गेंहूँ झूम रहे खेतों में, उपवन में बहार आयी है। उतर गये हैं कोट सभी के, मस्त बसन्ती रुत आयी है।। मूँगफली अब नही सुहाती, गजक-रेबड़ी नही लुभाती, चाट-पकौड़ी मन भायी है। मस्त बसन्ती रुत आयी है।। चहक रही पेड़ों पर चिड़ियाँ, महक रहीं बालाएँ-बुढ़ियाँ, डाली-डाली गदरायी है। मस्त बसन्ती रुत आयी है।। दिन आये हैं प्रीत-प्रेम के, मन भाये हैं गीत-प्रेम के, मन में सरसों लहराई है। मस्त बसन्ती रुत आयी है।। (चित्र गूगल सर्च से साभार) |
"उच्चारण" 1996 से समाचारपत्र पंजीयक, भारत सरकार नई-दिल्ली द्वारा पंजीकृत है। यहाँ प्रकाशित किसी भी सामग्री को ब्लॉग स्वामी की अनुमति के बिना किसी भी रूप में प्रयोग करना© कॉपीराइट एक्ट का उलंघन माना जायेगा। मित्रों! आपको जानकर हर्ष होगा कि आप सभी काव्यमनीषियों के लिए छन्दविधा को सीखने और सिखाने के लिए हमने सृजन मंच ऑनलाइन का एक छोटा सा प्रयास किया है। कृपया इस मंच में योगदान करने के लिएRoopchandrashastri@gmail.com पर मेल भेज कर कृतार्थ करें। रूप में आमन्त्रित कर दिया जायेगा। सादर...! और हाँ..एक खुशखबरी और है...आप सबके लिए “आपका ब्लॉग” तैयार है। यहाँ आप अपनी किसी भी विधा की कृति (जैसे- अकविता, संस्मरण, मुक्तक, छन्दबद्धरचना, गीत, ग़ज़ल, शालीनचित्र, यात्रासंस्मरण आदि प्रकाशित कर सकते हैं। बस आपको मुझे मेरे ई-मेल roopchandrashastri@gmail.com पर एक मेल करना होगा। मैं आपको “आपका ब्लॉग” पर लेखक के रूप में आमन्त्रित कर दूँगा। आप मेल स्वीकार कीजिए और अपनी अकविता, संस्मरण, मुक्तक, छन्दबद्धरचना, गीत, ग़ज़ल, शालीनचित्र, यात्रासंस्मरण आदि प्रकाशित कीजिए। |
Linkbar
फ़ॉलोअर
सोमवार, 1 फ़रवरी 2010
“मस्त बसन्ती रुत आयी है!” (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री “मयंक”)
लोकप्रिय पोस्ट
-
दोहा और रोला और कुण्डलिया दोहा दोहा , मात्रिक अर्द्धसम छन्द है। दोहे के चार चरण होते हैं। इसके विषम चरणों (प्रथम तथा तृतीय) मे...
-
लगभग 24 वर्ष पूर्व मैंने एक स्वागत गीत लिखा था। इसकी लोक-प्रियता का आभास मुझे तब हुआ, जब खटीमा ही नही इसके समीपवर्ती क्षेत्र के विद्यालयों म...
-
नये साल की नयी सुबह में, कोयल आयी है घर में। कुहू-कुहू गाने वालों के, चीत्कार पसरा सुर में।। निर्लज-हठी, कुटिल-कौओं ने,...
-
समास दो अथवा दो से अधिक शब्दों से मिलकर बने हुए नए सार्थक शब्द को कहा जाता है। दूसरे शब्दों में यह भी कह सकते हैं कि &qu...
-
आज मेरे छोटे से शहर में एक बड़े नेता जी पधार रहे हैं। उनके चमचे जोर-शोर से प्रचार करने में जुटे हैं। रिक्शों व जीपों में लाउडस्पीकरों से उद्घ...
-
इन्साफ की डगर पर , नेता नही चलेंगे। होगा जहाँ मुनाफा , उस ओर जा मिलेंगे।। दिल में घुसा हुआ है , दल-दल दलों का जमघट। ...
-
आसमान में उमड़-घुमड़ कर छाये बादल। श्वेत -श्याम से नजर आ रहे मेघों के दल। कही छाँव है कहीं घूप है, इन्द्रधनुष कितना अनूप है, मनभावन ...
-
"चौपाई लिखिए" बहुत समय से चौपाई के विषय में कुछ लिखने की सोच रहा था! आज प्रस्तुत है मेरा यह छोटा सा आलेख। यहाँ ...
-
मित्रों! आइए प्रत्यय और उपसर्ग के बारे में कुछ जानें। प्रत्यय= प्रति (साथ में पर बाद में)+ अय (चलनेवाला) शब्द का अर्थ है , पीछे चलन...
-
“ हिन्दी में रेफ लगाने की विधि ” अक्सर देखा जाता है कि अधिकांश व्यक्ति आधा "र" का प्रयोग करने में बहुत त्र...
waah waah..........sach mein mast basanti rut aa gayi hai.......aapke geet ne to usmein chaar chaand laga diye hain.
जवाब देंहटाएंकविता अच्छी है मगर सरसों और फूल नहीं दिखे चित्र में ...इनके बिना कैसा वसंत ...!!
जवाब देंहटाएंदिन आये हैं प्रीत-प्रेम के,
जवाब देंहटाएंमन भाये हैं गीत-प्रेम के,
मन में सरसों लहराई है।
मस्त बसन्ती रुत आयी है।।
बहुत सुन्दर शास्त्री जी !
अति सुंदर - मनोहारी चित्रण.
जवाब देंहटाएंदिन आये हैं प्रीत-प्रेम के,
जवाब देंहटाएंमन भाये हैं गीत-प्रेम के,
मन में सरसों लहराई है।
मस्त बसन्ती रुत आयी है।।nice
शास्त्री जी कहाँ चाट-पकौड़ी की याद दिला रहे हैं। डाक्टर ने बन्द कर रखी है।
जवाब देंहटाएंप्रकृति के बदलते रूप को कविता में बहुत बारीकी से उभारा गया है।
जवाब देंहटाएंसारी कायनात ही जैसे अंगड़ाई ले जाग उठती है।
जवाब देंहटाएंबसंत का सुंदर आवाहन.
जवाब देंहटाएंbilkul sahi baat kahi hai shastri ji..
जवाब देंहटाएंcongrats
सचमुच आई ऋतु वासंती!
जवाब देंहटाएंझूम उठा मन!
--
नवसुर में कोयल गाता है -"मीठा-मीठा-मीठा! "
--
संपादक : सरस पायस
भाई साहब! सादर नमन!
जवाब देंहटाएंकविता पढ़कर आपकी, उमडी खुशी अनंत।
फलित फरवरी माह है, चारों ओर बसंत॥
चारों ओर बसंत, खेत, वन-उपवन, महके।
बौराए है पेड, आदमी बहके - बहके॥
सार्ट लीव पर रहें, आजकल प्रतिदिन सविता।
ऎसे में उत्ताप जगाती केवल कविता॥
सद्भावी-
डॉ० डंडा लखनवी
रंग सजा कर बैठा बनिया
जवाब देंहटाएंगोरी खरीद रही फागुनिया
अब शुरू होने को, पुरवाई है
मस्त बसन्ती रुत आयी है।।
बसंत में मस्त कराती सुन्दर कविता.....आभार !!
बहुत सुंदर रचना.
जवाब देंहटाएंरामराम.
मूँगफली अब नही सुहाती,
जवाब देंहटाएंगजक-रेबड़ी नही लुभाती,
चाट-पकौड़ी मन भायी है।
मस्त बसन्ती रुत आयी है।।
वाह लाजवाब रचना लिखा है आपने! चाट पकौड़े की बात सुनकर तो मुँह में पानी आ गया!