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रविवार, 10 जनवरी 2010
“अब बसन्त आयेगा” (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री “मयंक”)
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बिल्कुल सही कहा, जी!
जवाब देंहटाएंअभी तो सुमन-पादपों की पौध तैयार हो रही है!
ओंठों पर मधु-मुस्कान खिलाती, रंग-रँगीली शुभकामनाएँ!
नए वर्ष की नई सुबह में, महके हृदय तुम्हारा!
संयुक्ताक्षर "श्रृ" सही है या "शृ", उर्दू कौन सी भाषा का शब्द है?
संपादक : "सरस पायस"
अत्योत्तम. आभार.
जवाब देंहटाएंइस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंबर्फ का दुशाला है।।
जवाब देंहटाएंमन में एक आशा है,
sundar
सर्दी की इतनी खूबसूरत तस्वीर सिर्फ शब्दों से. क्या बात है!
जवाब देंहटाएंसूरज अदृश्य है,
जवाब देंहटाएंपड़ रहा पाला है।।
पर्वत ने ओढ़ लिया,
बर्फ का दुशाला है।।
बहुत अच्छी कविता।
बर्फ का दुशाला है।।
जवाब देंहटाएंमन में एक आशा है,
अब बसन्त आयेगा!
खिल जायेंगे नव सुमन,
उपवन मुस्कायेगा ....
शरद के बाद बसंत की चाह ......... बहुत ही सुंदर कविता है ..........
aapne to mahol vasantik bana diya..........bahut badhiya.
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर कविता है.
जवाब देंहटाएंमन में एक आशा है,
जवाब देंहटाएंअब बसन्त आयेगा!
खिल जायेंगे नव सुमन,
उपवन मुस्कायेगा!!
शास्त्री जी, शब्दों का राज बहुत गहरा है,
इसी उम्मीद पे तो अब दिल ठहरा है
कि वसंत आयेगा... वसंत आयेगा !
हम भी इसी आशा में हैं. सुन्दर रचना.
जवाब देंहटाएंबहुत ख़ूबसूरत रचना लिखा है आपने!
जवाब देंहटाएंसुन्दर वर्णन!!
जवाब देंहटाएं