ार से
शुभकामनायें गुरु जी-
जवाब देंहटाएं१६०० वीं प्रस्तुति भी शानदार है-
१६०० वीं पोस्ट की बहुत बहुत बधाई
जवाब देंहटाएंबहुत ही बढ़िया रचना।।।
:-)
आपक नाम एक दिन गिनीज बुक आफ वर्ल्ड रिकार्ड्स में अवश्य आयेगा-स्वरचित रचनाओं के लिये...
जवाब देंहटाएं1600 वीं पोस्ट के लिये हार्दिक बधाई व शुभकामनायें
जवाब देंहटाएंकैसे तन और मन हो निर्मल,
जवाब देंहटाएंमैली गंगा की धारा,
कंकरीट की देख फसल को,
कृषक बन गया बे-चारा,
धरा-धाम और जल-जीवन से,
मेरा भी तो नाता है।
स्याही के बदले कूची में,
खून उतरकर आता है।।
बहुत ही बेहतरीन प्रस्तुति है। 1600 पोस्ट पूरा होने पर आपको हार्दिक शुभकामनाएं। शुभ रात्रि
बहुत बढ़िया प्रस्तुति ...1600 वीं पोस्ट के लिये हार्दिक बधाई व शुभकामनायें.आभार
जवाब देंहटाएंहार्दिक बधाई ...
जवाब देंहटाएंबढिया सर जी
जवाब देंहटाएंबहुत बढिया
बधाई आपको ...शुभकामनाएं
जवाब देंहटाएं16000 honi baaki hain...guruji...badhaiyaan
जवाब देंहटाएंस्याही नहीं लेखनी में अब,
जवाब देंहटाएंखून उतरकर आता है।।
बहुत ही भावपूर्ण प्रस्तुति,उपरोक्त दो पंक्तियाँ तो दिल को छू गयीं।1600 वीं पोस्ट के लिए हार्दिक बधाई।
सर सर्व प्रथम १६०० वीं पोस्ट हेतु आपको शुभकामनाएं अंकों का यह सिलसिला यूँ ही बढ़ता जाए. इन पंक्तियों में आपने जीवन एक ऐसा सुन्दर दृश्य दिखाया है जो की विचारणीय है, इस सुन्दर रचना हेतु आपको हार्दिक बधाई.
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुन्दर प्रस्तुति है धन्यवाद ।
जवाब देंहटाएं
जवाब देंहटाएंसामयिक प्रासंगिक दो टूक ,शर्म उनको फिर भी नहीं आती .
लज्जा लुटती देख नारि की,
कैसे चुप हो जाऊँ मैं,
देख शासकों की चुप्पी को,
गुमसुम क्यों हो जाऊँ मैं,
मातृमूमि से गद्दारी को,
सहन न मन कर पाता है।
स्याही नहीं लेखनी में अब,
खून उतरकर आता है।।
लज्जा लुटती देख नारि की,
जवाब देंहटाएंकैसे चुप हो जाऊँ मैं,
देख शासकों की चुप्पी को,
गुमसुम क्यों हो जाऊँ मैं,
मातृमूमि से गद्दारी को,
सहन न मन कर पाता है।
बहुत प्रभावशाली पंक्तियाँ...बधाई इस उपलब्धि पर !
स्याही नहीं लेखनी में अब,
जवाब देंहटाएंखून उतरकर आता है...1600वीं पोस्ट के बधाई व शुभकामनाएं
1600वी पोस्ट के लिए बधाई। इस रचना के लिए तो कहना ही क्या? अब आपकी लेखनी आग उगल रही है, आज देश को इसी की आवश्यकता है।
जवाब देंहटाएंशास्त्री सर, सबसे पहले १६०० वीं पोस्ट के लिए ढेर सारी बधाइयाँ व हार्दिक शुभकामनाएँ!:)
जवाब देंहटाएंये आपके अनुभव का ही कमाल है जो आपकी लेखनी इस तरह अनवरत रूप से अर्थपूर्ण, भावपूर्ण रस छलकाती चल रही है...! आपकी रचना का एक-एक शब्द दिल को छू गया ! बहुत ही खूबसूरत रचना! अति सुंदर अभिव्यक्ति!
~सादर!!!
शब्दों को लाल रंग भरना है,
जवाब देंहटाएंकुछ कहना नहीं, करना है।
सुंदर अभिव्यक्ति!
जवाब देंहटाएं१६०० वीं पोस्ट की बहुत बहुत बधाई शुभ कामनाए,,,
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