बीता पतझड़ आया बसन्त। बासन्ती सुमनों की आभा, नयनों में है छाया बसन्त। मधुबन में मुस्काया बसन्त।। झाड़ी के पीछे से आकर, तन-मन में गदराया बसन्त। मधुबन में मुस्काया बसन्त।। |
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गुरुवार, 3 फ़रवरी 2011
"मधुबन में मुस्काया बसन्त" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री "मयंक")
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kya baat hai shastri ji.madhuban me muskaya basant padh kar mukh per bhi muskaan aa gai.bahut hi khoobsurat geet likha hai aapne.aapko hardik badhaai.
जवाब देंहटाएंलग रहा है बसंत आ गया..बहुत सुन्दर.
जवाब देंहटाएंचलिए हम भी वसंत के रगं में सराबोर हो जाते है।
जवाब देंहटाएंrangeen post.
जवाब देंहटाएंबसन्त का विधिवत स्वागत।
जवाब देंहटाएंअब अपनी दिनचर्या भी इससे प्रभावित हो रही है।
जवाब देंहटाएंबसंत का स्वागत करती प्यारी रचना
जवाब देंहटाएंआज चर्चा मंच पर आपकी सालगिरह की जान कारी मिली |आपका जन्मदिन इसी प्रकार हर वर्ष आए और जीवन बहुतसारी खुशियों से भर दे |जीवन में सफलता के सर्वोच्च शिखर पर अपना स्थान बनाएँ |मेरी शुभकामनाएं स्वीकार करें |
जवाब देंहटाएंआशा
आदरणीय गुरु जी को जन्मदिन पर गुफ्तगू की ओर से बहुत-बहुत शुभकामनाये और बधाई.
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर वसंत गीत..जन्मदिवस की हार्दिक शुभकामनायें..
जवाब देंहटाएंआदरणीय शास्त्री जी ,
जवाब देंहटाएंनमस्कार .
सर्वप्रथम आपको जन्मदिन की अनेक शुभकामनाएं .बहुत सुंदर कविता लिखी है आपने बसंत पर.सुन्दरता से किया है बसंत का वर्णन .बधाई
aadarniya shastri ji ,
जवाब देंहटाएंsadar pranam ,
janama-din ki badhayi ,anekon basant
dekhane ki shubh- kamna.kya bat hai
aapke hanthon basant aur basanti ho gaya.umang laya anang ke sang,ahsas
kara gaya .bahut -2 dhanyavad .
बहुत ही सुन्दर कविता पढ़ते - पढ़ते हम तो खेतों मै ही खोने से लगे थे !
जवाब देंहटाएंहर शब्द जेसे खुद बोल रहा हो !
आपका बहुत - बहुत शुक्रिया !
झाड़ी के पीछे से आकर,झाँकता भास्कर अमल-धवल,अनुपम छवियों से भरमाते,तालाबों में खिल रहे कमल,तन-मन में गदराया बसन्त।मधुबन में मुस्काया बसन्त।।
जवाब देंहटाएंबेहद खूबसूरत वसन्त गीत्………अपनी आहट दे रहा है।
वसंत की यह सचित्र झांकी और शब्द रचना अनुपम ।
जवाब देंहटाएंमयंक साहब..
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दरता से आपने सौन्दर्य का चित्रण किया है.. चित्र और भी सुन्दर हैं..!!
कविता के साथ चित्रों ने भी बसंत के आगमन की सूचना दे दी है ....बहुत सुन्दर रचना..
जवाब देंहटाएं.
जवाब देंहटाएंवैसे तो पता ही होगा फिर भी पोस्ट में पाठकों में उपस्थिति दर्ज कराने के बहाने कुछ जानकारी अनजानों के लिये दे रहा हूँ.
बसंत ऋतु के आगमन से १० दिन पूर्व पसंत पंचमी पड़ती है. ८० प्रहरों के पहले बसंत पंचमी का आना और ऋतुराज बसंत के स्वागत की तैयारी में प्रकृति को सजाना-सँवारना वैदिक आथित्य परम्परा है जिसका हमारे त्यौहार भी संकेत रूप में निर्वहन करते हैं.
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जवाब देंहटाएंएक कविता "बसंत-प्रतीक्षा" नाम की...
अशीति प्रहर के बाद
पिकानद आवेगा, उन्माद
भरेगा आँखों में चुपचाप
कुहुक गूँजेगा कोकिल नाद.
ढाक के पिंगल फूल
डाल देंगे आँखों में धूल.
लगी हो जैसे तरु में आग
दूर से देखन में हो भूल.
अशोक पुष्प रतनार
खिलेंगे जब बाला सुकुमार
नृत्य करने के बाद प्रहार
पगों का देगी वो उपहार.
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शास्त्री जी,सबसे पहले तो जन्मदिन की हार्दिक बधाई --उसके बाद, आपने बहुत सुंदर कविता लिखी हे --सचमुच वसंत आ गया
जवाब देंहटाएंइस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर वसंत गीत....बधाई स्वीकारें।
जवाब देंहटाएंbahut sundar rachna aur chitron ke saath to maahol bhi baasanti ho gaya ... umda ..
जवाब देंहटाएं