गाकर आज सुनाता हूँ मैं,
गाथा हिन्दुस्तान की।
नहीं रही अब कोई कीमत,
वीरों के बलिदान की।।
नहीं रहे अब वीर शिवा,
राणा जैसे अपने शासक,
राजा और वजीर आज के,
बने हुए थोथे भाषक,
लज्जा की है बात बहुत,
ये बात नहीं अभिमान की।
नहीं रही अब कोई कीमत,
वीरों के बलिदान की।।
कहने को तो आजादी है,
मन में वही गुलामी है,
पश्चिम के देशों का भारत,
बना हुए अनुगामी है,
मक्कारों ने कमर तोड़ दी,
आन-बान और शान की।
नहीं रही अब कोई कीमत,
वीरों के बलिदान की।।
बाप बना राजा तो उसका,
बेटा राजकुमार बना,
प्रजातन्त्र की फुलवारी में,
उपजा खरपतवार घना,
लोकतन्त्र में गन्ध आ रही,
खद्दर के परिधान की।
नहीं रही अब कोई कीमत,
वीरों के बलिदान की।।
देशी नाम-विधान विदेशी,
सिसक रहा गणतन्त्र यहाँ,
लचर व्यवस्था देख-देखकर,
खिसक रहा जनतन्त्र यहाँ,
हार गई फरियाद यहाँ पर,
अब सच्चे इन्सान की।
नहीं रही अब कोई कीमत,
वीरों के बलिदान की।।
-0-0-0- इस रचना को मेरे नाम के साथ यहाँ भी लगाया गया है! "सिसक रहा गणतन्त्र" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक') |
"उच्चारण" 1996 से समाचारपत्र पंजीयक, भारत सरकार नई-दिल्ली द्वारा पंजीकृत है। यहाँ प्रकाशित किसी भी सामग्री को ब्लॉग स्वामी की अनुमति के बिना किसी भी रूप में प्रयोग करना© कॉपीराइट एक्ट का उलंघन माना जायेगा। मित्रों! आपको जानकर हर्ष होगा कि आप सभी काव्यमनीषियों के लिए छन्दविधा को सीखने और सिखाने के लिए हमने सृजन मंच ऑनलाइन का एक छोटा सा प्रयास किया है। कृपया इस मंच में योगदान करने के लिएRoopchandrashastri@gmail.com पर मेल भेज कर कृतार्थ करें। रूप में आमन्त्रित कर दिया जायेगा। सादर...! और हाँ..एक खुशखबरी और है...आप सबके लिए “आपका ब्लॉग” तैयार है। यहाँ आप अपनी किसी भी विधा की कृति (जैसे- अकविता, संस्मरण, मुक्तक, छन्दबद्धरचना, गीत, ग़ज़ल, शालीनचित्र, यात्रासंस्मरण आदि प्रकाशित कर सकते हैं। बस आपको मुझे मेरे ई-मेल roopchandrashastri@gmail.com पर एक मेल करना होगा। मैं आपको “आपका ब्लॉग” पर लेखक के रूप में आमन्त्रित कर दूँगा। आप मेल स्वीकार कीजिए और अपनी अकविता, संस्मरण, मुक्तक, छन्दबद्धरचना, गीत, ग़ज़ल, शालीनचित्र, यात्रासंस्मरण आदि प्रकाशित कीजिए। |
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शुक्रवार, 25 जनवरी 2013
"सिसक रहा गणतन्त्र" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
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शत प्रतिशत सही कहा आक्रोशित मन से निकले उन्नत भाव बहुत खूब लिखा हार्दिक बधाई
जवाब देंहटाएंbahut sunder rachna hai ji !! sharam unko pata nahi aayegi yaa nahi . share kar rahaa hoon , mere blog " 5th pillar corrouption killer "
जवाब देंहटाएंदेशी नाम-विधान विदेशी,
जवाब देंहटाएंसिसक रहा गणतन्त्र यहाँ,
लचर व्यवस्था देख-देखकर,
खिसक रहा जनतन्त्र यहाँ,
हार गई फरियाद यहाँ पर,
अब सच्चे इन्सान की।
नहीं रही अब कोई कीमत,
वीरों के बलिदान की।।
यही सच है.-सुन्दर प्रस्तुति
New post कृष्ण तुम मोडर्न बन जाओ !
आज की कटु सच्चाई बया करती इस शानदार रचना के लिए शास्त्री जी को वधाई !
जवाब देंहटाएंआदरणीय सर वर्तमान परिस्थिति का सम्पूर्ण विवरण, हम सभी के ह्रदय की पीर का सुन्दर चित्रण किया है आपने, आपको प्रणाम आपकी लेखनी को नमन. सादर
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया सामयिक चिंतन ..
जवाब देंहटाएंगणतन्त्र की हार्दिक शुभकामनायें!!
वर्तमान में देश में फैले आक्रोश और असहजता के माहौल ने हमें द्रवित कर रखा है फिर कैसा गणतंत्र ? जब गणतंत्र के मूल्यों का मोल ही नहीं रह गया है तो फिर कैसा गणतंत्र ?
जवाब देंहटाएंअपने यथार्थ को चित्रित किया है . इसके लिए आभार !
मन को प्रकर रूप से व्यक्त किया..
जवाब देंहटाएंसही कहा है..
जवाब देंहटाएंदिन व समय स्वातंत्र व गणतंत्र के सुमीरन का है,
जवाब देंहटाएंकितु नेता-मंत्री चुनाव चिंतन कर सत्ता-नियंत्रण में व्यस्त हैं.....
बाप बना राजा तो उसका,
जवाब देंहटाएंबेटा राजकुमार बना,
प्रजातन्त्र की फुलवारी में,
उपजा खरपतवार घना,
लोकतन्त्र में गन्ध आ रही,
खद्दर के परिधान की।
नहीं रही अब कोई कीमत,
वीरों के बलिदान की।।
मुबारक ये गणतंत्र जैसा भी है ,ईद मिलादुल नबी .
सहमत आपकी प्रस्तावना से .जय बोल वंश वेळ के खूंटे की जय बोल ,बोल जोर से जय खद्दर में मक्कार की
बस औपचारिकता निभाते जाइए और गणतन्त्र दिवस की शुभकामनाएँ देते जाइए बाकी तो गणतन्त्र में से गण तो गायब होता जा रहा है और तंत्र हावी होता जा रहा है !!
जवाब देंहटाएंमन दुखी,चिंता वाज़िब...अब क्या करे कोई ???
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुन्दर .....सही में कहूँ तो मेरे ह्रदय के भावों को व्यक्त करती हुई रचना ....कुछ अंश आपके ही नाम और ब्लॉग के लिंक के साथ अपने ब्लॉग व अपनी फेसबुक प्रोफाइल पर कल शेयर कर रहा हूँ .....अग्रिम धन्यवाद स्वीकार करें ! ऐसी ही बेहतरीन रचनाएं देते रहे ! नमस्कार प्रणाम
जवाब देंहटाएंhttp://www.teerthankar.blogspot.in
जी धन्यवाद .....आपकी रचना आपके ही नाम से पोस्ट कि थी हटा दी गयी है ! साथ में ब्लॉग का लिंक भी दिया गया था ....नमस्ते
हटाएंहटा दी गयी है ...गणतंत्र दिवस की शुभ कामनाएं
हटाएंमगर क्यो?
हटाएंमुझे लगा है कि आपने यहाँ खुद ही ऊपर मेरे कमेन्ट के जबाब में लिखा कि "हटाएँ " इसीलिए ...आपकी कवितायें मेरे बहुत मन भाती हैं ......आपकी स्वीकृति हो तो आगे से आपके ही नाम से आगे अपनी प्रोफिएल पर व ब्लॉग पर शेयर करा करूँगा ......आप अपनी स्वीकृति हो तो कह दें ! नमस्कार
हटाएंsundar prastuti,****" sisak raha gantantr hamars ,ro rahi aaj yah dharti ma aachl bhig gya hai , hai yah pal pal jiti marti...."
जवाब देंहटाएंHappy Republic Day
जवाब देंहटाएंगणतंत्र दिवस की हार्दिक शुभकामनाएँ
एवम् बधाई।
Happy Republic Day!
आप सभी को वरुण की तरफ से गणतंत्र
दिवस की शुभकामनाऐँ
ऐँ वीरोँ दिल मेँ एक मशाल जलायेँ रखना
खोया हैँ जो तुमने उसकी याद संजोये रखना
तुम ही हो वतन के सिपाही
वतन के लाज बचायेँ रखना ।।
इस खास मौके पर पर मैँ एक बार भारत
की आँत्मा कहे जानेँ वाले गाँव एवं गाँव के
किसानोँ को नमन
हैँ नमन तुम्हे जवानोँ
हैँ नमन तुम्हे किसानोँ
हैँ नमन तुम्हे तुम ही भारत की सिरमोर
हो
तुम जो चाहो तो खुशियाँ सारी ओर हो ।।
मन की पीड़ा ही शब्दों में ढ़ल गयी है.
जवाब देंहटाएंबाप राजा बना तो बेटा को राजकुमार का पद तो बिना मांगे ही मिल रहा है,यही अपने प्रजातंत्र की हकीकत है।बहुत ही सार्थक रचना।गणतंत्र दिवस की हार्दिक शुभकामनाएँ।
जवाब देंहटाएंजन-जन के आक्रोश को रेखांकित करती कविता
जवाब देंहटाएंगणतंत्र-दिवस की शुभ कामनाये
गणतन्त्र दिवस की हार्दिक शुभकामनाओं के साथ-
जवाब देंहटाएंकटु सत्य का उजागारण करने में मेरा अकेलापन छंटता प्रतीत हो रहा है आप की रचना को देख कर !
जवाब देंहटाएंबाप बना राजा तो उसका,
बेटा राजकुमार बना,
प्रजातन्त्र की फुलवारी में,
उपजा खरपतवार घना,
इस कड़वे सच को बेबाकी के साथ बयान करती शानदार रचना ! बेटा सुपात्र हो या कुपात्र सिंहासन का उत्ताराधिकार तो उसे ही मिलेगा ! हमारे नाम के लोकतंत्र की इससे बड़ी विडम्बना और क्या होगी ! फिर भी गणतंत्र दिवस की हार्दिक शुभकामनायें तो स्वीकार कर ही लीजिये !
मैं तो उस दिन की कल्पना करती हूँ, जिस दिन को देखने के लिए हम नहीं होंगे, लेकिन इतिहास में क्या लिखा जाएगा? वर्तमान शासन के लिए किन शब्दों में इतिहास लिखा जाएगा?
जवाब देंहटाएं